पुरानी बस्ती स्थित महामाया देवी मंदिर सत्संग

रायपुर -: पुरानी बस्ती स्थित महामाया देवी मंदिर सत्संग भवन में बुधवार 10 नवंबर को श्रीमद्भागवत कथा के द्वितीय दिवस में वृंदावन धाम के राधासर्वेश्वर धाम से पधारे महंत सुदर्शन शरण जी ने आत्म देव धुंधली और धुंधकारी की कथा को विस्तार से सुनाया। जिसमें उन्होंने बताया आत्मदेव जो कि एक वेद पाठी ब्राह्मण थे बड़े ही विद्वान थे, लेकिन उनके यहां कोई पुत्र नहीं था। वह ग्लानि से भरे हुए एक दिन जंगल में जा पहुंचेए जहां उन्हें एक साधु के दर्शन हुए साधु ने उन्हें एक फल दिया आत्म देव की पत्नी धुंधली ने वह फल अपनी गाय को खिला दिया कुछ समय बाद गाय ने एक बच्चे को जन्म दिया। जिसका पूरा शरीर मनुष्य का था केवल कान गाय के थे जिसका नाम गोकर्ण रखा गया। एक धुंधली का पुत्र जो कि उसकी बहन का था उसका नाम धुंधकारी रखा गया। आचार्य श्री ने बताया साधु के आशीर्वाद से जो पुत्र हुआ वह ज्ञानी धर्मात्मा हुआ और धुंधकारी दुराचारी व्यभिचारी मदिरा चारी और दुरात्मा निकला व्यसन में पढ़कर चोरी करने लगा वेश्याओं को घर में रखने लगा एक दिन वेश्याओं ने लोभ में आकर इसकी हत्या कर दी। बाद में यह प्रेत बना। जिसकी मुक्ति के लिए गोकर्ण महाराज जी ने भागवत कथा का आयोजन किया। भागवत कथा सुनकर धुंधकारी को मोक्ष की प्राप्ति और प्रेत योनि से मुक्ति मिली। आगे की कथा में सुखदेव जी के जन्म की कथा का वर्णन किया नारद जी के कहने पर पार्वती जी ने भगवान शिव से पूछा उनके गले में जो मुंडमाला है वह किसकी है भोलेनाथ ने बताया वह मुंड किसी और के नहीं बल्कि स्वयं पार्वती जी के हैं हर जन्म में पार्वती जी विभिन्ना रूपों में शिव की पत्नी के रूप में जब भी देह त्याग करती शंकर जी उनके मुंड को अपने गले में धारण कर लेते पार्वती ने हंसते हुए कहा हर जन्म में क्या मैं ही मरती रही आप क्यों नहीं शंकर जी ने कहा हमने अमर कथा सुन रखी है पार्वती जी ने कहा मुझे भी वह अमर कथा सुनाइए शंकर जी पार्वती जी को अमर कथा सुनाने लगे। शिव-पार्वती के अलावा सिर्फ एक तोते का अंडा था जो कथा के प्रभाव से फूट गया उसमें से श्री सुखदेव जी का प्राकट्य हुआ कथा सुनते सुनते पार्वती जी सो गई वह पूरी कथा श्री सुखदेव जी ने सुनी और अमर हो गए शंकर जी सुखदेव जी के पीछे उन्हें मृत्युदंड देने के लिए दौड़े। सुखदेव जी भागते भागते व्यास जी के आश्रम में पहुंचे और उनकी पत्नी के मुंह से गर्भ में प्रविष्ट हो गए। 12 वर्ष बाद श्री सुखदेव जी गर्व से बाहर आए इस तरह श्री सुखदेव जी का जन्म हुआ।
महराज जी ने बताया कि भगवान मानव को जन्म देने से पहले कहते हैं ऐसा कर्म करना जिससे दोबारा जन्म ना लेना पड़े। मानव मुट्ठी बंद करके यह संकल्प दोहराते हुए इस पृथ्वी पर जन्म लेता है। प्रभु भागवत कथा के माध्यम से मानव का यह संकल्प याद दिलाते रहते हैं। भागवत सुनने वालों का भगवान हमेशा कल्याण करते हैं। भागवत ने कहा है जो भगवान को प्रिय हो वही करो, हमेशा भगवान से मिलने का उद्देश्य बना लो, जो प्रभु का मार्ग हो उसे अपना लो, इस संसार में जन्म-मरण से मुक्ति भगवान की कथा ही दिला सकती है। भगवान की कथा विचार, वैराग्य, ज्ञान और हरि से मिलने का मार्ग बता देती है। राजा परीक्षित के कारण भागवत कथा पृथ्वी के लोगों को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। समाज द्वारा बनाए गए नियम गलत हो सकते हैं किंतु भगवान के नियम ना तो गलत हो सकते हैं और नहीं बदले जा सकते हैं।
श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन जगन मोहन वेलु एवं परिवार द्वारा कराया जा रहा है। कथा स्थल में यजमानों सहित कई गणमान्य अतिथियों ने अपनी गरिमामयी उपस्थिती दर्ज करवाई ।