लंबी है संघर्ष की राह: लॉकडाउन की मार के चलते खाली हाल और भूखे पेट घर लौटे प्रवासी मजदूर । Long Road of Struggle: Migrant Workers Return Home Empty-handed and Hungry as Lockdown Hits Hard | nation – News in Hindi
नई दिल्ली. अंतर राज्यीय यात्रा (Inter state travel) के नियमों में छूट देने के बाद भी और प्रवासी मजदूरों (Migrant Workers) के लिए ट्रेनों की शुरुआत, कई लोग अत्यधिक संकट में हैं क्योंकि वे सरकारी राहत योजनाओं (Government Relief Schemes) का उपयोग करने में विफल रहे हैं और उनके पास बचत के नाम पर कुछ भी नहीं है.
लॉकडाउन (Lockdown) की घोषणा के बाद बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर (Migrant Workers) देशभर में अलग-अलग शहरों में फंस गए थे. साथ ही COVID-19 के प्रसार को रोकने के लिए लगाए गए इस कर्फ्यू में जिन लोगों को अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ा था, उन्हें किसी तरह की मदद नहीं दी गई थी.
11 हजार प्रवासी मजदूरों से बात करके किया गया यह सर्वेजैसे-जैसे राज्यों ने प्रवासियों को वापस लाने के लिए विशेष ट्रेनों (Special Trains) का संचालन शुरू किया है, उनसे से ज्यादातर, जो कि अलग-अलग राज्यों में बेहतर जीवन यापन के लिए गए थे, बिना किसी धन के वापस घर जाने को मजबूर हैं.
स्ट्रैंडेड वर्कर्स एक्शन नेटवर्क (SWAN) के शुरू किए एक सर्वे के अंतर्गत, रिसर्चरों के एक नेटवर्क ने महाराष्ट्र, दिल्ली, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल और झारखंड में फंसे करीब 11 हजार प्रवासियों से 25 मार्च को लॉकडाउन लगाए जाने के बाद 27 मार्च से बात करनी शुरू की थी.
करीब 96% प्रवासी मजदूरों को सरकार से नहीं मिला कोई राशन
13 अप्रैल तक का उनका डेटा अपडेट किया गया है. जिसमें सामने आया है कि करीब 96% प्रवासी मजदूरों को सरकार से कोई राशन (Ration) नहीं मिला था, जबकि अन्य 70% को कोई पका हुआ खाना नहीं मिला था.
सरकार की ओर से दैनिक मजदूरी करने वालों के लिए जारी किए निर्देश (Guidelines) के बावजूद, 89% को उनके नियोक्ता ने कोई भी भुगतान नहीं किया था. उनमें से ज्यादातर को सिर्फ 22 मार्च तक पैसे दिए गए थे और लॉकडाउन खत्म होने के बाद लौटने के लिए कहा गया था.
लॉकडाउन के बाद दिल्ली-मुंबई जैसे शहरों से हुआ था भारी पलायन
इसके बाद भारत में दिल्ली और मुंबई (Mumbai) जैसे कई शहरों से भारी पलायन देखा गया था, जबकि गलत सूचना और प्रशासन की बहुत कम मदद की वजह से कई लोग अपने मूल स्थानों के लिए पैदल ही निकल गए थे.
अस्थायी आश्रय शिविरों (Temporary shelter camps) में भी मूलभूत सुविधाओं और खाने की कमी के चलते यहां सामाजिक विरोध देखने को मिला था. अपने घरों को वापस पहुंचे मजदूरों के पास अब राशन और पैसे खत्म हो रहे हैं.
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