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Reliance Jio-Facebook Deal- वो 4 कारण जो बताते हैं कि ये डील भारत के लिए कितनी अच्छी है-Opinion Dr Subramanian Swamy 4 Reasons Why Reliance Jio-Facebook Deal is Good for India | business – News in Hindi

डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी

पिछले कुछ दशकों में रिलायंस इंडस्ट्रीज (Reliance Industries) ने काफ़ी तरक़्क़ी की है: कपड़ों (ओनली विमल) से लेकर बहु-आयामी, आधुनिक, 21वीं सदी के कॉरपोरेट समूह बनने तक. इसके संस्थापक धीरूभाई अंबानी की दृढ़ता और उनके बेटे मुकेश अंबानी के नई बातों को आज़माने के साहस ने कई लोगों को आश्चर्यचकित किया है जिसमें मैं भी शामिल हूं.

एक बात जिसका उदाहरण मैं बार-बार अपने सार्वजनिक भाषणों में देता हूं कि आरआईएल जामनगर में पानी के खारेपन को दूर करने के लिए संयंत्र लगा रही है. यह इलाका पानी की कमी से जूझ रहा है, जिसका असर आरआईएल के आधुनिक संयंत्र पर भी पड़ रहा है.

आज जिस एक बात को लेकर इस समूह ने पूरे देश का ध्यान खींचा है वह है रिलायंस जियो में फ़ेसबुक का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश. फ़ेसबुक ने जियो प्लेट्फ़ॉर्म्स की 9.99 फीसदी हिस्सेदारी ख़रीदी है जिसकी क़ीमत लगभग 5.76 अरब डॉलर (लगभग 43,574 करोड़ रुपए) है.कुछ लोगों ने इस क़रार पर यह कहकर अपनी प्रतिक्रिया ज़ाहिर की है कि यह स्वदेशी के प्रति भाजपा की प्रतिबद्धता को नकारना है. लेकिन स्वदेशी का मतलब हमेशा से आत्मनिर्भरता रहा है न कि आत्मप्रचुरता. सरकार की स्वदेशी की नीति के रूप में विदेशी व्यापार और निवेश की अनुमति दी जाती है बशर्ते निर्यात से होनेवाली आय और वाणिज्यिक उधारी आयात पर होनेवाले खर्च की भरपाई करने के साथ-साथ विदेशी मुद्रा भंडार में भी वृद्धि करे.

अगर हम आयात पर होने वाले खर्च को पूरा करने और बाहरी ऋण को चुकाने के लिए ज़रूरी विदेशी मुद्रा निर्यात कारोबार से अर्जित कर लेते हैं तो देश सुरक्षित रहता है और स्वदेशी का सिद्धांत भी.
रिलायंस जियो क़रार में फ़ेसबुक के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के लाभ-हानि का अगर लेखा-जोखा किया जाए तो पता चलता है कि दोनों ही पक्ष को इससे लाभ है, इससे हमें विदेशी मुद्रा मिली है और इसलिए यह वाणिज्यिक दृष्टि से समझदारी भरा क़रार है.

यही कारण है कि इसी सिद्धांत के आधार पर केंद्र की भाजपा सरकार ने ऐमज़ॉन और वॉल्मार्ट-फ्लिपकार्ट के बीच भारत में क़रार को अनुमति दी है. लेकिन दुर्भाग्य से अभी तक इसे कोई और प्रतिस्पर्धा देने वाला नहीं आया है. इसकी वजह से इनके स्थानीय कारोबार में अंडर और ओवर इन्वॉइसिंग के आरोप लगते रहे हैं. इस तरह की अनियमितताएं, अगर कोई है, तो उसे कोई ज़्यादा बड़ा प्रतिस्पर्धी निवेशक ही सक्षमता से रोक सकता है.

रिलायंस जीयो-फ़ेसबुक क़रार के बहुत सारे अन्य फ़ायदे भी हैं. पहला, फ़ेसबुक जिसमें व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम भी शामिल हैं, की पहुंच 400 मिलियन यूज़र्स तक है. रिलायंस जियो के क्लाइंट की संख्या भी, कुछ ओवरलैप के साथ लगभग उतनी ही है. लेकिन अब आरआईएल की नई कंपनी जियोमार्ट ई-कॉमर्स और ई-पेमेंट की सेवाएं भी शुरू करने जा रही है.

इस तरह, आरआईएल को इसका निजी लाभ होगा क्योंकि उसको 43,570 करोड़ रुपए का फंड मिलेगा जिसको वह अपना ऋण बोझ कम करने में लगा सकता है (जियो पर ₹40,000 करोड़ का कर्ज़ है), जियो-फ़ेसबुक मिलकर ई-कॉमर्स और ई-सर्विसेज़ के क्षेत्र में दूसरे प्रतिस्पर्धियों से मुक़ाबला कर सकते हैं और व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम के यूज़र्स जियोमार्ट की पहुंच का और विस्तार करने में मदद करेंगे जिससे वह अच्छी प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं, अपने मार्जिंस को कम कर सकते हैं और इस तरह उपभोक्ताओं को कम क़ीमत का लाभ पहुंचा सकते हैं.

दूसरा, जियोमार्ट ने नवी मुंबई, ठाणे और कल्याण के अलावा आरआईएल के 6700 छोटे-बड़े शहरों में मौजूद रिटेल स्टोर्स में इसका ट्रायल भी शुरू कर दिया है, जिसमें 1,25,000 लोगों को रोजगर मिला हुआ है. व्हाट्सएप छोटे व्यवसायों से भी जुड़ा हुआ है जिसके माध्यम से उपभोक्ताओं से ऑर्डर लेना और इंटरनेट और मोबाइल फ़ोन की मदद से ऑफ़र्ज़ का प्रचार-प्रसार भी किया जा सकता है. इस तरह, फ़ेसबुक और जियो का बाज़ार बहुत ही व्यापक होगा और उपभोक्ताओं को बहुत ही ज़्यादा सहूलियत उपलब्ध होगी.

तीसरा, लोग अपने मोबाइल फोन के ज़रिए नज़दीक के किराना स्टोर तक पहुंच पाएंगे और होम डिलीवरी के लिए ऑर्डर दे सकेंगे. यहां भी, जियो-फ़ेसबुक इंटरनेट और सेलफ़ोन के माध्यम से लाखों व्यापारी और किराना कारोबारी तक पहुंच सकता है और लोगों को सामान ख़रीदने के लिए दुकान तक जाने की ज़हमत नहीं उठानी पड़ेगी.

चौथा, जियो-फ़ेसबुक की जोड़ी सरकार की अनुमति से क्रिप्टोकरेंसी नेटवर्क की संभावनाओं की तलाश कर सकती है. भारत सरकार ने ब्लॉकचेन तकनीक की अनुमति पहले ही दे रखी है. डिजिटल करेंसी के लिए अंतिम चरण तक पहुंचने में अभी थोड़ा वक्त लग सकता है क्योंकि विनियामक व्यवस्था अभी स्थापित नहीं की गई है. एक बार जब यह हो जाता है, काले धन का प्रयोग मुश्किल हो जाएगा. क्रिप्टोकरेंसी और ब्लॉकचेन के माध्यम से गुपचुप ग़ैरक़ानूनी कारोबार असंभव हो जाएगा.

लेकिन यहां सावधानी बरतने की भी ज़रूरत है : प्राइवेसी और डाटा सुरक्षा के अभाव में अमेरिका के कड़े राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के अपने परिणाम हो सकते हैं. इस समय भारत में निजता के बारे में इस तरह का कोई क़ानून नहीं है और इसलिए फ़ेसबुक-जियो के बीच इस करार से जो व्यापक डाटा पैदा होगा वह सिर्फ़ एक ही दिशा में भारत से अमेरिका की ओर जाएगा.

भारत सरकार को चाहिए था कि वह निजता का क़ानून और सर्वर की सुरक्षा के बारे में क़ानून ऐमज़ान और वॉल्मार्ट-फ्लिपकार्ट के बीच समझौते की अनुमति देने से बहुत पहले पास कर देती.

अब डाटा की सुरक्षा और निजता के बारे में ज़्यादा संवेदनशीलता दिखाने का एक और मौक़ा आ गया है और आधार को लागू करने के बाद से सरकार ने इस बारे में संवेदनशीलता ज़ाहिर नहीं की है.

तुलना के लिए हम अमेरिकी निर्यात नियंत्रण सुधार अधिनियम, 2018 को देख सकते हैं जिसमें अमेरिकी कांग्रेस ने अमेरिकी राष्ट्रपति से इंटर-एजेंसी प्रक्रिया शुरू करने को कहा ताकि “अमेरिका के लिए ज़रूरी अधुनातन और मौलिक तकनीक” की पहचान की जा सके. फ़ेसबुक-जियो क़रार अमेरिकी सरकार के वाणिज्य विभाग के कारोबार की सूची के तहत आता है.

इसलिए, मैं रिलायंस-फ़ेसबुक एफडीआई के क़रार को दोनों के लिए अच्छा मानता हूं बशर्ते इसके लिए ज़रूरी क़ानूनी शर्तों को पूरी कर ली जाए जिसके तहत निजता अधिनियम का संसद से पास होना भारत के लिए भी अच्छा रहेगा.

(डॉक्टर सुब्रमण्यम स्वामी राज्य सभा के सदस्य हैं और जाने-माने अर्थशास्त्री भी. यह उनके निजी विचार हैं)



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