As India Extends Lockdown Stranded Migrant Workers Emerge as Crisis in Making | Lockdown 2.0: धैर्य खो रहे हैं बसेरों में फंसे हुए मजदूर,किसी के पास खाने को नहीं तो किसी को घर जाने की जल्दी | nation – News in Hindi


चेन्नई में खाने का इंतजार करते प्रवासी मजदूर (PTI)
बिहार (Bihar) के मुजफ्फरपुर (muzaffarpur) निवासी कुमार कंस्ट्रक्शन वर्कर हैं. लॉकडाउन का पहला फेज शुरू होने पर वह हरियाणा के अंबाला में फंस गए थे.
नई दिल्ली. कोरोना वायरस (Coronavirus) के चलते देश भर में लॉकडाउन (Lockdown In India) को 21 दिन की जगह 40 दिन कर दिया गया. अब लॉकडाउन 3 मई को खत्म होगा. राष्ट्रीय लॉकडाउन का पहला फेज 14 अप्रैल को खत्म होना था. ऐसे में मजदूरों के बड़े वर्ग को लग रहा था कि 21 दिन बाद उनके जीवन से संकट के बादल छटेंगे लेकिन लॉकडाउन की समयावधि बढ़ जाने के बाद से मजदूरों की इस उम्मीद पर पानी फिर गया है कि वह अपने घर जा सकेंगे. बिहार के मुजफ्फरपुर निवासी कुमार कंस्ट्रक्शन वर्कर हैं. लॉकडाउन का पहला फेज शुरू होने पर वह हरियाणा के अंबाला में फंस गए थे. हालांकि उन्हें लगा था कि वह 14 तारीख को वापस चले जाएंगे. लॉकडाउन बढ़ने के बाद कुमार ने कहा- मुझे लगा था कि 14 तारीख को सब खत्म होगा और मैं अपने घर चला जाऊंगा लेकिन अब नहीं पता कि मैं घर कब जा पाऊंगा. यहां खाने की दिक्कत है. इस कैंप में मौजूद लोग अब धीरज खो रहे हैं और परेशान हैं.
मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi)की ओर से लॉकडाउन बढ़ाए जाने के ऐलान के बीच खबर आई कि महाराष्ट्र स्थित बांद्रा में मजदूरों की बड़ी संख्या सड़कों पर आ गई. इसी तरह गुजरात के सूरत में भी मजदूर सड़क पर आ गए. चार दिनो में यह दूसरी बार है जब मजदूर सड़कों पर आए गये. इससे पहले 10 अप्रैल को 80 मजदूरों को सूरत में दुकानों में आगजनी करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. लॉकडाउन के दौरान केरल, नई दिल्ली समेत देश के अन्य हिस्सों में मजदूरों ने प्रदर्शन किया.
अन्य पूरी तरह से मदद करने वालों की दया पर निर्भरNews18 ने हरियाणा, नई दिल्ली, महाराष्ट्र, तेलंगाना और केरल के प्रवासी श्रमिकों से बात की. उनमें से लगभग सभी ने एक ही लाचारी और गुस्से का इजहार किया, जो घर वापस नहीं जा पाने और सरकारी बसेरों में नहीं रह सकते थे. भोजन सबसे महत्वपूर्ण चिंता है. उनमें से अधिकांश दिन में एक बार खाना कर जिन्दा हैं और अन्य पूरी तरह से मदद करने वालों की दया पर निर्भर हैं.
उत्तर प्रदेश के मनोहर कुमार के लिए हैदराबाद में हैं. यहां उनके लिए दिन और रात के खाने के लिए चावल ही ऑप्शन है. उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं पता कि मुझे कब तक यहां रहना होगा. मेरे पास बहुत सीमित संसाधन हैं, मुझे उसी के अनुसार खर्च करने की जरूरत है.’
कुमार एक कांस्ट्क्शन वर्कर हैं और फिलहाल वह जहां काम करते थे उसी के बगल में एक झोंपड़ी में हैं. उन्होंने कहा कि विभिन्न राज्यों के कई अन्य कामगार रह रहे हैं. मेरे कुछ सहकर्मी नजदीकी पुलिस स्टेशन जाने की योजना बना रहे हैं और घर लौटने के लिए वाहन की मांग कर रहे हैं.’ बताया कि उनके पास खाने का सामान जल्द ही खत्म हो जाएगा इसके बाद उनके लिए संकट और ज्यादा बढ़ जाएगा.
‘ पलायन से अर्थव्यवस्था को बहुत नुकसान पहुंचेगा’
44 साल के भगवान दास भी एक प्रवासी मजदूर हैं और वर्तमान में हरियाणा के रोहतक में 200 अन्य लोगों के साथ एक बसेरे में फंस गए हैं. उन्हें उत्तर प्रदेश के महुआ जाना है. उन्होंने कहा, ‘हम सभी लगभग भूखे मर रहे हैं. जब भी कोई आता है, तो हम उनसे खाना मांगते हैं. कुछ हमें देते हैं, कुछ नहीं. यह अब तक का सबसे कठिन समय है, जो मैंने देखा है.’ दास के पास एक बैंक खाता और एक राशन कार्ड है. लेकिन उसका कार्ड सैकड़ों किलोमीटर दूर उनके गाँव में रजिस्टर्ड है.
News18 को दिए एक इंटरव्यू में कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन ने कहा कि ग्रामीण भारत महामारी के लिए तैयार नहीं है. उन्होंने आगे बताया कि प्रवासी मजदूरों के बड़े पैमाने पर पलायन से अर्थव्यवस्था को बहुत नुकसान पहुंचेगा. विशेषज्ञों की राय थी कि अगर जल्द ही मजदूरों के लिए एक समाधान तैयार नहीं किया जाता है, तो अधिक विरोध और संभावित झड़पें हो सकती हैं.
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First published: April 15, 2020, 1:37 PM IST