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अमेरिका में कोरोना के बढ़ते प्रकोप से भदोही के कालीन उद्योग की टूटी कमर- Bhadohi carpet industry broken back due to rising outbreak of Corona virus in USA uttar pradesh uplm upas | bhadohi – News in Hindi

अमेरिका में कोरोना के बढ़ते प्रकोप से भदोही के कालीन उद्योग की टूटी कमर

भदोही में कालीन उद्योग पर कोरोना वायरस के चलते दोहरी मार पड़ी है.

भदोही (Bhadohi) में बनने वाली कालीन का सबसे बड़ा खरीदार अमेरिका है. अमेरिका लगभग 50 फीसदी कालीन अकेले खरीदता है. इसके अलावा यूरोप के देश लगभग 25 फीसदी कालीन खरीदते हैं. बाकी के 25 फीसदी में ही दुनियाभर के देश शामिल हैं.

भदोही. यहां की गलियां शांत हैं. इन दिनों यहां से गुजरने वालों को खिंच-खिंच-खिंच की आवाज़ सुनाई नहीं दे रही है. जिन घरों से होकर ये गालियां गुजरती हैं उन घरों में दिनों-रात चलने वाली कैंचियां खामोश हैं. कालीनों की फिनिशिंग का काम जो ठप हो गया है. इस कालीन नगरी में ऐसी खामोशी कभी नहीं छाई थी. कोरोना वायरस (COVID-19)के प्रकोप ने वैसे तो सभी व्यावसायिक गतिविधियों को प्रभावित किया है लेकिन वैसे उद्योगों का और भी बुरा हाल है जिनका नाता या तो अमेरिका या फिर यूरोप से रहा है. उत्तर प्रदेश में भदोही (Bhadohi) का कालीन उद्योग (Carpet Industry) भी इनमें से एक है. आपको ये जानकर हैरानी होगी कि देश में चल रहे Lockdown से भदोही के लोग उतने चिंतित नहीं हैं, जितनी चिंता उन्हें अमेरिका में कोरोना के बढ़ते प्रकोप से है. दरअसल भदोही के कालीन व्यापारियों पर कोरोना ने दोहरी मार डाली है. अपने देश और विदेशों में इसके प्रकोप की वजह से अलग-अलग तरीके से इस घरेलू उद्योग को नुकसान पहुंच रहा है.

कालीन नगरी में पसरा सन्नाटा

विदेशों में फैले कोरोना का भदोही पर क्या हो रहा असर?

भदोही में बनने वाली कालीन का सबसे बड़ा खरीदार अमेरिका है. अमेरिका लगभग 50 फीसदी कालीन अकेले खरीदता है. इसके अलावा यूरोप के देश लगभग 25 फीसदी कालीन खरीदते हैं. बाकी के 25 फीसदी में ही दुनियाभर के देश शामिल हैं. इन दिनों अमेरिका और यूरोप के देशों में ही कोरोना से सबसे ज्यादा हाहाकार मचा है. सबसे बड़े कालीन खरीदार अमेरिका की सबसे बुरी हालत हो गई है. अमेरिका में छाए इस संकट की सीधी परछाई भदोही पर पड़ रही है. इस साल अभी तक एक भी डिमांड नहीं आई है.लेकिन इस उदयोग से जुड़े निर्यातकों की दूसरी समस्या इससे भी बड़ी है. कारपेट एक्सपोर्ट प्रमोशन कॉउन्सिल (CEPC) के चेयरमैन सिद्धनाथ सिंह ने बताया कि इस हाहाकार के चलते अरबों रुपये अमेरिका में फंस गए हैं. उन्होंने बताया कि कालीन व्यापारियों के लगभग डेढ़ से दो हजार करोड़ रुपये अमेरिका में फंस गए हैं. जो माल पहले भेजा गया था उसकी पेमेंट से पहले ही हालात बिगड़ गए. ऐसे में यहां काम ठप होने से नई पूंजी पैदा नहीं हो रही और जमा पूंजी अमेरिका और यूरोप में फंस गई है. अब करें तो करें क्या?

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घरों की शोभा बढ़ाने वाली कालीन की डिमांड बंद है

कालीन निर्यातक कंपनी त्रिवेणी कारपेट इंडस्ट्री के पार्टनर शाश्वत पांडेय ने एक और संकट की ओर इशारा किया. पांडेय ने बताया कि कालीन एक लक्ज़री आइटम है. ऐसे में पूरी दुनिया में सबकुछ सामान्य होने के बावजूद भी ये उद्योग दूसरे उद्योगों की तरह झट से खड़ा नहीं पायेगा. उन्होनें तर्क दिया कि सामान्य हालात होने के 6 महीने या सालभर बाद जब लोग कम्फर्ट पोजीशन में आ जाएंगे तब ही कालीन की ओर देखेंगे. ऐसे में हमारी स्थिति बाकी उद्योगों के चल पड़ने के 6 महीने या सालभर बाद ही ठीक हो पाएगी.

उद्योग के ठप होने से किस पर पड़ रही सबसे गहरी मार
कालीन उद्योग पर छाए संकट की मार सबसे ज्यादा इसकी सबसे अहम कड़ी पर पड़ने की आशंका पैदा हो गयी है. यानी बुनकर. इन दिनों बुनकरों के सामने वैसा संकट नहीं दिखाई दे रहा है जैसा आगे आने वाले समय में अनुमान लगाया जा रहा है. कालीन का काम कई-कई महीने का होता है. ज्यादातर बुनकर भी गांवों में ही हैं. ऐसे में देश में लॉक डाउन की वजह से उन्हें उस हद तक तकलीफ नहीं है जितनी दूसरे झेल रहे हैं लेकिन धीरे-धीरे तूफान उनकी ओर दबे पांव बढ़ रहा है.

त्रिवेणी कारपेट इंडस्ट्री के शाश्वत पांडेय ने बताया कि यदि कोरोना से शुरू हुई आफत और बढ़ती चली गई तो ये बुनकरों को निगल जाएगी. जैसे-जैसे बाजार में मांग गिरती जाएगी वैसे-वैसे कालीन बनाने का काम ठप होता जाएगा. जब काम कम होता जाएगा तो आमदनी कम होती जाएगी. ऐसे में आशंका ये है कि ऐसे हालात में बुनकर दूसरे कामों में न लग जाएं. एक बार ऐसा शुरू हो गया तो फिर इसे रोक नहीं जा सकता और न ही इसका विकल्प तैयार किया जा सकता है. वह कहते हैं कि कालीन की बुनाई हुनर है और हुनरमंद फटाफट तैयार नहीं होते. एक उम्र गुज़र जाती है.

बुनाई से लेकर पैकिंग तक से जुड़े सभी लोग परेशान
बता दें एक कालीन को कई चरणों से गुजरना पड़ता है. बुनकरों के सामने अभी उतना बड़ा संकट नहीं है जितना बड़ा संकट इसके बाद की प्रक्रिया में लगे लोगों के सामने है. लॉक डाउन की वजह से डाईंग, वाशिंग, क्लिपिंग और बाइंडिंग का काम ठप है. ये सभी काम कंपनियां आउटसोर्स के जरिये करती हैं. भदोही में वाशिंग का काम करने वाले ठेकेदार मोहम्मद इशराईल ने बताया की वैसे तो ज्यादातर मजदूर अपने अपने घर जा चुके हैं और सिर्फ परिवार के साथ रहने वाले लीग ही बचे हैं. ऐसे में उनके सामने रोजी-रोटी का संकट है. जिनके पास वाशिंग का सामान और गलीचा है, वो भी काम नहीं कर पा रहे हैं. लॉक डाउन के चलते वो तैयार माल पहुंचा नहीं सकते. ऐसे में कुछ फैक्ट्री मालिक और कुछ गैर सरकारी संगठन इनकी मदद कर रहे हैं. इशराईल ने स्थानीय जिला प्रशासन की मदद पहुंचाने के लिए उनकी भी तारीफ की.

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कहीं नहीं हैं खरीददार

क्या कर रही है योगी सरकार
प्रदेश के सभी उद्योगों से जुड़े लोगों और विभागों की एक बड़ी बैठक की जा चुकी है. माइक्रो, स्मॉल और मध्यम इंटरप्राइजेज (MSME) विभाग के प्रमुख सचिव नवनीत सहगल ने बताया कि विभाग एक-दो दिन में ही एक फैसिलिटी सेंटर बन रहा है. एक हेल्पलाइन नंबर भी जारी किया जाएगा, जिससे किसी को कोई प्रॉब्लम हो तो उस तक मदद पहुंचाया जा सके. अमेरिका और यूरोप में भदोही के व्यापारियों के फंसे पैसे के बारे में उन्होंने आश्वस्त किया कि यदि कोई निर्यातक ऐसी शिकायत करता है तो उस देश के राजदूत से संपर्क किया जाएगा. उन्होंने कहा कि उनकी मीटिंग में भी किसी ने ऐसी शिकायत फिलहाल नहीं की है.

कितना बड़ा है भदोही का कालीन उद्योग
भदोही के कालीन पूरी दुनिया मे मशहूर हैं. यहां बने ज्यादातर कालीन का निर्यात ही किया जाता है. यूपी सरकार ने एक जिला एक उत्पाद में इसे शामिल किया है. यूपी सरकार के अनुसार भदोही के कालीन उद्योग में लगभग 63 हजार कारीगर लगे हैं. 1 लाख से ज्यादा यहां लूम्स हैं जिनपर बुनाई-कताई होती है. इसके अतिरिक्त 500 ऐसी यूनिट्स हैं, जो कार्पेट का निर्यात करती हैं. भदोही के हाथ से बने कालीन की दुनियां में मुहमांगी रकम मिलती है.

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First published: April 17, 2020, 7:35 PM IST



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