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800 साल पुरानी मस्जिद का नाम क्यों पड़ा अढ़ाई दिन का झोपड़ा one of the oldest mosques in india named adhai din ka jhonpra | knowledge – News in Hindi

800 साल पुरानी मस्जिद का नाम क्यों पड़ा अढ़ाई दिन का झोपड़ा

देश की सबसे प्राचीन मस्जिदों में से एक अढ़ाई दिन का झोपड़ा (Adhai Din Ka Jhonpra) के पीछे ढेर सारी कहानियां हैं

देश की सबसे प्राचीन मस्जिदों (oldest mosques in country) में से एक अढ़ाई दिन का झोपड़ा (Adhai Din Ka Jhonpra) के पीछे ढेर सारे विवाद हैं. माना जाता है कि इस खूबसूरत मस्जिद के निर्माण में सिर्फ ढाई दिन लगे थे.

राजस्थान के अजमेर में स्थित अढ़ाई दिन का झोपड़ा मस्जिद लगभग 800 साल पुरानी है. इसके पीछे लंबा और काफी विवादित इतिहास माना जाता है. कुछ इतिहासकारों का कहना है कि पहले ये काफी विशालकाय संस्कृत कॉलेज हुआ करता था, जहां संस्कृत में ही सारे आधुनिक विषय पढ़ाए जाते हैं. ये 1192 ईसवीं की बात है. इसी दौर में अफगान शासक मोहम्मद गोरी (Muhammad Ghori) ने देश पर हमला किया और घूमते हुए वो यहां आ निकला. उसी के आदेश पर सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक (Qutb-ud-Din-Aibak) ने संस्कृत कॉलेज को हटाकर उसकी जगह मस्जिद बनवा दी.

बाद के सालों में शमशुद्दीन (Shams ud-Din Iltutmish) ने इस मस्जिद का सौंदर्यीकरण करवाया. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि शमशुद्दीन दिल्ली सल्तनत का पहला बादशाह था. 1213 ईसवीं में मस्जिद का पुर्ननिमाण हुआ और इसकी तस्वीर बदल गई. हालांकि अब भी अढ़ाई दिन का झोपड़ा के कभी संस्कृत से जुड़ा होने के अवशेष मिलते हैं. मिसाल के तौर पर अब भी इसके मुख्य द्वार की बाईं तरफ संगमरमर का बना शिलालेख भी है, जिसपर संस्कृत में उस कॉलेज का जिक्र है.

सूफी मतानुसार ये इंसानों की नश्वरता को बताता है कि कोई भी अमर होकर नहीं आया है और ढाई दिन में ही चला जाएगा

नाम के पीछे का इतिहासअढ़ाई दिन का झोपड़ा नाम की लंबी कहानी है. माना जाता है कि तब मोहम्मद गोरी पृथ्वीराज चौहान को हराने के बाद अजमेर से गुजर रहा था. इसी दौरान उसे वास्तु के लिहाज से बेहद उम्दा हिंदू धर्मस्थल नजर आए. गोरी ने अपने सेनापति कुदुबुद्दीन ऐबक को आदेश दिया कि इनमें से सबसे सुंदर स्थल पर मस्जिद बना दी जाए. गोरी ने इसके लिए 60 घंटों यानी ढाई दिन का वक्त दिया. गोरी के दौरान हेरात के वास्तुविद Abu Bakr ने इसका डिजाइन तैयार किया था. जिसपर हिंदू ही कामगारों ने 60 घंटों तक लगातार बिना रुके काम किया और मस्जिद तैयार कर दी. अब ढाई दिन में पूरी इमारत तोड़कर खड़ी करना आसान तो नहीं था इसलिए मस्जिद बनाने के काम में लगे कारीगरों ने उसमें थोड़े बदलाव कर दिए ताकि वहां नमाज पढ़ी जा सके. मस्जिद के मुख्य मेहराब पर उकेरे साल से पता चलता है कि ये मस्जिद अप्रैल 1199 ईसवीं में बन चुकी थी. इस लिहाज से ये देश की सबसे पुरानी मस्जिदों में से है.

और भी हैं कयास
वैसे अढ़ाई दिन का झोपड़ा नाम के पीछे दूसरे तर्क भी हैं. जैसे सूफी मतानुसार ये इंसानों की नश्वरता को बताता है कि कोई भी अमर होकर नहीं आया है और ढाई दिन में ही चला जाएगा, इसलिए अच्छे काम करने चाहिए. शिक्षाविद और इतिहासकार हरविलास शारदा का मानना था कि इतिहास में इस नाम का कहीं भी जिक्र नहीं मिलता था. बल्कि इसे फकीरों की वजह से अढ़ाई दिन का झोपड़ा कहना शुरू किया गया. बहुत सालों तक अजमेर में ये अकेली मस्जिद थी. बाद में 18वीं सदी में फकीर उर्स के लिए यहां इकट्ठा होने लगे. ये लगभग ढाई दिनों तक चलता था. इसी वक्त से मस्जिद को ये नाम मिला.

फिलहाल इस मस्जिद को इंडो-इस्लामिक वास्तुकला का बेजोड़ नमूना माना जाता है

कैसी थी संस्कृत कॉलेज के दौरान इमारत
राजा Vigraharaja IV के दौरान बनाया गया ये कॉलेज वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण था. ये चौकोर था, जिसके हर किनारे पर डोम के आकार की छतरी बनी हुई थी. वैसे इस इमारत के इतिहास के बारे में अलग-अलग जानकारियां हैं. जैसे जैन धर्म को मानने वालों का कहना है कि यहां पर Seth Viramdeva Kala ने 660 ईसवीं में जैन उत्सव पंच कल्याणक मनाने के लिए इसे एक जैन तीर्थ की तरह तैयार किया था. ब्रिटिश काल के दौरान Archaeological Survey of India के डायेक्टर जनरल Alexander Cunningham, जो कि पहले ब्रिटिश आर्मी में मुख्य इंजीनियर रह चुके थे, के मुताबिक मस्जिद में लगे मेहराब ध्वस्त किए गए मंदिरों से लिए गए होंगे. वहां ऐसे लगभग 700 मेहराब मिलते हैं, जिनपर हिंदू धर्म की झलक है.

बाद के सालों में अढ़ाई दिन का झोपड़ा मस्जिद लोगों की नजरों से हटी रही. ब्रिटिश काल के ओरिएंटल स्कॉलर James Tod ने साल 1891 में मस्जिद का दौर किया. इसी मस्जिद का जिक्र उसकी किताब Annals and Antiquities of Rajastʼhan में है. जेम्स के मुताबिक ये सबसे प्राचीन इमारत रही होगी. साल 1875 से लेकर अगले एक साल तक इसके आसपास पुरातात्विक जानकारी के लिए खुदाई चली. इस दौरान कई ऐसी चीजें मिलीं, जिसका संबंध संस्कृत और हिंदू धर्मशास्त्र से है. इन्हें अजमेर के म्यूजियम में रखा गया है. फिलहाल इस मस्जिद को इंडो-इस्लामिक वास्तुकला का बेजोड़ नमूना माना जाता है और इसे देखने के लिए देश-विदेश से सैलानी आते हैं.

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First published: May 3, 2020, 2:20 PM IST



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