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COVID-19: लॉकडाउन के दौरान मदद में जुटा रेलवे, 3 साल के बच्चे को पहुंचाया ऊंटनी का दूध- Railways is playing an important role in saving lives during corona lockdown | nation – News in Hindi

नई दिल्ली. राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन (Lockdown) के दौरान देश के विभिन्न हिस्सों में दवाइओं और अन्य जीवनरक्षक चीजों की कमी का सामना कर रहे लोगों के लिये भारतीय रेल (Indian Railway) इस हफ्ते अपने नेटवर्क का उपयोग करते हुए जीवनदायिनी साबित हुई. वहीं, जिन लोगों को इससे मदद पहुंची उन्हें यह किसी चमत्कार से कम नहीं लग रहा है. वहीं, मुंबई में रहने वाले 3 साल के एक ऑटिस्टिक बच्चे को रेलवे ने ऊंटनी का दूध पहुंचाया.

रेलवे देश के सभी कोनों में जरुरी सामान, खाद्यान्न, दवाइयां आदि पहुंचाने के महत्वपूर्ण कार्य में जुटा हुआ है. साथ ही, इसने लोगों की जीवन रक्षा के लिए बहुत कम समय में उनकी जरुरत की चीजें भी उन तक पहुंचायी हैं. रेलवे ने मुंबई में रहने वाले तीन साल के एक ऑटिस्टिक बच्चे को ऊंटनी का दूध पहुंचाया क्योंकि इस बच्चे को कोई और दूध हजम नहीं होता है. उसके बाद कई लोगों ने व्यक्तिगत तौर पर रेलवे से अपने-अपने लिए अनुरोध किया.

3 साल के बच्चे को पहुंचाया ऊंटनी का दूध

10 अप्रैल को उत्तर पश्चिम रेलवे ने ऊंटनी का 20 लीटर दूध मुंबई पहुंचाया. दरअसल, एक महिला ने ट्वीट किया था कि उसके तीन साल के बच्चे को गाय, भैंस और बकरी के दूध से एलर्जी है, इस वजह से उसे ऊंटनी का दूध दिया जाता है और लॉकडाउन के कारण वह उपलब्ध नहीं है. इस मामले में रेलवे की त्वरित प्रतिक्रया और उससे मिली मदद को देखते हुए अहमदाबाद निवासी हितेष शर्मा ने राजस्थान के अजमेर में रहने वाले अपने 14 साल के भाई के लिए दवा भेजने का अनुरोध किया था और रेलवे से मिली मदद को वह ‘‘चमत्कार’’ कह रहे हैं. यह बच्चा भी ऑटिस्टिक है और उसे दवा की सख्त जरुरत थी.15 घंटे में अहमदाबाद में युवक को पहुंचाई दवा

सामान्य तौर पर शर्मा महीने में एक बार अहमदाबाद में अपने भाई की डॉक्टर से जांच करवाते हैं और उसकी दवाइयां खरीदते हैं, जरुरत पड़ने पर दवाइयां कुरियर से भी भेज देते हैं. लेकिन लॉकडाउन के कारण ऐसा नहीं हो पाया. शर्मा ने बताया, ‘यह अविश्वसनीय है. मैंने मदद के लिए उन्हें फोन किया और 15 घंटे के भीतर पार्सल ट्रेन से दवा मेरे भाई को मिल गयी. अगर यह मेरे साथ नहीं हुआ होता तो, मैं इसपर विश्वास नहीं करता.’

यूपीएससी परीक्षा की तैयारी कर रहे 23 वर्षीय शर्मा ने बताया कि वह रेलवे के नोडल अधिकारियों की सूची खोज रहे थे, उसी में उन्हें पश्चिम रेलवे के अहमदाबाद डिविजन के सहायक वाणिज्यिक प्रबंधक आशीष उजलायन का नंबर मिला. शर्मा ने उन्हें फोन किया और उन्हें रेलवे से मदद का आश्वासन मिला. उजलायन ने बताया, ‘‘उन्होंने हमसे संपर्क कर बताया कि उक्त दवाएं अजमेर में उपलब्ध नहीं है और सामान्य तौर पर वह अहमदाबाद से कूरियर कर देते, लेकिन लॉकडाउन के कारण वह ऐसा करने में असमर्थ हैं, इसलिए हमसे संपर्क कर रहे हैं. हमने उनसे कहा कि हर संभव मदद की जाएगी.’’

अधिकारी ने बताया, ‘उन्होंने दवाइयां खरीदीं और हमने पार्सल ट्रेन से उन्हें अगली सुबह अजमेर पहुंचा दिया. भारतीय रेल ऐसे समय में हर संभव मदद करने की कोशिश कर रही है.’ शर्मा ने दवाइयों का पार्सल रेलवे को 15 अप्रैल शाम छह बजे दिया और अगली सुबह 11 बजे दवाएं अजमेर पहुंच गयीं. शर्मा के भाई ऑटिस्टिक हैं, उसे एडीएचडी, ओसीडी भी है. लॉकडाउन की अवधि तीन मई तक बढ़ाए जाने के बाद उसकी दवाइयां खत्म होने लगी थी.

शर्मा ने बताया, ‘‘उसे जो दवाइयां लेनी होती हैं वे अजमेर में उपलब्ध नहीं हैं और यहां भी एक ही जगह है, जहां से मैं उसके लिए दवा लेता हूं. उसकी दवाइयों का पर्चा मेरे पास है और वह हर महीने यहां डॉक्टरी सलाह के लिए आता है. मुझे बहुत चिंता थी कि दवाइयों के बिना वह बेहोश हो सकता है और उसे दौरा भी पड़ सकता है.’ उन्होंने कहा, ‘‘मैं मदद के लिए रेलवे के पास गया और उन्होंने मदद की. मुझे अभी भी यह किसी चमत्कार जैसा ही लग रहा है.’’

‘भारतीय रेलवे सर्वश्रेष्ठ है’

दूसरे मामले में लीवर प्रतिरोपण कराने वाले 16 वर्षीय उर्मिल पाटिदार ने रेलवे से अनुरोध किया कि वह गुजरात से उनकी दवाएं मध्यप्रदेश के रतलाम पहुंचाने में मदद करें. 16 वर्षीय किशोर ने कहा, ‘‘भारतीय रेलवे सर्वश्रेष्ठ है. उनकी वजह से ही चार दिन पहले मुझे मेरी दवाइयां मिल पाई.’’ दोनों ही मामलों में रेलवे ने दवाइयां नजदीकी रेलवे स्टेशन तक पहुंचायी, जहां से उनके परिवार के सदस्य आकर उसे ले गए.



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