Exclusive Lab technician posted at Bhopal AIIMS ignores his family bonds and chooses his actions towards corona patients NODAKM | Exclusive: 7 दिन की ड्यूटी, 14 दिनों का क्वारंटाइन; पढ़िए भोपाल के कोरोना योद्धा के संघर्ष की कहानी | bhopal – News in Hindi
गौरव यह कई बार समझाने की कोशिश कर चुके थे कि उनकी ड्यूटी उस लैब में नहीं है, जहां पर कोरोना संक्रमित मरीजों (Corona Infected Patients) के सैंपल टेस्ट किए जाते हैं. लेकिन, ऊषा कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थीं.
खैर, आज ऊषा बहुत खुश थी. खुशी की वजह यह थी कि आज गौरव बिना फोन किए जल्दी घर आ गए थे. और, जबसे घर आए थे तब से अपने 3 साल के बेटे गौरांश के साथ मस्ती में जुटे थे. तभी गौरव के मोबाइल की घंटी बजने लगती हैं. ऊषा फोन उठाकर देखती हैं तो मोबाइल की स्क्रीन पर पर एचओडी डिस्प्ले हो रहा था. ऊषा दौड़कर गौरव को फोन देती हैं और वहीं खड़े होकर फोन पर होने वाली बातचीत का इंतजार करने लगती हैं. गौरव को समझ में आ जाता है कि दोनो तरफ से मामला गड़बड़ है. गौरव कॉल पिक करते हैं और मुंह से सिर्फ हैलो निकलता है.
फोन पर दूसरी तरह मौजूद गौरव के बॉस हालचाल की औपचारिकता पूरी करते हैं और सीधे मुद्दे पर आ जाते हैं. गौरव, तुम्हें पता है कि यह समय न केवल बहुत संवेदनशील है, बल्कि भयानक भी है. लेकिन, यही वह समय है, जब हम अपने समाज और अपने देश के लिए कुछ कर सकते हैं. कोरोना टेस्टिंग की ‘आरटी पीसीआर’ में मैं तुम्हारी ड्यूटी लगाना चाहता हूं, तुम्हारी मुझे बहुत जरूरत है. बताओ, ड्यूटी कर पाओगे. हां कहने से पहले तुम्हे यह भी बता दूं कि ड्यूटी ज्वाइन करने के बाद घर-परिवार से दूर रहना पड़ेगा. पहले सात दिन पीसीआर में ड्यूटी होगी और फिर 14 दिन हॉस्टल में क्वारेंटाइन रहना पड़ेगा. बोलो, कल से ड्यूटी ज्वाइन कर सकते हो. इस समय, गौरव की निगाहें पत्नी के सख्त होते चेहेरे पर थीं और दिमाग बॉस का अनुरोध रूपी आदेश पर टिका हुआ था.
गौरव खुद को मजबूत करते हुए सिर्फ एक ही वाक्य बोल पाए. सर, कल की जगह परसों ज्वाइन कर लूं. दूसरी तरफ से ‘ठीक है’ की आवाज आती है और फोन कट जाता है.
इधर, गौरव एक नजर अपनी पत्नी ऊषा की तरफ देखते हैं और दूसरी नजर से अपने बेटे की तरफ देखते हैं. फिर एक गंभीर चिंतन में चले जाते हैं. पूरी बात जानने के बाद पत्नी बहुत कुछ बोल रहीं थी, लेकिन उनकी आवाज अब गौरव के कानों तक नहीं पहुंच रही थी. मन में बस एक ही उधेड़बुन चल रही थी, क्या करना है और कैसे करना है. लंबी उधेड़बन के बाद, गौरव सिर्फ यही बोल पाए कि कल सुबह गांव निकलना है, बैग पैक कर लो. फिर घर में एक खामोशी छा जाती है और यह खामोशी अगली सुबह तक कायम रहती है. गांव जाते समय रास्ते में गौरव किसी तरह अपनी पत्नी को समझाने की कोशिश करते हैं.
पत्नी सबकुछ समझते हुए भी कुछ भी नहीं समझतीं और गांव पहुंचने के बाद अनमनी होकर गौरव को भोपाल आने की इजाजत दे देती हैं.
दूसरे दिन गौरव गांव से निकलते है और सीधे भोपाल के एम्स पहुंच जाते हैं. अब गौरव 7 दिन आरटी पीसीआर में कोरोना टेस्टिंग करते हैं. एम्स की मेस में खाने की औपचारिकता पूरी करते हैं और आइसोलेनश सेंटर में जाकर सो जाते हैं. आठवें दिन उन्हें क्वारंटाइन में जाना पड़ता है, अगले 14 दिन तक उन्हें वहीं रहना पड़ता है. गौरव की जिंदगी में 7 और 14 दिन का खेल तब तक चलता रहेगा, जब तक मध्य प्रदेश से एक-एक कोरोना संक्रमित मरीज खत्म नहीं हो जाता है. तमाम परेशानियों के बावजूद, आज गौरव को इस बात की तसल्ली है कि इस मुश्किल वक्त में वह अपनों और देश के काम आ रहे हैं.
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