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ओले और भारी बारिश से हुए नुकसान के लिए किसानों को 72 घंटे में करना होगा अप्लाई, खाते में सरकार भेजेगी पैसे-Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana Crop Insurance PMFBY SBI PNB ICICI Axis Bank Know full Process | business – News in Hindi

नई दिल्ली. किसानों पर हमेशा मौसम की मार पड़ती ही रहती है. कभी बेमौसम बारिश और कभी  सूखे की स्थिति में फसल सीधे तौर पर प्रभावित होती है. ऐसे में किसानों को इस मुश्किल से निकालने के लिए ही भारत सरकार किसानों के लिए पीएम फसल बीमा योजना (-Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana Crop Insurance-PMFBY) चला रही है. इसके जरिए आप अपनी फसल की नुकसान की भरपाई कर सकते हैं. इसको लेकर सरकार ने हाल में किसानों को मैसेज भेजकर 72 घंटे में अप्लाई करने के लिए कहा है.

आइए जानें इसका पूरा प्रोसस…

 किसानों को मिले 2424 करोड़ रुपये-केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY-Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana)  के तहत लॉकडाउन मेंं अब तक 12 राज्यों के किसानों को 2424 करोड़ के दावों (Claim) का भुगतान किया गया है. उधर, सरकार की यह कोशिश भी जारी है कि इस योजना से ज्यादा से ज्यादा किसान जुड़ें. किसानों को फोन पर मैसेज भेजकर बीमा में शामिल होने की अपील की जा रही है ताकि खेती में उनका जोखिम कम हो. क्योंकि बीमा क्षेत्र घटता जा रहा है. 2018-19 सिर्फ 507.987 लाख हेक्‍टेयर क्षेत्र का ही बीमा हुआ. जबकि पहले यह इससे कहीं ज्यादा हुआ करता था.

ऐसे करें अप्लाई-पीएम फसल बीमा योजना के लिए बैंक जाकर आवेदन कर सकते हैं. इसके अलावा ऑनलाइन फॉर्म भी भरा जा सकता है. https://pmfby.gov.in/ लिंक पर जाकर आप फॉर्म भर सकते हैं. यदि आप पीएम फसल बीमा योजना के फॉर्म को ऑफलाइन भरना चाहते हैं तो इसके लिए नजदीकी बैंक शाखा पर जाना होगा.पीएम फसल बीमा योजना के लिए किसान को अपना फोटोग्राफ, आईडी कार्ड के तौर पर पैन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, वोटर आईडी कार्ड, पासपोर्ट या आधार कार्ड देना होगा.

इसके अलावा पते के प्रमाण के तौर पर भी इन्हीं दस्तावेजों में से किसी एक को दिया जा सकता है. अपने खेती के दस्तावेज रखने होंगे और खसरा नंबर की जानकारी देनी होगी. प्रधान, पटवारी या सरपंच के लेटर को पेश करना होगा कि किसान ने फसल बोई है.

अगर आपने किसी अन्य व्यक्ति के खेत को किराये पर लेकर फसल बोई है तो अग्रीमेंट के दस्तावेज दिखाने होंगे. क्लेम की राशि सीधे आपके बैंक खाते में ही आए, इसके लिए यह जरूरी होगा कि आप एक कैंसल चेक भी सौंपें.

प्राकृतिक आपदा की स्थिति में फसल कटाई से 14 दिनों पहले तक आप इसके लिए क्लेम कर सकते हैं. यहां यह बात ध्यान रखने की जरूरत है कि प्राकृतिक आपदा के अलावा अन्य किसी संकट पर बीमा की सुविधा नहीं मिलती.

पीएम फसल बीमा योजना के तहत किसानों को खरीफ की फसल के लिए 2 प्रतिशत प्रीमियम देना होता है, जबकि रबी के लिए 1.5 पर्सेंट प्रीमियम अदा करना होता है.

शर्तें, जिनसे किसान हैं परेशान 

(1) बीमा की रकम का लाभ तभी मिलेगा जब आपकी फसल किसी प्राकृतिक आपदा की वजह से खराब हुई हो.

(2) अगर बीमा का लाभ लेना है तो किसानों को किसी आपदा के 12 घंटे के अंदर व्यक्तिगत रूप से बीमा कंपनी में जाकर फसल खराब होने का दावा पेश करना होगा.

(3) योजना की एक बड़ी कमी खेत के बजाए गांव या पंचायत को एक यूनिट मानना है. यानी अगर आपके खेत में किसी प्राकृतिक वजह से नुकसान हुआ, लेकिन आसपास के बाकी खेतों में नहीं हुआ तो इंश्योरेंस नहीं मिलता है.

(4) समय पर मुआवजे की रकम का न मिलना. किसानों को फसलों के नुकसान पर मिलने वाला पैसा काफी देरी से मिलने की शिकायत है. इस वजह से भी किसान कतरा रहे हैं.

(5) कंपनियां किसानों से बिना पूछे प्रीमियम की राशि काट लेती थीं. जैसे ही किसान लोन लेता कंपनियां उसमें से प्रीमियम के पैसे काट लेती हैं. हालांकि, अब सिस्टम बंद हो गया है.

कम होता बीमित फसल का रकबा

इस योजना में बीमा कंपनियों की मनमानी की वजह से किसानों का इससे मोहभंग हो रहा है. इसकी तस्दीक साल दर साल बीमित क्षेत्र करता है. जो लगातार घट रहा है. साल 2016-17 में देश का कुल बीमित क्षेत्र 577.234 लाख हेक्‍टेयर था जो साल 2017-18 घटकर सिर्फ 515.438 लाख हेक्‍टेयर रह गया. यह सिलसिला 2018-19 में भी जारी रहा. अब यह घटकर महज 507.987 लाख हेक्‍टेयर ही रह गया. यानी पिछले तीन साल में ही 69 लाख हेक्टेयर से अधिक बीमित क्षेत्र घट गया है. ये आंकड़ा केंद्रीय कृषि मंत्रालय का है.

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फसल बीमा के प्रीमियम से मालामाल होतीं कंपनियां

योजना के डिजाइन में ही फाल्ट: देविंदर शर्मा

कृषि अर्थशास्त्री देविंदर शर्मा का कहना है कि कागजी और जमीनी हकीकत में काफी अंतर है. बीमा कंपनियां इतने मजे में हैं कि वो किसानों की कभी परवाह नहीं करतीं. योजना के डिजाइन में ही फाल्ट है. किसी बीमा कंपनी का जिले में ऑफिस नहीं है न तो उनके बीमा एजेंट हैं. कोई किसान की सुनने वाला नहीं है. फोन पर कोई उनकी सुनता नहीं. इसलिए कंपनी मजे में और किसान परेशान है. जितना पैसा सरकार इन्हें प्रीमियम के रूप में देती है उतना आपदा आने पर किसानों को खुद ही दे दे तो बेहतर होगा.

क्या स्वैच्छिक होना है वजह?

मोदी कैबिनेट ने 19 फरवरी 2020 को PM-फसल बीमा योजना में बड़ा बदलाव करते हुए किसानों के लिए इसे स्वैच्छिक कर दिया था. जबकि पहले किसान क्रेडिट कार्ड लेने वाले करीब सात करोड़ किसानों को मजबूरन इसका हिस्सा बनना पड़ता था. इस वक्त करीब 58 फीसदी किसान ऋण लेने वाले हैं. तो क्या अब स्वैच्छिक होने की वजह से लोग बीमा नहीं करवा रहे हैं? हालांकि, कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का तो मानना है कि स्वैच्छिक आधार पर स्वीकार्यता बढ़ी है.

भ्रष्टाचार से परेशान हैं किसान

राष्ट्रीय किसान महासंघ के संस्थापक सदस्य विनोद आनंद कहते हैं कि इंश्योरेंस कंपनी व किसान के बीच राज्य सरकार (राजस्व विभाग) है. जबकि बीमा केंद्रीय विषय है. किसान की फसल खराब होने के बाद पहले तहसीलदार और उसके मातहत कर्मचारी रिपोर्ट बनाते हैं, जिसमें वे खुलेआम पैसे मांगते हैं. जबकि बीमा कंपनी फसल नुकसान का आकलन निजी वेदर कंपनी स्काईमेट की रिपोर्ट पर करती है. इन दोनों की ऐसी मिलीभगत है कि कभी किसान के नुकसान की भरपाई बीमा कंपनी से नहीं हो पाती. कई क्षेत्रों में तो कंपनियां बीमा करती ही नहीं हैं.

आसानी से नहीं मिलता मुआवजा

किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष पुष्पेंद्र सिंह का कहना है कि अब तक सरकार ने ऐसी कोई व्यव्स्था नहीं बनाई है जिससे कि किसानों को आसानी से फसल बीमा योजना का लाभ मिल सके. सरकार को एक ऐप बनाना चाहिए जिसमें किसान खराब हुई फसल की फोटो और वीडियो अपलोड करके खुद ही बता दे कि नुकसान कितना प्रतिशत है. उसके बाद 14 दिन के अंदर अगर बीमा कंपनी किसान के दावे की क्रासचेकिंग न करे तो दावे को पास मानकर मुआवजे का भुगतान हो जाए. दुर्भाग्य से बीमा कंपनियां न तो किसानों के दावों का सही आकलन करती हैं और न ही समय से दावों का भुगतान होता है.

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फसल बीमा योजना की शर्तों से परेशान हैं किसान

फसल बीमा का प्रीमियम

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत खरीफ फसलों पर 2 फीसदी, रबी फसलों पर 1.5 फीसदी और बागवानी नकदी फसलों पर अधिकतम 5 फीसदी प्रीमियम लगता है. बाकी का 98 फीसदी प्रीमियम केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर देती हैं. यानी किसानों को सब्सिडी मिलती है.

सब्सिडी में केंद्र सरकार का हिस्सा पूर्वोत्तर के लिए बढ़ाया गया है. इसे 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 90 प्रतिशत किया जाएगा. बाकी का 10 फीसदी राज्य सरकार देगी. इसका मतलब है कि प्रीमियम यानी फसल के बीमा के लिए दी जाने वाली रकम में केंद्र सरकार 100 में से 90 रुपये देगी.

शेष राज्यों में केंद्रीय सहायता की दर असिंचित क्षेत्रों (पानी की कमी वाले इलाकों) में 30 प्रतिशत तक सीमित होगी. यानी ऐसी जगहों पर केंद्र सरकार 100 रुपये में से 30 रुपये देगी. बाकी का पैसा राज्य सरकार देगी. पहले ये 50 प्रतिशत था. मतलब साफ है कि केंद्र सरकार ने अपनी हिस्सेदारी घटा दी है. जबकि सिंचित क्षेत्रों के लिए यह सहायता घटाकर 25 प्रतिशत तक सीमित रखी गई है. यानी 100 में से 25 रुपये.



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