Opinion:आप्रवासी श्रमिकों को वापस भेजना केन्द्र सरकार की भावनाओं से जुड़ा मुद्दा _ government biggest challenge is Employment to immigrant workers nodark | – News in Hindi

कोरोना वायरस (Coronavirus) की लड़ाई में भारत ने बहुत सावधानी रखी है. जबकि इस दौरान देशभर के गांवों ने भी पूरी तरह लॉकडाउन का समर्थन किया है. जबकि सरकारी सूत्र बताते हैं कि अब तक 34 स्पेशल ट्रेनें चल चुकी हैं बिना किसी शोर शराबे के और हजारों मजदूरों के साथ छात्र भी घर पहुंचा दिए गए हैं. यही नहीं, केंद्र सरकार ने श्रमिकों के खाते में पैसे भी डाले हैं.
Source: News18Hindi
Last updated on: May 4, 2020, 7:12 PM IST
रोजगार का इंतजाम का होगी बड़ी चुनौती
लॉकडाउन 3 में थोड़ी आर्थिक गतिविधियां भी शुरू हो गयी हैं. ऐसे में बहुत बड़ी संख्या में मजदूरों की वापसी भी किसी भी राज्य सरकार और उद्य़ोग चलाने वालों को भी मंजूर नहीं होगी. अब थोड़ी आर्थिक गतिविधियां शुरू हुई हैं तो धीरे धीरे इन्हीं आप्रवासी मजदूरों की जिंदगी में स्थिरता और उद्य़ोग धंधों में भी तेजी आ जाएगी, लेकिन गांवों में पहुंच रहे इन मजदूरों से वहां की अर्थवय्वस्था पर असर जरूर पडेगा, जबकि जो लोग गांव पहुंचेंगे उनके पास कमाई के साधन भी नहीं होंगे. सरकार ने लॉकडाउन शुरू होने के बाद करोड़ों गरीब परिवारों के खाते में सीधे पैसे जमा कराएं हैं. सरकार आने वाले में दिनों में लगातार गरीबों के खातों में पैसा जमा कराने की योजना पर काम भी कर रही है, लेकिन चिंता यही है कि ज्यादा लोग अपने गांवों की ओर नहीं निकल पड़े, फिर उनके रोजगार का इंतजाम कहां से हो पाएगा.
श्रमिक स्पेशल ट्रेन में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन
इस सारी प्रक्रिया में वास्तव में भारतीय रेल की कोई भूमिका नहीं है, जो सरकारें लोगों को भेजना चाहती हैं और जो सरकारें अपने श्रमिकों को लाना चाहती हैं उन दोनों को भारतीय रेल उनकी इच्छानुसार मात्र एक सेवा प्रदान कर रहा है. पूरा देश जानता है कि इस लॉकडाउन के बीच हवाई तथा रेल सेवाएं आम यात्रियों के लिए बंद हैं. यह श्रमिक स्पेशल ट्रेनें सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए यानी लगभग 60% यात्री एक ट्रेन में, रास्ते में भोजन तथा पानी की व्यवस्था, सुरक्षा आदि के साथ चलाई जा रही हैं तथा वापसी में खाली ट्रेने लाई जा रही हैं. सामान्य दिनों में भी भारतीय रेल यात्रियों को यात्रा करने पर लगभग 50% सब्सिडी देती है. इन सबको ध्यान में रखकर मात्र 15-20% खर्च रेलवे भेजने वाले राज्य सरकारों से ले रही है और टिकट राज्य सरकारों को दिया जा रहा है. भारतीय रेल किसी भी प्रवासी को न तो टिकट बेच रहा है और न ही उनसे किसी प्रकार का संपर्क कर रहा है. यह इसलिये भी ज़रूरी है कि पूरी प्रक्रिया पर नियंत्रण रहे और राज्य सरकारें सुनिश्चित करें कि सिर्फ ज़रूरतमंद लोग ही इन स्पेशल ट्रेनों में यात्रा करें. ऐसा न किया जाये तो बेकाबू भीड़ इकट्ठी हो सकती है. उन पर नियंत्रण और सुरक्षा रखना असंभव होगा. उपर से रेलवे पर जो आर्थिक बोझ पडेगा सो अलग ही चिंता का विषय है सरकार के लिए.
अगर ये निःशुल्क होती तो
अगर ये सुविधा निःशुल्क होती तो नियंत्रण के बिना सभी लोग रेलवे स्टेशन पहुंच जाते, ट्रेनों में बड़ी संख्या में घुसकर लोग बिना सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किए बिना असावधानीपूर्वक यात्रा करते. किसी भी राज्य के लिए स्टेशनों पर भगदड़ को नियंत्रित करना असंभव हो जाता. इस स्थिति में राज्य सरकारों के लिए ये सुनिश्चित करना भी मुश्किल हो जाता कि वास्तव में इन ट्रेनों में प्रवासी मजदूर ही यात्रा कर रहे हैं. पूरी प्रक्रिया नियंत्रण से चले और मुसीबत में फंसे लोगों को उनके गांव तक पहुंचाया जा सके इसलिए जरूरी है कि यात्रा पर अंकुश और अनुशासन रहे. अभी तक भारतीय रेल ने 34 श्रमिक स्पेशल ट्रेन विभिन्न राज्यों से चलाई हैं और यह प्रक्रिया कोरोना वायरस महामारी को देखते हुए सुचारु रूप से चलाई है और पूरी सावधानी रखी है जिसके लिए पूरा नियंत्रण रखना अति आवश्यक है.
सरकारी सूत्र बताते हैं कि अब तक 34 स्पेशल ट्रेने चल चुकी हैं बिना किसी शोर शराबे के. हजारों मजदूर और छात्र घर पहुंचा दिए गए हैं. राज्य सरकारें ही आपस में मिल कर तय कर रही हैं और रेलवे सुविधा प्रदान कर रहा है. और ऐसे में सरकारी सूत्रों का मानना है कि कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी का बयान आप्रवासी मजदूरों में भ्रम फैलाएगा और साथ ही अफरा तफरी भी बढ़ेगी.
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First published: May 4, 2020, 4:15 PM IST