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Corona Impact: 200 साल पुरानी परंपरा तोड़ते हुए रमजान में दो दिन से खामोश है रायसेन किले की तोप – Corona Impact cannon of Raisen fort is silent for two days in Ramadan, breaking the 200 year old tradition | raisen – News in Hindi

दुनिया के ज्‍यादातर देशों में रमजान (Ramadan) के पूरे महीने रोजेदारों को अजान सुनकर सेहरी और अफ्तारी के सही समय की जानकारी मिलती है. वहीं, मध्‍य प्रदेश (Madhya Pradesh) में रायसेन जिले के करीब 30 गांवों के लोगों को इन दोनों समय की सही जानकारी तोप के धमाके से दी जाती है. रायसेन किले (Raisen Fort) से रमजान के महीने में हर दिन तोप (Cannon) दागे जाने की यह परंपरा 200 साल पुरानी है.

रमजान के महीने में तोप चलाने की यह परंपरा नवाबी शासन काल से चली आ रही है. ये परंपरा शुरू होने से लेकर आज तक तोप चलाने का काम एक ही परिवार के लोग कर रहे हैं. यहां के 30 गांवों के लोग पहाड़ी से गूंजने वाली धमाके की आवाज के बाद ही रोजा खोलते हैं. लेकिन… इस बार तीन दिन से ये तोप खामोश है. दरअसल, कोरोना वायरस (Coronavirus in India) के कारण इस बार जिला प्रशासन ने तोप चलाने की अनुमति नहीं दी.

सहरी की तैयारी के लिए नगाड़ा बजाने की भी है परंपरा
रायसेन किले से तोप चलाने के साथ-साथ सेहरी की तैयारी करने के लिए नगाड़े बजाने का सिलसिला भी 200 साल पहले ही शुरू हुआ था. नगाड़े किले की प्राचीर से बजाए जाते हैं. इससे इनकी आवाज मीलों दूर तक सुनाई देती है. हर बार की तरह इस बार भी मुस्लिम त्‍योहार कमेटी ने तोप चलाने के लिए अस्थायी लाइसेंस का आवेदन किया था, लेकिन संक्रमण के कारण पुलिस और प्रशासन ने अनुमति नहीं दी.

रायसेन किले से तोप चलाने के लिए हर साल जिला प्रशासन एक महीने का लाइसेंस जारी करता है.

बता दें कि रायसेन किले से इस तोप को चलाने के लिए हर साल जिला प्रशासन एक महीने का लाइसेंस जारी करता है. इस बार रायसेन जिले में कोरोना पॉजिटिव (Corona Positive) की संख्या लगातार बढ़ रही है. अब तक जिले में संक्रमितों की संख्‍या 25 से ज्‍यादा हो गई है. इसलिए शहर रेड जोन (Red Zone) में है और टोटल लॉकडाउन (Lockdown) लागू है. ऐसे में जिला प्रशासन कोई जोखिम नहीं लेना चाहता था.

तोप चलाने वालों को पहले से करनी होती है काफी तैयारी
हर दिन तोप चलाने के लिए आधे घंटे पहले तैयारी करनी होती है. तोप चलाने से पहले दोनों टाइम टांके वाली मस्जिद से सिग्‍नल मिलता है. सिग्‍नल के तौर पर मस्जिद की मीनार पर लाल रंग का बल्ब जलाया जाता है. इसके बाद किले की पहाड़ी से तोप चलाई जाती है. तोप को चलाने के लिए रस्सी बम को भरने वाली बारूद का इस्‍तेमाल किया जाता है.

एक बार तोप चलाने के लिए 100 से 150 ग्राम बारूद का उपयोग होता है. सेहरी की सूचना देने के लिए तोप चलाने वाले सुबह 3.10 बजे किले की पहाड़ी पर चढ़ते हैं. इसके बाद सुबह 3.40 मिनट पर तोप चलाकर सेहरी की जानकारी देते हैं. इसी प्रकार अफ्तारी के लिए शाम को 6.45 बजे किले पर पहुंचकर तोप चलाई जाती है. ईद के बाद तोप की सफाई कर इसे सरकारी गोदाम में पहुंचा दिया जाता है.

तोप चलाने वाले सुबह 3.10 बजे और शाम 6.15 बजे किले की पहाड़ी पर चढ़ते हैं.

शहर काजी ने लोगों से की है अपने घरों में ही रहने की अपील
शहर काजी जहीरुद्दीन ने इस बार समुदाय के लोगों से अपील की है कि नियमों का पालन करें और मालिक से दुआ करें ताकि सभी इस महामारी से सुरक्षित रहें. सभी घर में ही रहकर इबादत करें. मस्जिद सिर्फ वही 2-3 लोग जाएं, जिन्हें अनुमति मिली है. शहर काजी ने लोगों से रमजान के दौरान किसी भी दूसरे के घर नहीं जाने और किसी को अपने घर नहीं बुलाने की अपील की है.

शहर काजी ने कहा कि सभी लोग रमजान के महीने में जरूरी सामान से ही काम चलाएं. लॉकडाउन भीड़ को रोकने और सभी को सुरक्षित रखने के लिए लगाया गया है. इस महामारी से बचना है तो ज्‍यादा लोग किसी एक जगह इकट्ठा ना हों. प्रशासन के दिशानिर्देशों का पालन करें. रायसेन मुस्लिम कमेटी के अध्यक्ष मोहम्मद अमीन ने कहा कि सभी लोग अपने घरों पर ही रहें और लॉकडाउन का पालन करें.

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