कोरोना से निपटना है तो सौ साल पुराने स्पेनिश फ्लू से लेने होंगे ये 6 सबक | Know what learning from spanish flu are must to curb corona virus | knowledge – News in Hindi

सौ साल पहले, 1918 से 1919 के बीच जब पहला विश्व युद्ध (World War) खत्म होने को था और करीब 4 करोड़ जानें ले चुका था, तभी एक वैश्विक महामारी के रूप में स्पेनिश फ्लू का कहर बरपा, जिसने उस समय कम से कम 5 करोड़ और अधिकतम 10 करोड़ जानें लीं. करीब 1.4 करोड़ जानें तो सिर्फ भारत (India) में गई थीं. यानी एक बात तो साफ है कि युद्ध से बेहतर तैयारी की ज़रूरत महामारियों के लिए होना चाहिए. 100 साल पुरानी वैश्विक महामारी से और क्या समझा जा सकता है? आइए जानें.
मनुष्य क्या हमेशा जीत सकता है?
सौ साल पहले, वो दुनिया बहुत अलग थी. तबके संपन्न या अग्रणी देश भी कई मामलों में पिछड़े हुए थे क्योंकि वैज्ञानिक तरक्की उतनी नहीं थी. इस बात को ऐसे समझें कि पेनिसिलिन के तौर पर पहली बार कोई एंटिबायोटिक 1928 में उपलब्ध हुई. वायरसों की खोज ही 1930 के दशक तक नहीं हुई थी क्योंकि पर्याप्त शक्तिशाली माइक्रोस्कोप तक नहीं थे. ऐसे में एक महामारी से मनुष्यों ने लड़ाई की और इससे उबरे. तो क्या इसे हम यह कह सकते हैं कि यह मनुष्यों की जीत थी?

मिसूरी में मास्क और यूनिफॉर्म पहने रेडक्रॉस मोटर कॉर्प्स के सदस्य 1918 में स्पेनिश फ्लू के मरीज़ों को स्ट्रेचर पर लिये हुए.
समझ पहली : पलटकर आता है ये दुश्मन
सौ साल पहले, स्पेनिश फ्लू ने साबित किया कि वैश्विक महामारी नाम का दुश्मन एक बार में खत्म नहीं होता, बल्कि पलटकर आता है. 1918 के बसंत काल से स्पेनिश फ्लू का पहला दौर शुरू हुआ था. सितंबर तक जब ऐसा लगने लगा कि प्रकोप खत्म होने को है, तब दूसरा और सबसे खतरनाक दौर शुरू हुआ. फिर एक बार और उम्मीद जगी तभी फरवरी 2019 से इस महामारी की तीसरी लहर दिखी. कुछ देशों में 1920 में इस महामारी का चौथा दौर भी देखा गया था.
मौजूदा हाल : चीन सहित कई देशों में कोविड 19 महामारी के दो से तीन दौर तक देखे जा चुके हैं.
समझ दूसरी : बड़ी आबादी में संक्रमण ज़रूरी!
सौ साल पहले, चूंकि न तो स्पेनिश फ्लू का कोई इलाज था न टीका, जैसा कि अभी कोरोना वायरस संक्रमण के समय है, इसलिए यह बीमारी बड़े पैमाने पर फैलती चली गई. तब तक फैली जब तक इसके खिलाफ सामूहिक इम्यूनिटी पैदा नहीं हो गई. इसका मतलब होता है कि आबादी का बड़ा हिस्सा संक्रमित होकर ठीक हो जाए और फिर इस हिस्से की वायरस से लड़ने की क्षमता का लाभ बाकी आबादी को मिले.
समझ तीसरी : निमोनिया होता है जानलेवा
स्पेनिश फ्लू के मुख्य लक्षणों में एक निमोनिया देखा गया था, जो कई मामलों में जानलेवा साबित हुआ था. 1918 की यह हालत 2020 से काफी मेल खाती है क्योंकि कोविड 19 के कई संक्रमितों में निमोनिया मुख्य लक्षण के तौर पर देखा गया और इसी में जटिलताएं होने पर कई मामलों में मौतें हुईं.
मौजूदा हाल : निमोनिया अब भी मुख्य लक्षणों में से एक है हालांकि कोरोना वायरस संक्रमण के चलते मौतों की दर स्पेनिश फ्लू के मुकाबले बहुत कम है.
समझ चौथी : अलग वायरस का अलग निशाना
कुछ स्तरों पर समानताओं के बावजूद स्पेनिश फ्लू के वायरस और कोरोना वायरस में कुछ अलग भी है, जो मनुष्यों ने इतिहास से जाना है. अलग वायरस अलग आबादी को अपना निशाना बनाता है. जैसे स्पेनिश फ्लू के वक्त युवा और अच्छी इम्यूनिटी वाले लोग भी कम चपेट में नहीं थे. युवाओं से बूढ़ों तक सब भारी संख्या में संक्रमित भी हुए थे और मारे भी गए थे.
समझ पांचवी : स्वास्थ्य सुरक्षा ज़रूरी
प्रति एक हज़ार की आबादी पर अस्पतालों में कितने बिस्तर हैं? अमेरिका में 1960 के दशक में यह आंकड़ा 9 बिस्तरों का होता था लेकिन 2017 में 3 बिस्तरों से कम का रह गया है. विकासशील देश भारत में एक हज़ार की आबादी पर आधे से कुछ ज़्यादा बिस्तर उपलब्ध होने का आंकड़ा है. 1918 में इससे बेहतर हालत थी. रिपोर्ट्स कहती हैं कि उस वक्त डॉक्टर भले ही कम हों लेकिन बिस्तर आज की तुलना में कम नहीं थे.
मौजूदा हाल : स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए मूलभूत ढांचे पर विकसित से लेकर विकासशील और पिछड़े देश यानी पूरी दुनिया पिछड़ी हुई साबित हो चुकी है. जितनी किट्स की ज़रूरत है, नहीं हैं, जितने टेस्ट किए जाने ज़रूरी हैं, नहीं हो रहे और इसी तरह मरीज़ों व डॉक्टरों के लिए ज़रूरी सुविधाओं का टोटा ही है.
समझ छठी : अर्थव्यवस्था नहीं, स्वास्थ्य प्राथमिकता
सौ साल पहले, 1918 की सबसे भयंकर महामारी के समय भी सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क पहनने, क्वारैण्टीन और बेसिक हाईजीन जैसे तरीकों के साथ ही अमेरिका समेत कई जगह लॉकडाउन, और यातायात प्रतिबंध जैसे कदम उठाए गए थे. तब भी तुरंत असर के तौर पर अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान होना देखा गया था. लेकिन, जिन शहरों में प्रतिबंध थे, वहां मीडियम टर्म में अर्थव्यवस्था को पर कोई बुरा असर नहीं दिखा बल्कि महामारी के बाद आर्थिक गतिविधियों में तुलनात्मक रूप से तेज़ी देखी गई.
मौजूदा हाल : अमेरिका और यूरोप के कई देश महामारी के कारण अर्थव्यवस्था को हो रहे नुकसान को लेकर लगातार चिंता जता चुके हैं और कुछ खबरों की मानें तो वैक्सीन के लिए हड़बड़ी भी दिखाई जा रही है.
क्या स्पेन में पैदा हुआ था स्पेनिश फ्लू?
सौ साल पहले के फ्लू से समझाइशें लेने के बाद ये भी जानिए कि उस वक्त महामारी स्पेन में शुरू नहीं हुई थी बल्कि संभवत: जर्मनी से फैली थी. उस वक्त दुनिया भर में प्रेस की स्वतंत्रता पर संकट था, लेकिन स्पेन में प्रतिबंध न के बराबर थे इसलिए उसने इस महामारी की खबरें छापी थीं. इसी वजह से इसे बाद में स्पेनिश फ्लू कहा गया और अब इसे एच1एन1 इन्फ्लुएंज़ा या स्वाइन फ्लू के नाम से जाना जाता है.
फ्लू की महामारी ने 1957, 1968 और 2009 में भी तबाही मचाकर करीब 30 लाख जानें लीं. महामारियां जानलेवा रही हैं और पूरे लेख का सार यही है, जो पहले कहा गया था कि महामारियों के खिलाफ लड़ने की तैयारी युद्ध की तैयारी से भी बेहतर और बड़े पैमाने पर होना चाहिए.
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