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ऋषि कपूर के कैरेक्टरों ने दौर बदलने के संदेश भी दिए थे | blog-rishi-kapoor-charecters-gives-message-to-change-the-era-of-bollywood | – News in Hindi

‘मेरा नाम जोकर’ से लेकर ‘मुल्क’ तक और ‘बॉबी’ से लेकर ‘प्रेम रोग’ तक तमाम फिल्मों में बदलते दौर का प्रतीक बनने का सम्मान ऋषि कपूर को ही था.


Source: News18Hindi
Last updated on: April 30, 2020, 12:37 PM IST

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गोल मटोल चेहरे वाले एक मासूम बच्चे के तौर पर ‘मेरा नाम जोकर’ में जब राजकपूर अपने ऋषि कपूर लेकर आए तो लगा कि दौर ही बदल गया. पहली बार बढ़ती उम्र के एक बच्चे की वो नजर राजकपूर ने पेश की, जिसे लेकर फिल्मों में क्या, असल जिंदगी में बहुत सारे टैबू थे. किशोरवय के इस चरित्र को अपनी टीचर के प्रति कुछ एक आकर्षण हो गया था और उसे अपनी टीचर की शादी तक बुरी लग रही थी. हालांकि टीचर ने इसी बच्चे को अपनी शादी में बेस्ट बॉय बनाया था. इस छोटे से कैरेक्टर को अब तक दर्शक नहीं भुला सके हैं. फिर आई बॉबी. वो भी अपने दौर से बहुत आगे की फिल्म थी. इस फिल्म 1973 की इस फिल्म ने हंगामा ही मचा दिया. दर्शकों के बीच फिल्म की हिरोइन डिंपल की जितनी चर्चा हुई, ऋषि कपूर के अंदाज की चर्चा उससे कम नहीं हुई. उस समय इस फिल्म का बहुत अधिक क्रेज था. फिल्म के गानों और अपने तरीके के ऋषि के डांस ने हंगामा मचा दिया था. यहां तक कि अभी भी रोमांटिक फिल्म की चर्चा हो, तो बॉबी का जिक्र आ ही जाता है. आज भी इस फिल्म के पोस्टर का उतना ही क्रेज है.

फिल्म पर लिखी गई किताब
इसके बाद जब ‘अमर अकबर एंथोनी’ आई तो ऋषि कपूर एक जोरदार और जॉली भूमिका में थे. इस फिल्म ने भी एक अलग तरह का संदेश दिया. जो इमरजेंसी के ठीक पहले आई फिल्म के लिए जरूरी था. फिल्म के भाई-चारे के संदेश के कारण ही इसे दि हार्वर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस की एक किताब का मुद्दा बनाया गया है. हाल में ही इस किताब के कवर को अमिताभ बच्चन ने अपने एक ट्वीट में शेयर भी किया था.

दरअसल, अमर अकबर एंथोनी की कहानी तीन भाइयों पर थी, जो बचपन में ही बिछड़ जाते हैं. इन तीनों भाइयों की परवरिश अलग-अलग धर्मों में होती है. फिर भी तीनों में अपने-अपने धर्मों के लिए सम्मान और दूसरों के साथ भाइचारे की बेमिशाल पेशकश इस फिल्म में की गई. माना जाता है कि इसी कारण हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की किताब बॉलीवुड ‘ब्रदरहुड एंड दि नेशन’ नाम की एक किताब लिखी गई. ये किताब अपने आप में एक थीसिस है.

बाद के दौर में ‘सागर’ में डिंपल कपाड़िया के साथ जब ऋषि कपूर आए तो फिर उनका जादू दिखा. एक प्रेमी के तौर पर उसी अंदाज में उन्हें पसंद किया गया. फिल्म के गाने और बहुत सारे सिक्वेंस लोगों की यादों में अब भी बरकरार हैं.

ऋषि कपूर के कैरेक्टरों ने दौर बदलने के संदेश भी दिए थे | blog-rishi-kapoor-charecters-gives-message-to-change-the-era-of-bollywood

मेरा नाम जोकर के एक दृश्य में में ऋषि कपूर.

समय से आगे की रेस
अगर प्रेम रोग की चर्चा न हो तो ऋषि कपूर के अभिनय और कला की बात पूरी नहीं होती. 1982 की इस हिट फिल्म में न सिर्फ अच्छे गीत थे, बल्कि ये कहानी भी बहुत जोरदार थी. समाज की ओर से एक विधवा के जीवन में लगाए जाने वाली तमाम पाबंदियों के विरुद्ध ये एक बड़ा प्रतिकार था.

हाल-फिलहाल ऋषि कपूर की फिल्म ‘मुल्क’ में ऋषि कपूर का एक अलग ही अंदाज में नजर आए. ऐसा लगा कि दाढ़ी वाले मुराद अली मोहम्मद का उनका चरित्र लोगों के दिलों में उतर गया. इसी फिल्म में उन्होंने संदेश दिया कि हर दाढ़ी वाला ओसामा बिन लादेन नहीं होता. इससे पहले भी कई फिल्मों में अलग-अलग चरित्रों में उतर कर ऋषि कपूर दिखा चुके थे कि वे सच्चे अर्थों में कलाकार हैं. कला उनके भीतर कुछ इस कदर गहरे तक थी शायद वे ये समझते थे कि नया होना ही अच्छा होना है. पुरानी लकीर पर चल कर लोगों के दिलों में नहीं उतरा जा सकता.

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First published: April 30, 2020, 11:51 AM IST



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