लॉकडाउन के बाद मांग और खपत तय करेगी अर्थव्यवस्था की रफ्तार: भानुमूर्ति – Indian economic growth will depend upon demand surge after lockdown says economist Bhanumurti | business – News in Hindi


आर्थिक वृद्धि का अंतिम आंकड़ा आने वाले दिनों में मांग की स्थिति पर निर्भर करेगा
कोरोना वायरस महामारी के वजह से देशभर में लगातार 40 दिनों का लॉकडाउन है. इस बीच रेटिंग एजेंसियां लगातार आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान घटा रही हैं. ऐसे में अर्थशास्त्री भानुमूति का कहन है कि मांग से तय होगा कि अर्थव्यवस्था कितनी तेजी से बढ़ती है.
अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है आर्थिक मांग
उनकी राय में आने वाले दिनों और महीनों में आर्थिक मांग की स्थिति भारतीय अर्थव्यस्था की दशा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. उन्होंने आर्थिक परिदृश्य पर एक सवाल के जवाब में कहा ‘‘चालू वित्त वर्ष की आर्थिक वृद्धि का आंकड़ा क्या होगा यह बताना तो मुश्किल है लेकिन यह पिछले तीन दशक में सबसे कम रह सकता है … अंतिम आंकड़ा क्या होगा यह आने वाले दिनों में मांग की स्थिति से तय होगा.’’
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उन्होंने कहा कि 2019-20 की अंतिम तिमाही (जनवरी-मार्च) में तेज गिरावट का अनुमान है इस लिहाज से पूरे साल की आर्थिक वृद्धि दर 3.5 से चार प्रतिशत के बीच कहीं रह सकती है. केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) ने वायरस प्रकोप शुरू होने से पहले 2019-20 के लिये पांच प्रतिशत वृद्धि का अनुमान व्यक्त किया था. उसका नया अनुमान अभी नहीं आया है पर अन्य संस्थाओं ने अपने पहले के अनुमानों को काफी घटा दिया है.
लॉकडाउन के बाद बढ़ेगा मांग
अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) और विश्वबैंक जैसी वैश्विक संस्थाओं ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में 2020 में गंभीर संकुचन के साथ भारत की वृद्धि दर 2020-21 में 1.9 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है. वहीं 2019- 20 में भारत की आर्थिक वृद्धि 4.6 प्रतिशत के आसपास रहने का अनुमान लगाया है. लेकिन 2021–22 में इसमें अच्छी वृद्धि की भविष्यवाणी की गई है. मांग बढ़ने के सवाल पर भानुमूर्ति ने कहा तीन मई के बाद यदि लॉकडाउन खुलता है और आर्थिक गतिविधियां शुरू होतीं हैं तो स्वाभाविक है की मांग बढ़ेगी.
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आरबीआई उठा रहा सही कदम
रिजर्व बैंक ने भी इन बातों को ध्यान में रखते हुये ही कदम उठाये हैं. रिवर्स रेपो रेट को 0.25 प्रतिशत कम कर 3.75 प्रतिशत कर दिया ताकि बैंक अधिक कर्ज दे सकें और अपनी गतिविधियां बढ़ा सकें. हालांकि, प्रोफेसर भानुमूर्ति को लगता है कि बैंक ज्यादा जोखिम उठाने को फिलहाल तैयार नहीं दिखते. एनआईपीएफपी के प्रोफेसर ने कहा कोविड- 19 की मार झेल रहे अर्थव्यवस्था के कई औद्योगिक क्षेत्र सरकार से राहत की उम्मीद लगाये बैठे हैं. लॉकडाउन के कारण वाहन विनिर्माण, रियल एस्टेट, पर्यटन, विमानन और सेवा क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुये हैं. कारखानों में गतिविधियां बंद हैं.
योजनाओं की प्राथमिकत नए सिरे से तय करे सरकार
हालांकि, सरकार ने 20 अप्रैल से नगर निगम सीमाओं से बाहर ग्रामीण इलाकों में चुनींदा उत्पादन गतिविधियां शुरू करने की अनुमति दी है, लेकिन यह कितना व्यवहारिक हो पाता है यह देखने की बात है. भानुमूर्ति ने कहा कि केन्द्र सरकार को चालू वित्त वर्ष के बजट की अपनी विभिन्न योजनाओं की प्राथमिकता नये सिरे से तय करते हुये पूंजी व्यय और दूसरे खर्चों को वर्ष की पहली छमाही में जितना जल्द हो सके शुरू करना चाहिये. बाजार से उधारी उठाने के अपने कैलेंडर की शुरुआत भी जल्दी कर आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाना चाहिये.
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आरबीआई ने छोटे कारोबार के लिए उठाए सही कदम
रिजर्व बैंक ने एक माह से भी कम समय में शुक्रवार को दूसरी बार अर्थव्यवस्था में नकदी बढ़ाने और दबाव की स्थिति का सामना कर रहे रियल एस्टेट, एमएसएमई और कृषि क्षेत्र को धन संसाधन उपलब्ध कराने वाली आवास वित्त कंपनियों, नाबार्ड एवं सिडबी जैसे संस्थानों को नकदी सुलभ कराने के उपाय किये हैं.
बिगड़ रहा राज्यों के आय और व्यय का संतुलन
उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के दौरान राज्यों की राजस्व प्राप्ति बुरी तरह प्रभावित हो रही है. उनकी आय और व्यय में असंतुलन बढ़ रहा है. माल एवं सेवाकर (जीएसटी) प्राप्ति कम हुई है. इसमें स्वाभाविक रूप से राज्यों का हिस्सा भी कम हुआ है जबकि दूसरी तरफ कोविड- 19 की वजह से अन्य खर्चों के साथ स्वास्थ्य क्षेत्र खर्च बढ़ रहा है. स्वास्थ्य विषय राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आता है. इस लिहाज से केन्द्र को उनकी मदद के लिये आगे आना चाहिये. राष्ट्रीय आपदा कानून के तहत दोनों को मिलकर काम करना होगा.
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First published: April 19, 2020, 4:12 PM IST