Railways and states should arrange free travel of stranded laborers amidst coronavirus lockdown plea in supereme court | मजदूरों की फ्री यात्रा के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर, कहा- 800 रुपए तक देना पड़ रहा किराया | nation – News in Hindi


(AP Photo/Ajit Solanki)
सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में कहा गया है कि इन कामगारों को ट्रेन के भाड़े के रूप में 800 रूपए तक देना पड़ रहा है
कोरोना वायरस महामारी की वजह से देश में लागू लॉकडाउन के दौरान इन कामगारों को अपने अपने घर जाने की अनुमति देने के लिये याचिका दायर करने वाले आईआईएम, अहमदाबाद के पूर्व प्रभारी निदेशक जगदीप एस छोकर और वकील गौरव जैन ने अपने पूरक हलफनामे में यह दलील दी है. इसमे दलील दी गयी है कि इन कामगारों से अपने पैतृक गांव तक जाने के लिये ट्रेन और बसों का किराया नहीं लिया जाना चाहिए.
हलफनामे में कहा गया है कि इन कामगारों को ट्रेन के भाड़े के रूप में 800 रूपए तक देना पड़ रहा है जो पूरी तरह अनुचित है. इसमें इन कामगारों की कोई गलती नही है और इनके पास पैसा भी नहीं है, इसलिए रेलवे और राज्यों को इन्हें पहुंचाने के लिये नि:शुल्क यात्रा व्यवस्था करनी चाहिए.
हलफनामे में कहा गया है किे गृह मंत्रालय ने तीन मई को सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और प्रशासकों को पत्र लिखकर रास्ते में फंसे इन कामगारों के आवागमन को लेकर स्पष्टीकरण दिया है जिसमे रास्ते में फंसे होने की बहुत ही संकीर्ण परिभाषा दी गयी है. इसमें कहा गया है कि इसके दायरे में वे ही लोग आयेंगे जो लॉकडाउन शुरू होने से ठीक पहले घरों से बाहर निकले थे लेकिन प्रतिबंधों की वजह से घर नहीं लौट सके.हलफनामे में कहा गया है कि यह सर्वविदित है कि लॉकडाउन की वजह से रोजगार गंवाने वाले मजदूरों के साथ ही कारखानों और रेहड़ी पटरियों पर काम करने वाले लाखों दिहाड़ी मजदूर शहरों से अपने पैतृक घर जाना चाहते हैं. इसलिए ऐसे मजदूरो को ‘रास्ते में फंसे श्रमिकों’ के दायरे से बाहर नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि इस स्थिति के लिये उन्हें जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता.
हलफनामे में स्ट्रैन्डेन्ट वर्कर्स एक्शन नेटवर्क (स्वान) की रिपोर्ट का हवाला देते हुये कहा गया है कि करीब 50 प्रतिशत कामगारों के पास एक दिन का ही राशन बचा था और उनकी इस स्थिति में कोई बदलाव नही आया है. यह रिपोर्ट श्रमिकों के 1,531 समूहों से बातचीत के आधार पर तैयार की गयी है जिसमे करीब 16,863 कामगार शामिल थे.
इसी रिपोर्ट के अनुसार इनमें से 64 फीसदी श्रमिकों के पास एक सौ रूपए से भी कम पैसा बचा है और करीब 97 प्रतिशत कामगारों को सरकार से किसी प्रकार की आर्थिक सहायता नहीं मिली है.
अदालत ने इस याचिका पर 27 अप्रैल को केन्द्र से जवाब मांगा था.
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First published: May 5, 2020, 8:59 AM IST