छत्तीसगढ़

भोर होते ही आदिवासी महिलाएं चुनने लगी है ‘महुआ फूल’ आदिवासी परिवारों की आय का जरिया

भोर होते ही आदिवासी महिलाएं चुनने लगी है ‘महुआ फूल’
आदिवासी परिवारों की आय का जरिया
    नारायणपुर सबका संदेस न्यूज़ छत्तीसगढ़-
– नारायणपुर जिले में भोर होते ही अधिकांश ग्रामीण आदिवासी परिवार की महिलाएं जंगल, देहात, गांव के नजदीक ‘‘महुआ’’ पेड़ के नीचेे फूल चुनते देखी जा सकती है। जिले में पायी जाने वाली प्रमुख वनोपजों में महुआ भी प्रमुख है। पतझड़ का मौसम शुरू होने के साथ ही महुआ के पेड़ों में फूल आने की प्रक्रिया
शुरू हो जाती है। जिले में ज्यादातर ग्रामीणजन खेती-किसानी के बाद खाली है। ऐसे में ग्रामीण आदिवासी परिवार के लोग जिसमें ज्यादातर महिला भोर होते ही महुआ पेड़ तले पहुंच जाती है। महुआ फूल गिरने की शुरूआत हो चुकी है। महुआ के फूल मार्च-अप्रैल में आना शुरू हो जाते है। मई-जून में महुआ में फल आने लगता है। पेड़ के पत्ते, छाल, फूल, बीच की गिरी सभी औषधीय रूप में उपयोगी की जाती है। दूरस्थ अंचल में रहने वाले ग्रामीण परिवार विशेषकर आदिवासी परिवार की आय का मुख्य जरिया वनोपज है, इसमें महुआ का स्थान भी महत्वपूर्ण है। संभाग में भारत सरकार द्वारा जिन सात वनोंपजों, चिन्हांकित है, जिसमें साल बीज, हर्रा, इमली, महुआ बीज, चिरौजी, गुठली, कुसमी लाख और रंगीन लाख शामिल है। 
  महुआ एक भारतीय उष्णकटिबंधीय वृक्ष है जो उत्तर भारत के मैदानी इलाकों समेत जंगलों में बड़े पैमाने पर पाया जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम मधुका लोंगफोलिया है। यह तेजी से बढ़ने वाला पेड़ है। जो लगभग 20 मीटर ऊंचाई तक बढ़ सकता है। इसके पत्ते आमतौर पर पूरे साल भर हरे-भरे रहते है। इस वृक्ष की खासियत है कि यह शुष्क पर्यावरण के अनुकूल अपने आप को ढाल लेता है। छत्तीसगढ़ के अधिकांश इलाकांे में यह पाया जाता है। बस्तर संभाग में यह बहुत तादात में पाया जाता है। 
  गर्म इलाकों में इसकी खेती तेलीय बीजों, फूलों, और लकड़ी के लिए की जाती है। कच्चे फलों की सब्जी भी बनाई जाती है। पके हुए फलों का गूदा खाने में मीठा होता है। वृक्षों की आयु के अनुसार साल में 20 से 200 किलो के बीच बीजों का उत्पादन किया जा सकता है। छत्त्तीसगढ़ में इसका ज्यादातर उपयोग शराब के उत्पादन में किया जाता है। कई भागों में पेड़ औषधीय गुणों के लिए उपयोग किया जाता है। इसकी छाल को औषधीय प्रयोजनों के लिए भी प्रयोग किया जाता है। कई आदिवासी समुदायों में इसकी उपयोगिता की वजह से इसे पवित्र माना जाता है। महुआ वृक्ष के फल, फूल, बीज, लकड़ी सभी चीजें काम में आती है। इसका पेड़ 20-25 साल में फल-फूलने लगता है, और सैकड़ों सालों तक फलता-फूलता रहता है।
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