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उद्धव ठाकरे के लिए इतनी जरूरी क्यों है विधान परिषद की सीट? | Why is the Legislative Council seat so important for Uddhav Thackeray? | nation – News in Hindi

उद्धव ठाकरे के लिए इतनी जरूरी क्यों है विधान परिषद की सीट?

शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस सरकार के सामने संकट ये है कि वो अपने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की कुर्सी कैसे बचाती है. (फाइल फोटो)

विधनासभा का कोई उपचुनाव फिलहाल होने वाला नहीं है और वर्तमान हालात में महाराष्ट्र में विधानपरिषद का चुनाव भी होता नहीं दिख रहा है. ऐसे में शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस सरकार के सामने संकट ये है कि वो अपने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की कुर्सी कैसे बचाए.

कोरोना संकट के बीच महाराष्ट्र में उपमुख्यमंत्री समेत सत्ता दल के तमाम नेताओं ने कल राज्यपाल से मुलाकात कर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) को विधान परिषद में भेजने की सिफारिश की. ऐसे में सवाल उठता है कि कोरोना संकट के बीच उद्धव ठाकरे का विधान परिषद जाना इतना जरुरी क्यों हैं. ऐसे में ये जानना जरुरी है कि 28 नवंबर को मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करने वाले उद्धव ठाकरे अभी भी महाराष्ट्र के किसी सदन के सदस्य नहीं हैं. दरअसल संविधान की धारा 164 (4) के अनुसार कोई मंत्री या मुख्यमंत्री जो निरंतर छह महीने तक की किसी अवधि तक राज्य के विधानमंडल का सदस्य नहीं है, तो वह उस अवधि की समाप्ति पर मंत्री नहीं रहेगा. साफ है ऐसे में उद्धव ठाकरे को 27 मई से पहले विधनसभा या विधान परिषद किसी भी सदन का सदस्य होना जरुरी हो जाता है.

विधनासभा का कोई उपचुनाव फिलहाल होने वाला नहीं है और वर्तमान हालात में महाराष्ट्र में विधानपरिषद का चुनाव भी होता नहीं दिख रहा है. हालांकि राज्य में 9 विधानपरिषद की सीटें खाली हैं. लेकिन चुनाव आयोग ने फिलहाल कोरोना के चलते इन सीटों पर चुनाव अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया है. ऐसे में खतरा उद्धव ठाकरे की कुर्सी को ओर बढ़ रहा है.

कैसे बचेगी की उद्धव की कुर्सी?

अब शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस सरकार के सामने संकट ये है कि वो अपने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की कुर्सी कैसे बचाती है. इसके कई रास्ते हैं, लेकिन हर रास्ता चुनाव आयोग और राज्यपाल की ओर से ही जाता है पहला रास्ता ये है कि 3 मई को जब लॉकडाउन खत्म हो जाए, चुनाव आयोग विधान परिषद के चुनाव की अधिसूचना जारी करे और उसे 28 मई से पहले इन 9 सीटों पर चुनाव करा ले. क्योंकि विधानपरिषद के चुनाव की प्रक्रिया आमतौर पर 15 दिन में ही पूरी कर ली जाती है, कई लेकिन विधान परिषद में भले ही 11 सीटें रिक्त हों लेकिन उद्धव ठाकरे की राह इतनी आसान नहीं है. दरअसल विधान परिषद की जिन 9 सीटों पर चुनाव होना है वो कब होगें ये पूरा अधिकार चुनाव आयोग के पास है. कोराना संकट के इस दौर में जब किसी तरह की भीड़ जुटने की मनाही है चुनाव आयोग फिलहाल विधान परिषद चुनाव कराता नहीं दिख रहा है.दूसरा रास्ता ये है कि राज्य विधान परिषद के 12 मनोनीत सीटों में रिक्त 2 सीटों में से एक पर राज्यपाल मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को मनोनित कर दें, जिसका प्रस्ताव राज्य कैबिनेट ने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को भेज रखा है. लेकिन ये रास्ता भी आसान नहीं दिख रहा है. उनपर किसका मोननय होगा इसमें कैबिनेट के फैसले को मानने या न मामने का अधिकार राज्यपाल के पास है इससे पहले भी राज्यपाल ने इन 2 रिक्त सीटों के लिए अदिति नाडवले और शिवाजी गुर्जे के नाम की कैबिनेट की सिफारिश को खारिज कर दिया था, यहां एक बात और गौर करने की है कि इन दोनों सीटों पर कार्यकाल 6 जून का समाप्त हो जाएगा यानि अगर उद्धव इन सीटों में किसी एक पर मनोनीत होते है तो भी उन्हें जल्द से जल्द किसी और रास्ते सदन में आना पड़ेगा. लेकिन यहां उद्धव को 6 जून के बाद 6 महीने और यानि 6 दिसंबर तक का समय मिल जाएगा.

वहीं, तीसरा रास्ता ये भी है कि मुख्यमंत्री इस्तीफा देकर कुछ दिनों बाद एक बार फिर शपथ ग्रहण करें. हालांकि इस रास्ते में भी तमाम मुश्किलें हैं, विशेषज्ञ इस रास्ते को आसान नहीं मानते. सुप्रीम कोर्ट बार एशोसिएसन के पूर्व अध्यक्ष विकास सिंह का मानना है कि वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए चुनाव आयोग को 28 मई से पहले चुनाव करा लेना चाहिए. इसके लिए सरकार चाहे तो अदालत का दरवाजा खटखटा सकती है, लेकिन पद से इस्तीफा देकर दोबारा शपथ लेने को वो ठीक नहीं मानते. सुप्रीम कोर्ट पहले भी पंजाब के एक मामले में ऐसे ही विधानसभा के कार्यकाल में दोबारा शपथ लेने वाले एक मंत्री को अयोग्य ठहरा चुकी है.

हाईकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं उद्धव

दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता एम एल लाहौटी दोबारा शपथ ग्रहण को गलत नहीं मानते, उनका मानना है कि वर्तमान परिस्थितियों के किसी ने कल्पना नहीं कि थी इसलिए संविधान में इसके लिए साफ-साफ कोई रास्ता नहीं है ऐसे में अगर 28 मई तक महाराष्ट्र में विधान परिषद का चुनव नहीं होता और राज्यपाल उन्हें मनोनीत भी नहीं करते तो उद्धव ठाकरे उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायलय का दरवाजा खटखटा सकते हैं.

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First published: April 29, 2020, 11:21 PM IST



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