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MP ने शुरू की थी अच्छी तैयारी, फिर राजनीति के खेल में पटरी से उतर गई Covid-19 से लड़ाई | bhopal – News in Hindi

नई दिल्ली. मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में कोरोना वायरस (Coronavirus) के चलते 119 लोग जान गंवा चुके हैं. वह देश के उन राज्यों में तीसरे नंबर पर है, जहां कोविड-19 ने 100 से अधिक लोगों की जान ली है. आखिर जिस प्रदेश ने कोविड-19 (COVID-19) के महामारी घोषित होने से पहले ही इससे बचाव की तैयारियां शुरू कर दी थीं, वह इस लड़ाई में कैसे पिछड़ गया. इसका जवाब प्रदेश में छिड़े सत्ता संघर्ष में दिख्ता है.

भारत में कोरोना वायरस का पहला केस 30 जनवरी को आया. इसके बाद देश में कोरोना से लड़ने के लिए तेजी से निर्णय लिए गए. लेकिन मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) पहले से सतर्क था. स्वास्थ्य विभाग ने 25 जनवरी को प्रदेश के सभी अस्पतालों को इससे जुड़े दिशानिर्देश भेजे थे. तीन दिन बाद विभाग ने सभी कलेक्टरों को निर्देश दिया कि वे जिले में टास्क फोर्स बनाएं और चीन से लौटने वालों के लिए आइसोलेशन वार्ड भी बनाएं. 31 जनवरी को डब्ल्यूएचओ (WHO) ने कोरोना को महामारी घोषित किया. इसके बाद प्रदेश सरकार ने तय किया कि 15 जनवरी के बाद चीन से लौटे हर व्यक्ति का कोविड-19 (Covid-19) टेस्ट कराया जाएगा.

आज की तारीख में मध्य प्रदेश में 2500 से अधिक लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हैं. इंदौर और उज्जैन प्रदेश ही नहीं, देश के सबसे बड़े हॉटस्पॉट बन चुके हैं. साफ लग रहा है कि जिस प्रदेश ने कोरोना से लड़ाई में अच्छी शुरुआत की थी, वह सत्ता संघर्ष में ऐसा उलझा कि उसे राजनीति के चक्कर में यह याद ही नहीं रहा कि सामने कोई बड़ा संकट खड़ा है. अब कांग्रेस कह रही है कि बीजेपी को उसकी दिलचस्पी तो सिर्फ सरकार गिराने में थी, कोरोना संकट का तो अहसास ही नहीं था. दूसरी ओर, बीजेपी कह रही है कि जब उसने सत्ता संभाला, तब अस्पतालों की हालत खराब थी.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक एक सीनियर ब्यूरोक्रेट कहते हैं कि शुरुआती प्रयास के बाद गाड़ी पटरी से उतर गई है. उन्होंने कहा, ‘हमने जनवरी से उन लोगों की तलाश शुरू कर दी थी, जो चीन से लौटे थे. स्वास्थ्य विभाग ने फरवरी में ही दर्जनों ऐसे नोट भेजे थे. हमने कोरोना से लड़ाई की तैयारी तभी कर ली थी, जब यह खतरनाक स्थिति में नहीं पहुंचा था.’तीन मार्च को मुख्य सचिव सुधी रंजन मोहंती ने सभी जिलों के कलेक्टर और एसपी से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की थी. उनसे कहा गया था कि विदेश से लौटने वाले सभी लोगों का मेडिकल चेक-अप कयिा जाए. लेकिन इसके बाद बीजेपी और कांग्रेस के बीच सरकार गिराने और बचाने की लड़ाई शुरू हो गई. एक सीनियर अधिकारी कहते हैं, ‘कमलनाथ सरकार खुद को बचाने में लग गई. उसके स्वास्थ्य मंी ने तब कहा था कि प्रदेश में कोरोना का एक भी मरीज नहीं है. इससे राजनीतिक दलों ने कोरोना को हल्के में ले लिया.’

कमलनाथ सरकार में तब तुलसीराम सिलावट स्वास्थ्य मंत्री थे, जो अब बीजेपी की शिवराज सरकार में मंत्री बन चुके हैं. वे छह मार्च को कैबिनेट की मीटिंग में शामिल हुए थे. इसके बाद प्रदेश में होली नहीं मनाने के निर्देश जारी हुए थे. सभी स्कूल-कॉलेज, मॉल्स बंद कर दिए गए थे. लेकिन सभी जानते हैं कि इसके बाद मध्य प्रदेश में कोरोना से नहीं, सत्ता की लड़ाई लड़ी गई.

14 मार्च को इंदौर में रंगपंचमी का त्योहार जोर-शोर से मनाया गया. तब कांग्रेस के कोरोना संकट का जिक्र करने पर शिवराज सिंह चौहान समेत बीजेपी नेता मजाक उड़ाते हुए कहते थे कि यह ‘कोरोना नहीं, डरोना’ है. माना जाता है कि कोरोना वायरस 14 से 24 मार्च के बीच प्रदेश में तेजी से फैला. यह वही वक्त था, जब प्रदेश में सरकार होते हुए भी व्यवस्था शायद ही थी. 20 जनवरी को कमलनाथ सरकार गिर गई और इसी दिन जबलपुर में कोरोना का पहला केस सामने आया.

मध्य प्रदेश में कोरोना का पहला मामला सामने आने के 15 दिन बाद तक इससे बचाव के ज्यादा प्रयास देखने को नहीं मिले. एक अधिकारी कहते हैं, ‘शिवराज सरकार ने शुरुआती 15 दिन लगभग गंवा दिए क्योंकि इस वक्त कोई स्पष्ट निर्देश नहीं थे.’ शिवराज ने 23 मार्च को शपथ ली थी. करीब एक महीने तक वे प्रदेश में अकेले मंत्री रहे. आज भी उनकी कैबिनेट में पांच मंत्री ही हैं.

शिवराज सरकार का शुरुआती समय ब्यूरोक्रेसी में बदलाव करने में बीता. एक अधिकारी ने कहा, ‘ऐसे समय में तीन-चार टीमें होनी चाहिए. लेकिन यहां तो एक ही टीम हर तरह की निगरानी कर रही थी. यहां कोई हेल्थ मिनिस्टर नहीं था. कोई प्रिंसिपल सेक्रेटरी नहीं था. कोई हेल्थ डायरेक्टर नहीं था.’ आज स्थिति यह है कि प्रदेश में 2500 से अधिक कोरोना संक्रमित हैं और यह वायरस शहर से गांव की ओर बढ़ रहा है.

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