चीन ने लोगों को आगाह करने में गंवाए 6 अहम दिन और वैश्विक महामारी बन गया कोरोना – China lost 6 key days to warn people and Coronavirus became global epidemic | knowledge – News in Hindi
तमाम रिपोर्ट्स में ये बात सामने आ चुकी है कि चीन के अधिकारियों को आधी जनवरी गुजरते-गुजरते ये समझ में आ चुका था कि वे नए कोरोना वायरस की वजह से बहुत ही भयंकर महामारी का सामना करने जा रहे हैं. फिर भी चीन की सरकार ने तुरंत लोगों को इस बारे में आगाह करना जरूरी नहीं समझा. यही नहीं, ये अधिकारी 14 जनवरी को इस बारे में पूरी तरह आश्वस्त हो गए थे कि कोरोना वायरस महामारी लाएगा. राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 14 जनवरी को ही लोगों को खतरे के बारे में आगाह करने के बजाय 20 जनवरी को बताया कि वायरस एक से दूसरे व्यक्ति में फैल रहा है. लेकिन, तब तक शायद देर हो चुकी थी और दुनिया भर में बसे चीन के हजारों लोग चीनी नए साल (Rat New Year) का जश्न मनाने के लिए अपने घर आ चुके थे.
रेट न्यू ईयर के लिए घर आते हैं दुनिया भर में बसे चीनी नागरिक
चीन में 25 जनवरी से रेट न्यू ईयर या लूनर न्यू ईयर (चीन का नया साल) का जश्न शुरू होने वाला था. हर साल दुनिया भर में बसे चीन के लोग नए साल का जश्न मनाने के लिए अपने घर लौटते हैं. ये जश्न करीब तीन हफ्ते चलता है. बता दें कि एक अनुमान के मुताबिक, चीन के नए साल से पहले और बाद में दुनियाभर में सबसे ज्यादा लोग एक से दूसरे देश की यात्रा करते हैं. जब तक जिनपिंग ने खतरे की घोषणा की, तब तक दुनियाभर में काम करने वाले सिर्फ वुहान के ही हजारों लोग घरवालों के साथ जश्न मनाने के लिए शहर में पहुंच चुके थे. बाद में इसी शहर को कोरोना वायरस का इपिसेंटर (Epicenter) माना गया. चीन के सरकारी दस्तावेज बताते हैं कि लोग खतरे से अनजान रहे और 20 जनवरी 2020 तक 3,000 से ज्यादा लोग कोरोना वायरस पॉजिटिव पाए जा चुके थे. खतरे के बारे में आगाह न करना चीन के अधिकारियों की पहली गलती नहीं थी. चीन ही नहीं, दुनिया के ज्यादातर देशों की सरकारें कोरोना वायरस के खतरों के बारे में हफ्तों और कुछ तो महीनों तक अनजान बनी रहीं.
राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने चीन के लोगों को 20 जनवरी को कोरोना वायरस फैलने के बारे में जानकारी दी.
चीन की ऊहापोह के कारण 21 लाख लोग हो चुके हैं संक्रमित
चीन की गलती बाकी देशों से ज्यादा इसलिए है क्योंकि उसने संक्रमण फैलने के शुरुआती दौर में लोगों को आगाह नहीं किया. वो भी तब देर की जब सबसे ज्यादा लोग चीन पहुंचते हैं. हो सकता था कि संक्रमण फैलने की जानकारी पहले ही सार्वजनिक होने पर कोरोना वायरस इतना न फैलता. लेकिन, चीन की सरकार शायद लोगों को आगाह करने और पैनिक नहीं फैलने देने की ऊहापोह में उलझी रही. इसी ऊहापोह के कारण आज दुनिया के ज्यादातर देशों के 21 लाख से ज्यादा लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं. इनमें से 1.36 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और चीन से शुरू हुई महामारी वैश्विक महामारी बन चुकी है. लॉस एंजिलेस में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में माहामारी विशेषज्ञ जू-फेंग झांग कहते हैं कि अगर चीन की सरकार ने सिर्फ 6 दिन पहले कार्रवाई की होती तो मरीजों की संख्या काफी कम होती और उपलब्ध मेडिकल सुविधाएं पर्याप्त होतीं. शायद वुहान का मेडिकल सिस्टम इतनी बुरी तरह से चरमराता नहीं.
पहले केस पर एकराय नहीं है चीन के अधिकारी-शोधकर्ता
कोरोना वायरस का पहला केस सामने आने और शुरुआत की जगह को लेकर भी चीन की सरकार और विशेषज्ञ एकराय नहीं हैं. चीन ने बताया था कि संक्रमण का पहला मामला 31 दिसंबर, 2019 को सामने आया था. पहले मामलों में निमोनिया और बुखार जैसे लक्षण वाले कई लोग थे. हालांकि, चीन के ही शोधकर्ताओं का मानना है कि वहां संक्रमण का पहला मामला 1 दिसंबर को ही सामने आ गया था. वहीं, चीन की सरकार वुहान के मांस व मछली बाजार को संक्रमण का केंद्र मानती है. वहीं, लैंसेट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना वायरस का इस बाजार से कोई संबंध ही नहीं है. चीन के ही शोधकर्ताओं की ओर से प्रकाशित इस शोध के अनुसार कोरोना वायरस से संक्रमित पहले व्यक्ति का मामला 1 दिसंबर, 2019 को दर्ज हुआ. यह व्यक्ति वुहान के मछली थोक बाजार के संपर्क में आया ही नहीं था.
चीन के अधिकारी और शोधकर्ता संंक्रमण के पहलेे केस और फैलने की शुरुआत की जगह को लेकर एकराय नहीं हैं.
मछली बाजार से संक्रमण फैलने को लेकर भी राय अलग
वुहान के जिनिनटान अस्पताल की एक वरिष्ठ डॉक्टर और लैंसेट में प्रकाशित रिपोर्ट तैयार करने वाले शोधकर्ताओं में एक वू वेनजुआन ने बताया कि यह बुजुर्ग अल्जाइमर का मरीज था. मछली बाजार उसके घर से काफी दूर है. भूलने की बीमारी के कारण ये बुजुर्ग कभी बाहर गया ही नहीं था. ऐसे में उसके मछली बाजार से संक्रमित होने का सवाल ही पैदा नहीं होता. इस बुजुर्ग के बाद तीन अन्य लोगों में संक्रमण के लक्षण दिखाई दिए. उनमें से भी दो कभी मछली बाजार नहीं गए थे. शोधकर्ताओं ने पाया कि संक्रमण के शुरुआती चरण में अस्पताल में भर्ती हुए 41 में 14 मरीज कभी मछली बाजार नहीं गए थे. वहीं, चीन के डॉ. ली वेनलियांग ने भी दिसंबर के शुरुआत में ही कोरोना वायरस की चेतावनी दे दी थी. इसके बाद उन पर अफवाह फैलाने का आरोप लगाकर जेल में डाल दिया गया. बाद में कोरोना वायरस के कारण ही अस्पताल में उनकी मौत हो गई.
सीडीसी ने शुरुआत में दर्ज ही नहीं किए पॉजिटिव केस
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि चीन की सरकार लोगों के बीच पैनिक नहीं फैलने देना चाहती थी. अधिकारी चुपचाप इस वायरस से निपटना चाहते थे. उन्होंने संक्रमण के पुष्ट होने और घोषणा करने के बीच के समय में चुपचाप काफी तेजी से काम किया. लेकिन, बीजिंग में चीन के नेताओं की ओर से की गई 6 दिन की देरी करीब दो हफ्तों में तब्दील हो गई क्योंकि तब तक नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ने स्थानीय अधिकारियों से एक भी पॉजिटिव केस रजिस्टर नहीं कराया था. हालांकि, 5 जनवरी से 17 जनवरी के बीच सैकडों की संख्या में संक्रमित मरीज वुहान के साथ ही पूरे देश के अलग-अलग अस्पतालों में सामने आ चुके थे. चीन में आज तक यही तय नहीं हो पाया है कि नेशनल लेवल के अधिकारियों की गलती रही उनका रिकॉर्ड रखने में या स्थानीय अधिकारियों की गलती रही उन्हें रिपोर्ट करने में.
कोरोना वायरस के बारे में जानकारी सार्वजनिक करने वाले 8 डॉक्टरों को अफवाह फैलाने के आरोप में सजा दी गई.
‘सूचना को दबाया और डॉक्टरों को सजा दी गई’
विशेषज्ञ कहते हैं, ‘एक बात एकदम साफ है कि अधिकारियों ने सूचना पर नियंत्रण रखा, ब्यूरोक्रेट्स की तरफ से हर तरह की मुश्किलें पैदा की गईं. उन्होंने बुरी खबरों को ऊपर तक भेजा ही नहीं था. यहां तक कि 8 डॉक्टरों को कोरोना वायरस के बारे में अफवाह फैलाने के आरोप में सजा दी गई थी.’ यहां तक कि इन डॉक्टरों को सजा देने की खबर 2 जनवरी को नेशनल टेलीविजन पर प्रसारित की गई. यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो में चाइनीज पॉलिटिक्स के प्रोफेसर दली यांग ने बताया कि इसके बाद वुहान के डॉक्टरों के मन में डर बैठ गया. उन 8 डॉक्टरों को दी गई सजा डॉक्टरी प्रोफेशन से जुडे हर आदमी के लिए सीधी धमकी का काम कर गई. इसके बाद चीन के बाहर कोरोना वायरस का पहला केस थाइलेंड में 13 जनवरी को सामने आ चुका था. इसके बाद चीन की सरकार ने देश भर में संक्रमित लोगों को खोजने की योजना पर काम करना शुरू किया. सीडीसी से मंजूरी प्राप्त कोरोना टेस्ट किट्स पूरे देश में बांटी गईं. डॉक्टरों को बोला गया कि लोगों को बिना बताए मरीजों का कोरोना टेस्ट किया जाए.
हमने शुरु में ही WHO को बता दिया था : चीन
चीन की सरकार बार-बार यही कहती रही कि उन्होंने शुरुआती दौर में सूचनाओं को बिलकुल नहीं छुपाया. उनका कहना है कि उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) को संक्रमण फैलने की तुरंत जानकारी दी थी. चीन के विदेश मंत्री के प्रवक्ता जाओ लिजियान ने दलील दी थी कि हम पर सूचनाएं छुपाने और पारदर्शिता की कमी के आरोप आधारहीन हैं. दस्तावेजों के मुताबिक, चीन के नेशनल हेल्थ कमीशन (NHC) के प्रमुख मा शाओवेई ने 14 जनवरी को ही हालात के बारे में अपना आकलन प्रांतीय स्वास्थ्य अधिकारियों को बता दिया था. एक मेमो में बताया गया है कि मा शाओवेई ने टेलीकांफ्रेंस के जरिये स्वास्थ्य अधिकारियों को राष्ट्रपति, प्रधाानमंत्री ली कछ्यांग और उप-प्रधानमंत्री सुन चनलन की ओर से कोरोना वायरस को लेकर निर्देश दिए थे. लेकिन, ये साफ नहीं है कि ये निर्देश क्या थे.
चीन के नेशनल हेल्थ कमीशन ने 15 जनवरी को ही स्वास्थ्य अधिकारियों से कहा था कि महामारी के हालात गंभीर और जटिल हैं.
मा ने अधिकारियों को महामारी के बारे में बताया
मेमो के मुताबिक, मा ने स्वास्थ्य अधिकारियों से कहा कि महामारी के हालात गंभीर और जटिल हैं. ये सार्स के बाद की सबसे गंभीर चुनौती होगी. ये बीमारी बहुत भयंकर जनस्वास्थ्य समस्या बनने वाली है. चीन में नेशनल हेल्थ कमीशन देश की शीर्ष मेडिकल एजेंसी है. एनएचसी ने एक बयान में कहा था कि उसने थाइलैंड में एक पॉजिटिव केस मिलने के कारण प्रांतीय स्वास्थ्य अधिकारियों के साथ टेलीकांफ्रेंस की थी. हमें लगा कि न्यू ईयर पर भारी संख्या में लोगों के यात्रा करने के कारण वायरस तेजी से फैल सकता है. साथ ही कहा था कि चीन ने संक्रमण फैलने की घोषणा खुले तौर पर पारदर्शी तरीके से समय रहते कर दी थी. साथ ही लोगों को राष्ट्रपति जिनपिंग की ओर से जारी अहम दिशानिर्देश भी बता दिए थे. हालांकि, एसोसिएटेड प्रेस की कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया है कि मेडिकल सेक्टर के लोगों को दिशानिर्देश अज्ञात स्रोत से मिले थे, जिन पर किसी का नाम तक नहीं था. इनमें कुछ दस्तावेजों को फरवरी में प्रकाशित किया गया.
स्वास्थ्य अधिकारियों को तैयार रहने का था निर्देश
मेमो में एक जगह साफ तौर पर कहा गया था कि कोरोना वायरस इंसान से इंसान में फैलने की पूरी संभावना है. इसमें थाइलैंड के केस का हवाला देते हुए कहा गया था कि हालात तेजी से बदल रहे हैं. ऐसा लग रहा है कि इसका तेजी से फैलना शुरू हो चुका है. वसंत उत्सव के लिए हजारों लोग यात्राएं करेंगे और संक्रमण के फैलने का खतरा बढ जाएगा. सभी अधिकारी वैश्विक महामारी के लिए पूरी तरह तैयार रहें. बता दें कि ये मेमो 15 जनवरी का है. मा ने अधिकारियों से जिनपिंग के साथ कदम मिलकर काम करने की अपील की. हालांकि, दस्तावेजों से यह स्पष्ट नहीं हो पाता है कि चीन के नेताओं ने आम लोगों को इस बारे में आगाह करने में 6 अतिरिक्त दिन क्यों लगाए. येल यूनिवर्सिटी में चीन की राजनीति के विद्वान डेनियल मैंटिंगली कहते हैं कि मार्च में चीन में शीर्ष नेताओं की एक बैठक की योजना पर काम चल रहा था. शायद चीन के नेता उससे पहले आम लोगों में डर पैदा नहीं होने देना चाहते थे. मेरा मानना है कि वे कुछ समय और रुककर संक्रमण के प्रसार की रफ्तार देखकर कोई फैसला लेना चाहते थे.
चीन के सीडीसी ने 15 जनवरी से ही चुपचाप संदिग्धों का डाटा इकट्ठा करना शुरू कर दिया.
सीडीसी ने 15 जनवरी को चुपचाप काम शुरू किया
टेलीकांफ्रेंस के बाद 15 जनवरी को ही बीजिंग में सीडीसी ने आंतरिक तौर पर उच्चस्तरीय आपातकालीन कार्रवाई शुरू कर दी. सीडीसी के शीर्ष नेताओं को 14 वर्किंग ग्रुप देकर फंड जुटाने, स्वास्थ्यकर्मियों को प्रशिक्षण देने, डाटा जुटाने, फील्ड में जाकर जांच कररने और लैब्स सुपरवाइज करने का काम सौंपा गया. मेमो में हुबेई प्रांत को हवाई अड्डे, बस अड्डे और ट्रेन स्टेशनों पर लोगों का बुखार चेक करने का निर्देश दिया गया. इसके अलावा प्रांतीय स्वास्थ्य अधिकारियों को 63 पेज का निर्देशों का एक सेट बांटा गया. इसमें स्वास्थ्य अधिकारियों को संदिग्ध मामलों की पहचान करने, अस्पतालों में फीवर क्लीनिक खोलने और डॉक्टरों व नर्सों को प्रोटेक्टिव कपडे पहनने के निर्देश दिए गए थे. इस सेट पर इंटरनल मार्क किया गया था. इस पर साफ तौर पर लिखा गया था कि ये सेट सार्वजनिक करने के लिए नहीं है.
‘चेतावनी पहले देते तो बच जाती हजारों लोगों की जान’
अधिकारी खतरे को कम करके बताते रहे और महामारी दुनिया को चपेट में लेने की दिशा में फैलनी शुरू हो चुकी थी. संक्रमण फैलने के बीच 20 जनवरी को या यूं कहें कि काफी देर से शी जिनपिंग ने आखिरकार दुनिया को बताया कि लोगों को कोरोना वायरस को गंभीरता से लेना चाहिए. अगर यही काम पहले कर दिया गया होता तो हालात इतने बुरे नहीं होते. अगर पहले ही लोगों को सोेशल डिस्टेंसिंग, फेस मास्क पहले और यात्रा प्रतिबंध लगा दिए गए होते तो कोरोना वायरस के पॉजिटिव केस एक तिहाई होते.
लॉस एंजिलेस में डॉक्टर झांग का कहना है कि पहले दी गई चेतावनी हजारों लोगों की जिंदगी बचा सकती थी. हालांकि, यूनिवर्सिटी ऑफ हांगकांग में महामारी विशेषज्ञ बेंजामिन कावले का कहना है कि अगर वे हर तरफ से आश्वस्त होने से पहले ही घोषणा कर देते तो उनकी योग्यता पर भी सवाल उठते. महज 6 दिन की देरी को बहुत देर नहीं माना जाना चाहिए. संक्रमण की घोषणा के करीब दो महीने बाद तक अमेरिका तो खतरे की तरफ से आंखें ही बंद किए रहा. उसके पास तो तैयारी का पूरा मौका था. फिर भी अमेरिका के हालात सबसे बुरे हैं.
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