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Covid-19: इकोनॉमी को अकेले पटरी पर नहीं ला सकता केंद्र, राज्यों को भी करने होंगे ये काम, States May Have to Bear Disproportionate Burden of Spending to Revive Economy | nation – News in Hindi

सिंधू भट्टाचार्य
नई दिल्ली.
लॉकडाउन (Lockdown) के बीच धीरे-धीरे बाजार खुलने लगे हैं. ऐसा करना चरमराती अर्थव्यवस्था (Economy) के लिए जरूरी है. हम जानते हैं कि कोरोना वायरस (Coronavirus) के कारण अर्थव्यवस्था पटरी से उतर गई है. राज्यों की कमाई घट गई है और उनका खर्च घट गया है. सरकारों को लाखों गरीबों को मुफ्त राशन उपलब्ध कराना है. स्वास्थ्य सुविधाओं पर भी खर्च भी कई गुना बढ़ गया है. इसके अलावा सरकारों पर उन प्रवासी मजदूरों की जिम्मेदारी भी बढ़ गई है, जो दूसरे राज्यों में काम बंद होने से अपने मूल राज्य लौट आए हैं.

अभी तक के संकेत साफ हैं कि केंद्र सरकार भी कोई बहुत अच्छी स्थिति में नहीं है. देश की जीडीपी ग्रोथ 4% घट सकती है. यह भी कहा जा रहा है कि कोरोना संकट से निपटने के लिए ही सरकार को जीडीपी (GDP) का 3-4% खर्च करना पड़ सकता है. ऐसे में केंद्र के साथ उन राज्यों पर भी इकोनॉमी को बूस्ट करने की जिम्मेदारी ज्यादा रहेगी, जिनका राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit) कम है. कुछ राज्यों ने इसके लिए कदम उठाने शुरू भी कर दिए हैं.

महाराष्ट्र का उदाहरण लीजिए. सरकार ने कह दिया है कि हर डिपार्टमेंट को पहले घोषित रकम का एक तिहाई ही मिलेगा. राज्य के कई विकास कार्य भी एक साल के लिए रोक दिए गए हैं. इसके अलावा सरकारी कर्मचारियों की सैलरी कट की बात भी हो रही है.वहीं, दिल्ली सरकार ने शराब पर 70% टैक्स बढ़ा दिया है. इसके अलावा उसने पेट्रोल और डीजल पर भी टैक्स बढ़ाया है. यह भी संकेत दिया जा रहा है कि कर्मचारियों की सैलरी देने में मुश्किल आ सकती है, क्योंकि लॉकडाउन के बाद से सरकार की कमाई बंद हो गई है. तेलंगाना, ओडिशा, राजस्थान और कई अन्य राज्य भी यह जता चुके हैं कि उनकी कमाई कम हुई है. इससे राज्य का खर्च चलाने में दिक्कत हो सकती है. इन सब का नतीजा टैक्स बढ़ोतरी के रूप में भी देखने को मिल रहा है.

रेटिंग एजेंसी केयर रेटिंग के मुताबिक, जब इस साल बजट पेश किए गए तो आधे से ज्यादा राज्यों ने 2020-2021 के लिए सरप्लस रेवेन्यू का अनुमान लगाया था. कोरोना वायरस फैलने से पहले पेश किए गए बजट में 15 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों ने सरप्लस रेवेन्यू दिखाया था. वहीं, 9 राज्यों और एक केंद्र शासित क्षेत्र के बजट में राजकोषीय घाटा 3% के भीतर रहने की बात कही गई थी. ये राज्य अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, मिजोरम, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड थे. केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर भी इसी कैटेगरी में था.

तेलंगाना, दिल्ली ने रेवेन्यू सरप्लस और पश्चिम बंगाल ने जीरो प्लस रेवेन्यू का बजट पेश किया था. उत्तर प्रदेश ने 27,451 करोड़ रुपये सरप्लस का बजट था. यह सभी राज्यों में सबसे अधिक सरप्लस बजट था. बिहार का 19,173 करोड़ रुपये और ओडिशा-असम का 9,000 करोड़ रुपये सरप्लस बजट का अनुमान था.

केयर रेटिंग के मुताबिक जिन राज्यों के बजट अनुमान में राजकोषीय घाटा 3% से कम रहने का अनुमान था, वे अतिरिक्त कर्ज ले सकते हैं. रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के मुताबिक जिन राज्यों में स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत खराब है, उन्हें ज्यादा कर्ज लेना होगा. ऐसे राज्यों में पंजाब, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और बिहार जैसे बड़े राज्य शामिल हैं.

महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल जैसे वे राज्य जहां उद्योग ज्यादा हैं, वे कोरोना वायरस की वजह से आर्थिक चपेट में ज्यादा आए हैं. केरल और कर्नाटक ने तो काफी हद तक वायरस को  नियंत्रित कर लिया है. ऐसे राज्य जहां, रजिस्टर्ड मजदूरों की संख्या वास्तविक मजदूरों की संख्या से कम है, उनके सामने भी बड़ा संकट खड़ा है. ऐसे राज्यों को लोगों की मूलभूत सुविधाओं का ख्याल रखना होगा. आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ को भी आर्थिक रूप से बड़ा झटका लगा है.

रेवेन्यू सरप्लस वाले राज्यों को अपनी इकोनॉमी पटरी पर लाने के लिए कर्ज लेना चाहिए या उन्हें अपने खर्च नियंत्रित करने चाहिए. विशेषज्ञों का कहना है कि राज्यों को इनकम सपोर्ट स्कीम शुरू करनी होग और साथ ही सेक्टर आधारित रिलीफ की योजना बनानी चाहिए. इसमें कोई शक नहीं कि बजट में खर्च का जो अनुमान लगाया गया था, उससे अधिक राशि ही व्यय होने जा रही है.  महामारी आने से पहले ही इकोनॉमी में स्लोडाउन के संकेत थे. ऐसे में राज्यों का कर्ज लेना जरूरी लग रहा है.

ऐसे में वे राज्य अपनी विकास दर बेहर रख सकेंगे, जिनका कर्ज कम हो और प्रति व्यक्ति आय अधिक हो. जो राज्य इस कैटेगरी में नहीं आते हैं, उन्हें ज्यादा कर्ज लेना होगा. एक बात साफ है कि केंद्र के पास इकोनॉमी को पटरी पर लाने के सीमित विकल्प हैं. ऐसे में राज्यों पर यह जिम्मेदारी ज्यादा आ जाती है.

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