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इन पांच महामारियों के खिलाफ भारत लड़ चुका है ऐतिहासिक जंग | Know about five endemics which are eradicated from India bhvs | knowledge – News in Hindi

कोरोना वायरस (Corona Virus) संक्रमण की वैश्विक महामारी (Pandemic) भारत सहित दुनिया के कई देशों को अपनी चपेट में ले चुकी है, लेकिन ऐसे समय में संक्रमण (Infection) से लड़ने की कोशिशों को दुनिया में सराहा जा रहा है. डब्ल्यूएचओ (WHO) भारत के कदमों की तारीफ कर चुका है, लेकिन यह पहली बार नहीं है. इससे पहले भी कुछ महामारियों के खिलाफ जंग लड़ने में भारत (India) कामयाब हो चुका है और उनका नामोनिशान तक मिटा सका है.

पोलियो : 20 साल में हुआ नामोनिशान खत्म
13 जनवरी 2011, यह वो ऐतिहासिक तारीख थी, जब भारत पोलियो (Polio) के अभिशाप से मुक्त हो गया था. पोलियो के खिलाफ जंग छेड़ने के 20 सालों बाद यह उपलब्धि मिली थी. अस्ल में, एनसीबीआई के मुताबिक 1988 में दुनिया भर से पोलियो के खात्मे का अभियान शुरू हुआ था. इस वायरस (Virus) के खिलाफ मुहिम में काफी बड़ी आबादी वाले देश भारत के सामने कई चुनौतियां थीं.

पोलियो ड्रॉप्स के अभियान को आक्रामक तौर पर सालों तक चलाया गया. देश भर में करीब साढ़े छह लाख पोलियो बूथ बने और 23 लाख स्वास्थ्यकर्मियों व वॉलेंटियरों की फोर्स ने इस मुहिम में शिरकत की. नतीजा ये हुआ कि 2014 में आखिरकार डब्ल्यूएचओ को भारत को पोलियो मुक्त घोषित करना पड़ा.

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द नेशनल एकेडमी आफ साइन्स के एक लेख में भारत में पोलियो की साल दर साल स्थिति दर्शाई गई.

कुष्ठ रोग : नाम नहीं, सिर्फ ​निशान हैं बाकी
भारत में कुष्ठ रोग सालों नहीं बल्कि सदियों से एक अभिशाप की तरह रहा था और इसके रोगियों को अमानवीय बर्ताव तक झेलना पड़ता था. बैक्टीरिया जनित इस रोग को छुआछूत का रोग माना जाता था इसलिए रोगी अकेला पड़ जाता था. बहरहाल, भारत ने इसके खिलाफ लंबी जंग लड़ी और तकरीबन जीत ली है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसी संस्थाओं के सहयोग से भारत ने एनएलईपी यानी लेप्रसी के खिलाफ कार्यक्रम शुरू किया था. इस कार्यक्रम के तहत उठाए गए कदमों के बाद आंकड़े बदले. 1983 में जहां प्रति 10 हज़ार की आबादी पर 57.8 रोगी पाए जाते थे, वहीं दिसंबर 2005 में 1 रोगी पाया गया. साल 2016 में यह आंकड़ा 0.66 रोगी का रह गया. एनसीबीआई के मुताबिक छत्तीसगढ़ और दादरा नागर हवेली को छोड़कर शेष भारत में कुष्ठ के ताज़ा मामले तकरीबन समाप्त हो चुके हैं. इस महामारी से लड़ने में एमआईपी टीकाकरण मुहिम की बड़ी भूमिका रही.

हैज़ा : क्या वाकई खत्म हो चुकी है ये महामारी?
साल 1817 में कलकत्ता में इस बीमारी के फैलने की घटना से पहले भी यह महामारी भारत में रही थी. इसके बाद 1960 के दशक तक इस महामारी के फैलने की घटनाओं की ज़िक्र मिलता है. मीडिया में आई एक रिपोर्ट कहती है कि 2007 में ओडिशा में इस महामारी का आखिरी मामला सामने आया था, जबकि एनसीबीआई के आंकड़ों के मुताबिक साल 2007 में कम से कम नौ राज्यों में हैज़ा के मामले थे. महाराष्ट्र में 231, गुजरात में 198 और पश्चिम बंगाल में 161 मामले सामने आए थे.

हालांकि अब हैज़ा के मामले तकरीबन खत्म हो चुके हैं लेकिन पश्चिम बंगाल समेत ज़्यादा प्रभावित रहे राज्यों में अब भी प्रति हज़ार की आबादी पर दो मामलों तक की आशंका रहती है. एनसीबीआई की रिपोर्ट कहती है कि हैज़ा के आंकड़े करीब शून्य होने की एक वजह निगरानी, जांच और प्रयोगशालाओं के सपोर्ट का न होना भी रहा है.

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1994 में भारत को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने प्लेगमुक्त देश घोषित किया.

प्लेग : लाखों जानें गंवाकर महामारी से मिली मुक्ति
100 सालों से ज़्यादा वक्त तक भारत को इस महामारी से जूझना पड़ा था. महामारी विशेषज्ञों गुप्ते, रामचंद्रन व मुतटकर के एक अध्ययन के मुताबिक भारत में 1031 ईसवी से प्लेग का संकट समय समय पर रहा. 1812 ई. में संक्रमण का दौर हो या 1895-96 का भयानक दौर, यह महामारी पूर्व से पश्चिम भारत को चपेट में ले चुकी थी.

1898 से 1908 के बीच इस महामारी के कारण 5 लाख मौतें हुई थीं. 1966 में भारत में प्लेग के आखिरी मामले दर्ज होना बताया गया था, लेकिन 1994 में एक बार महामारी फैली और देश भर में 876 केस सामने आए व 54 जानें गईं. फिर 1994 में भारत को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने प्लेगमुक्त देश घोषित किया. 1997 में फिर क्लीनिकल जांचों में यह दावा किया गया कि इस महामारी के लक्षण अब देश में नहीं हैं. लेकिन, इस रोग को लेकर समय समय पर निगरानी की ज़रूरत बताई जाती रही है.

चेचक : आउटब्रेक के तीन साल बाद खात्मा
भारत में पुरानी महामारियों में एक चेचक का नाम भी रहा है. जनवरी से मई 1974 के बीच 15 हज़ार से ज़्यादा मरीज़ों की मौत हो गई थी. एशिया और अफ्रीका के कई देशों में इस महामारी के खिलाफ मुहिम छेड़ी गई थी. उन पांच महीनों में भारत ने 61 हज़ार से ज़्यादा रोगी होने के बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन को रिपोर्ट दी थी.

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भारत में चेचक उन्मूलन कार्यक्रम की टाइमलाइन के साथ एम लाइब्रेरी पर यह ग्राफिक दर्शाया गया है.

1975 में दुनिया भर से इस महामारी को खत्म करने का कार्यक्रम टारगेट ज़ीरो के नाम से शुरू हुआ और 24 मई 1975 को भारत में इस महामारी के आखिरी मरीज़ की पहचान की गई. दो सालों की निगरानी और जांच के बाद 1977 में माना गया कि भारत से यह महामारी खत्म हो गई. फिर 1979 में दुनिया से इस महामारी के खत्म होने की पुष्टि की गई.

​वो महामारियां, जिनके खिलाफ जारी है जंग
ड्रैकन्कुलस रुगणता से 1996 में छुटकारा पाया गया था. लेकिन अब भी, एचआईवी, डेंगू, टीबी जैसी संक्रामक महामारियों के अलावा दो महामा​रियां ऐसी हैं जो सदियों से भारत में हैं और इनके खिलाफ कार्यक्रम के बावजूद इनसे पूरी तरह छुटकारा अब तक नहीं मिला है.

मलेरिया : पिछले 15 सालों में भारत में इस रोग के मामले काफी कम हुए हैं. फिर भी डब्ल्यूएचओ कहता रहा है कि भारत में इस महामारी के मामले कम होने की वजह जांच तंत्र कमज़ोर होना है क्योंकि कुल मामलों के सिर्फ 8 फीसदी ही सामने आते हैं. हालांकि भारत सरकार ने 2022 तक मलेरिया के खात्मे के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम बनाया है, लेकिन लक्ष्य पूरा न होने पर इसे और पांच साल यानी 2027 तक बढ़ाया जा सकेगा. वहीं कुछ अपुष्ट रिपोर्ट्स कह रही हैं कि मलेरिया का टीका खोज लिया गया है और परीक्षण जारी हैं.

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खसरा : डब्ल्यूएचओ के 11 सदस्य देशों ने 2020 तक खसरा यानी मीज़ल्स या शीतला रोग से छुटकारा पाने का बीड़ा उठाया. भारत ने यह लक्ष्य हासिल करने के लिए दो खुराक का नियमित टीकाकरण कार्यक्रम शुरू किया. अगर कोविड 19 के चलते इस कार्यक्रम पर कोई भारी असर न पड़ा तो 2020 तक भारत यह लक्ष्य हासिल कर सकता है.

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