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भारत में कोरोना से पहली मौत किसकी हुई? क्यों है इस पर विवाद_why there is uproar about first covid 19 death of india knowat | knowledge – News in Hindi

भारत में कोविड-19 महामारी (Covid-19 Pandemic) की वजह से अब तक 681 मौतें हो चुकी हैं. संक्रमण के केस 21 हजार का आंकड़ा पार कर चुके हैं. लेकिन भारत में इस महामारी की वजह से हुई पहली मौत पर विवाद हो गया है. यह विवाद मृतक के परिवारवालों और सरकारी दावों के बीच है. कोरोना की वजह से जान गंवाने वाले 76 साल के इस्लामिक स्कॉलर और जज मुहम्मद हुसैन सिद्दीकी के परिवारवालों का कहना है कि अब भी वो मानने को तैयार नहीं कि उनके पिता की मौत कोविड-19 की वजह से हुई है.

छोटे बेटे के पास से वापस लौटे थे सिद्दीकी
बीबीसी पर प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक मुहम्मद हुसैन सिद्दीकी फरवरी महीने के आखिरी में सऊदी अरब में रहने वाले अपने छोटे बेटे के यहां से लौटे थे. उनका बेटा सऊदी अरब के जेद्दा शहर में डेंटिस्ट है. परिवारवालों के मुताबिक जब सिद्दीकी हैदराबाद एयरपोर्ट पर वापस लौटे थे तब उनके चेहरे पर थकान झलक रही थी. लेकिन परिवारवालों से मिलकर उन्होंने हल्की मुस्कराहट दिखाई.

एक हफ्ते बाद शुरू हुई दिक्कतेंहैदराबाद एयरपोर्ट से गुलबर्गा की दूरी 240 किलोमीटर है. सिद्दीकी का घर वहीं पर है. परिवार सहित वो एयरपोर्ट से घर वापस लौट आए थे. तब तक कोई गंभीर परेशानी नहीं दिखाई दे रही थी. परिवारवालों के मुताबिक करीब एक सप्ताह बाद उन्होंने कहा था कि तबीयत ठीक नहीं लग रही है. उन्हें सांस लेने में दिक्कत महसूस हो रही थी. और इसके तीन दिन बाद सिद्दीकी की मौत हो गई. उन्हें भारत में कोविड-19 का पहला मृतक सरकारी डॉक्यूमेंट में बताया गया.

क्या कहते हैं परिवारवाले
परिवारवालों का कहना है कि जब सिद्दीकी ने सांस की दिक्कत के बारे में बताया तो उन्हें अस्पताल ले जाया गया. दो दिन के भीतर उन्हें चार अस्पतालों में दिखाया गया. 5वें अस्पताल पहुंचते समय उनकी मौत हो गई थी. मौत के बाद सरकारी दस्तावेजों में बताया गया कि सिद्दीकी की जान कोविड-19 की वजह से गई है. जबकि बेटे फैजल सिद्दीकी का कहना है कि हमें तब डेथ सर्टिफिकेट नहीं दिया गया था. हमारे लिए ये अब भी मानना मुश्किल है कि उनकी मौत कोविड-19 की वजह से हुई है.

प्रतीकात्मक तस्वीर

सरकारी और परिवारवालों के दावों में अंतर
परिवारवालों का कहना है कि जिस दिन सिद्दीकी की तबीयत खराब हुई उस दिन उन्हें फैमिली फिजिशियन ने देखा था. सर्दी जुकाम की दवा देने के बाद वो वापस चले गए थे. लेकिन उन्हें तेज खांसी आती रही और रात को बुखार भी तेज हो गया. तबीयत ठीक होने के बजाए बिगड़ती जा रही थी. जब परिवार उन्हें गुलबर्गा के ही एक निजी अस्पताल लेकर गया तो वहां उन्हें 12 घंटे तक चिकित्सकीय निगरानी में रखा गया था.

इसके बाद अस्पताल ने सिद्दीकी को हैदराबाद के एक बड़े सुपरस्पेशियलिटी अस्पताल में रेफर कर दिया. डिस्चार्ज नोट में लिखा गया कि सिद्दीकी के दोनों फेफड़ों में निमोनिया था. डॉक्टरों ने तब कोरोना को लेकर कोई संदेह नहीं जताया. लेकिन सरकारी आंकड़े के मुताबिक उस निजी अस्पताल ने सिद्दीकी को कोरोना के संदिग्ध मरीज के तौर पर पाया था. दस्तावेज के मुताबिक अस्पताल ने सिद्दीकी का सैंपल लेकर बेंगलुरु भेजा जो गुलबर्गा से 500 किमी से ज्यादा दूर है. बयान में परिवारवालों पर सिद्दीकी को अस्पताल से ले जाने का आरोप भी लगाया गया है.

प्रशासनिक दावे के मुताबिक सिद्दीकी के परिवारवालों ने अस्पताल के मना करने के बावजूद डिस्चार्ज करवाया और निजी अस्पताल ले गए. जबकि अस्पताल की तरफ से उन्हें सरकारी अस्पताल ले जाने को कहा गया था जहां कोविड-19 के मरीजों के लिए स्पेशल वार्ड बना है.

फैजल सिद्दीकी का कहना है कि हमने वही किया जो अस्पताल ने कहा. हम अपने मन से उन्हें हैदराबाद के अस्पताल नहीं ले जा रहे थे. हमारे पास इसके प्रमाण हैं.

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प्रतीकात्मक तस्वीर

हैदराबाद पहुंचा परिवार
गुलबर्गा के निजी अस्पताल से सिद्दीकी को लेकर परिवार अगले दिन सुबह हैदराबाद पहुंचा. वहां एक न्यूरोलॉजिकल क्लीनिक ने उन्हें भर्ती करने से मना कर दिया. इसके बाद परिवार सिद्दीकी को लेकर सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल पहुंचा. यहां पर डॉक्टरों ने पाया कि सिद्दीकी को दो दिन से सर्दी जुकाम था. दो दिनों से उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही थी. हॉस्पिटल की तरफ से पैरासिटामॉल देकर नेबुलाइजर लगाया गया. उन्हें भर्ती करने की सलाह दी गई.

यहां भी अस्पताल और परिवारवालों के दावों में अंतर है. अस्पताल का कहना है कि सिद्दीकी के परिवाले उन्हें भर्ती कराने के लिए नहीं तैयार थे. मरीज की हालत के बारे में उन्हें बता दिया गया था. परिवारवालों का कहना है कि ये झूठ है. अस्पताल में कहा गया कि आप इन्हें सरकारी अस्पताल लेकर जाएं.

परिवारवालों का कहना है कि वो समझ नहीं पा रहे थे कि क्या किया जाए. वो सिद्दीकी को लेकर वापस गुलबर्गा के लिए निकल पड़े. रास्ते में ही सिद्दीकी की मौत हो गई. उनकी मौत के बाद जारी हुई एक आधिकारिक रिपोर्ट में कहा गया है, ‘लक्षण दिखना शुरू होने से उनकी मौत होने तक मरीज किसी भी सरकारी अस्पताल में नहीं गया.’

कब्रिस्तान में दफनाया
अगले दिन मीडिया में सिद्दीकी की मौत की खबरें आना शुरू हुईं तो बेटे फैजल ने उन्हें चुपचाप कब्रिस्तान में दफना दिया. सिद्दीकी के बाद अब तक गुलबर्गा में कोरोना के 20 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं. इनमें उनकी बेटी और फैमिली डॉक्टर भी शामिल हैं. हालांकि अब दोनों ठीक हो चुके हैं.

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