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जानिए, WHO को कौन फंड करता है और ये पैसे कहां जाते हैं american president donald trump world health organisation funding during coronavirus | knowledge – News in Hindi

कोरोना (corona) के कोहराम से गुस्साए डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने आरोप लगाया है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने अपना काम ठीक से नहीं किया. अगर सही वक्त पर इस वायरस की संक्रामकता के बारे में बता दिया जाता तो अमेरिका (America) समेत बहुत से देशों में हालात इतने खराब नहीं होते. 11 मार्च को  WHO ने जब इसे महामारी घोषित किया, तब तक वायरस फैल चुका था. देर से आगाह करने के कारण ट्रंप ने 15 अप्रैल को इस संगठन को फंडिंग न देने की बात कही.

ट्रंप की ये घोषणा तब सामने आई है, जब COVID-19 से दुनिया में 20 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हैं, जबकि 1 लाख 30 हजार से ज्यादा जानें जा चुकी हैं. अमेरिका फिलहाल इससे सबसे ज्यादा प्रभावित है. वहां 6 लाख 40 हजार से ज्यादा कोरोना पॉजिटिव हैं, वहीं मौतों का आंकड़ा 28 हजार पार कर चुका है.

WHO को फंड कहां से मिलता है
इसे बहुत से देशों, फिलेंथ्रापिक संगठनों और यूएन से काफी पैसे मिलते हैं. WHO की आधिकारिक साइट में इस बारे में जानकारी भी दी गई है. इसके मुताबिक उसे अमेरिका और दूसरे सदस्य देशों से 35.41% फंड आता है. जनहित में काम करने वाली संस्थाएं 9.33% देती हैं, जबकि 8.1% यूएन संस्थाएं देती हैं. इसके अलावा फंडिंग का एक और जरिया भी है, जिसे assessed contribution कहते हैं. ये वे पैसे हैं जो बहुत से देश WHO की सदस्यता पाने के लिए देते हैं. ये हर देश अपनी जनसंख्या और जीडीपी के हिसाब से देते हैं.

WHO को बहुत से देशों, फिलेंथ्रापिक संगठनों और यूएन से पैसे मिलते हैं

अमेरिका का फंडिंग में सबसे ज्यादा योगदान है
अमेरिका इसकी फंडिंग का सबसे बड़ा हिस्सा लगभग 15 प्रतिशत देता है. वहीं हमारा देश इस संगठन को सालाना 1% फंड करता है. ये अधिकार खुद देशों का ही है कि वे इसे कितनी फंडिंग देंगे या फिर देंगे भी नहीं. अब जब WHO की सबसे बड़ी फंडिंग यानी अमेरिका से आ रहा 15% रुक जाएगा तो इसका असर पूरी दुनिया के स्वास्थ्य कार्यक्रमों पर पड़ेगा. लेकिन क्योंकि फिलहाल दूसरे देशों ने भी अमेरिका की तरह हाथ नहीं खींचे हैं इसलिए काम प्रभावित होने के बाद भी चलता रह सकता है.

फंड का WHO क्या करता है
संगठन दुनियाभर के सेहत से जुड़े प्रोग्राम का हिस्सा बनता है. जैसे साल 2018-19 में लगभग 1 अरब डॉलर पोलियो खत्म करने में लगाए गए थे. ये संगठन की कुल फंडिंग का लगभग 19 प्रतिशत था. 8.77% डॉलर पोषण के कार्यक्रम को दिए गए. टीकाकरण के लिए 7% फंड लगाया गया. अफ्रीकन देशों को WHO की ओर से 1.6 अरब डॉलर दिया गया ताकि वे अपने यहां बीमारियों पर काम कर सकें. साथ ही दक्षिण पूर्वी एशिया को 375 मिलियन डॉलर दिए गए. भारत भी इसी का हिस्सा था. अमेरिका को इससे 62.2 अरब डॉलर दिए गए.

WHO के डायरेक्टर जनरल Tedros Adhanom Ghebreyesus पर कोरोना के बारे में न बताने के आरोप लग रहे हैं

खर्च की प्राथमिकता कैसे तय होती है
सालभर कहां-कहां और कितना खर्च होगा, ये World Health Assembly तय करती है जो संगठन का फैसला लेने वाली संस्था है. तय करने के दौरान एक मीटिंग होती है, जिसमें सदस्य देशों के प्रतिनिधि हिस्सा लेते हैं. जिनेवा में हर साल ये प्रक्रिया होती है, जहां संगठन के डायरेक्टर जनरल का हेडक्वार्टर भी होता है. कौन से देश को कितने पैसे मिलेंगे, ये उसकी हालत और जरूरत पर तय होते हैं. गरीब देशों को संक्रामक बीमारियों के लिए फंडिंग इसका खास मकसद है.

हमारे यहां WHO क्या करता है
12 जनवरी 1948 को हम इसके सदस्य बने थे. 2019 से लेकर अगले 5 सालों के लिए Country Cooperation Strategy (CCS) पहले ही तैयार है, जिसे हेल्थ मिनिस्ट्री और भारत में WHO के ऑफिस ने मिलकर तय किया है. खुद WHO के ही अनुसार यहां पर नॉन कम्युनिकेबल बीमारियों जैसे दिल की बीमारी, कैंसर, डायबिटीज जैसी बीमारियों पर काम हो रहा है. साथ ही वायु प्रदूषण कम करने और मानसिक सेहत पर भी काम किया जा रहा है. संगठन का इरादा है कि इन सारे एरिया पर काम को सरकारी और गैर सरकारी संगठनों के साथ मिलकर और आगे बढ़ाया जाए.

Country Cooperation Strategy यानी किसी देश के लिए रणनीति के तहत हमारे यहां यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज के साथ लोगों में सेहत को लेकर जागरूकता लाना शामिल है. इसमें किसी हेल्थ इमरजेंसी के लिए तैयार होना भी एक हिस्सा है. जैसे कि फिलहाल कोरोना एक पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी है.

कोरोना टेस्ट पर WHO काफी जोर दे रहा है लेकिन हमारे यहां अभी भी इसकी गति बहुत धीमी है

करता है और भी कई काम
भारत में WHO और भी कई कामों में भागीदार रहा है. जैसे टीकाकरण अभियान चलाना, टीबी खत्म करना और साथ ही पोषण को बढ़ावा देना. हालांकि ये तमाम काम राज्य खुद करते हैं, और WHO सिर्फ सहयोगी की तरह काम करता है, जो फंडिंग करें और योजनाओं पर राय दे. यही वजह है कि WHO शायद ही कभी सरकार की किसी योजना में खामी निकालता है. मिसाल के तौर पर यहां कोरोना टेस्ट पर WHO काफी जोर दे रहा है लेकिन हमारे यहां अभी भी इसकी गति बहुत धीमी है.

कोरोना के दौरान WHO क्या कर रहा है
देश में Dr Henk Bekedam इस संगठन के प्रतिनिधि हैं. उनके मुताबिक हम कोरोना से जंग में एक ऐसे मुकाम पर हैं, जो काफी जरूरी है. फिलहाल संगठन Ministry of Health & Family Welfare के साथ-साथ विभिन्न राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम कर रहा है, जिसमें निगरानी और कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग भी शामिल हैं. इनके अलावा लैब और रिसर्च, अस्पतालों की तैयारी, संक्रमण की रोकथाम और नियंत्रण की योजनाएं बनाई जा रही हैं.

हमारी रणनीति है अलग
वैसे हमारे देश ने कोरोना से बचाव के लिए अपनी रणनीति तैयार कर ली है जो WHO से अलग है. इसके तहत देश के 75 जिलों में तब से लॉकडाउन कर दिया गया, जब हमारे यहां केवल 341 मामले आए थे. हमारे यहां मास्क भी अनिवार्य कर दिया गया, जबकि WHO का मानना है कि केवल कोरोना संक्रमितों को ही मास्क पहनना चाहिए, स्वस्थ लोगों को नहीं.

अभी दुनिया के तमाम कोरोना संक्रमित देशों में कोरोना के खिलाफ लड़ाई जरूरी मोड़ पर है

क्यों सारे देश WHO पर भड़के हुए हैं
जबकि अधिकांश देशों ने पहले चरण में हवाई यात्रा को बंद कर दिया था, WHO ने लंबे समय बाद चीन पर यात्रा और व्यापार प्रतिबंधों के खिलाफ कहा. 29 फरवरी को संगठन ने देशों को हवाई यात्राएं न रोकने की सलाह देते हुए कहा कि पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी के ज्यादातर हालातों में भी ट्रैवल रेस्ट्रिक्शन से कोई फर्क नहीं पड़ता है. माना जा रहा है कि अपनी सीमाएं न बंद करने की वजह से ही इटली और अमेरिका में दुनियाभर के सैलानी पहुंचते रहे और हालात इतने बिगड़ गए.

फंड रोकने पर क्या कोरोना से जंग कमजोर पड़ेगी
माना जा रहा है कि अभी दुनिया के तमाम कोरोना संक्रमित देशों में कोरोना के खिलाफ लड़ाई जरूरी मोड़ पर है. 20 लाख से ज्यादा मामलों के बीच 1.25 लाख मौतें हो चुकी हैं. यहां तक कि अमेरिका ही अभी इस वायरस से बुरी तरह से प्रभावित है. ऐसे में ट्रंप के हाथ खींचने पर देशों की कोरोना से जंग कमजोर पड़ सकती है. कोरोना खत्म भी हो जाए तो भी अमेरिका की फंडिंग का बड़ा हिस्सा लगभग 27% WHO कई विकासशील देशों में पोलियो और टीबी खत्म करने पर खर्च करता है. ऐसे में वे देश भी पोलियो से त्रस्त होगें.

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