Coronavirus: दिल्ली में प्लाज्मा थेरैपी से सुधरी संक्रमित की हालत, जानें कैसे होता है इलाज – Coronavirus: condition is improving of man on ventilator with plasma therapy in Delhi, know how to treat | knowledge – News in Hindi
प्लाज्मा थेरैपी का दुनियाभर के डॉक्टर कर रहे प्रयोग के तौर पर इस्तेमाल
प्लाज्मा थेरैपी से इलाज के जरिये ठीक हो रहे मरीज के पिता की बुधवार को संक्रमण के कारण मौत हो गई थी. इसके बाद उसके परिवार के सदस्यों ने कुछ भी करके उसे बचाने को कहा. उन्होंने प्लाज्मा थेरैपी का प्रयोग करने को कहा. डॉ. बुधीराजा ने कहा कि प्लाज्मा थेरैपी के जरिये इलाज नई बात नहीं है. सार्स के मामलों में इसका काफी इस्तेमाल किया गया था. हालांकि COVID-19 के मरीज पर इसका इस्तेमाल हाल में ही शुरू किया गया है.
दुनियाभर में इसका प्रयोग के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है. इनमें कुछ मामलों में सफलता भी मिली है. भारत में भी इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) और ड्रग कंटोरलर जनरल आफ इंडिया (DCGI) ने प्लाज्मा थेरैपी का क्लीनिकल ट्रायल शुरू कर दिया है. इस मरीज की हालत इतनी खराब थी कि हम ज्यादा इंतजार नहीं कर सकते थे. लिहाजा, परिवार की मंजूरी के साथ इलाज शुरू कर दिया गया.
संक्रमण से उबरने के दो सप्ताह बाद बाद कोई भी व्यक्ति प्लाज्मा थेरैपी के लिए रक्तदान कर सकता है.
दिल्ली सरकार पहले ही हासिल कर चुकी है क्लीनिक ट्रायल की अनुमति
डॉ. बुधीराजा ने बताया कि उसके परिवार के अन्य सदस्य भी संक्रमित हो गए थे, जो इलाज के बाद पूरी तरह से ठीक हो चुके थे. इस परिवार को जिस व्यक्ति के संपर्क में आने से संक्रमण हुआ था, वह इलाज के बाद अब पूरी तरह से ठीक हो चुका है. उसने इलाज के लिए रक्तदान किया. इसके बाद वेंटिलेटर पर मौजूद मरीज का इलाज शुरू करने से पहले परिवार की पूरी सहमति ली गई. उन्होंने बताया कि ठीक होने के दो सप्ताह बाद बाद कोई भी संक्रमित व्यक्ति प्लाज्मा थेरैपी के लिए प्लाज्मा दान कर सकता है.
माना जाता है कि इसके बाद ठीक हो चुके मरीज की एंटीबॉडीज कोरोना वायरस के खिलाफ मुकाबले के लिए पूरी तरह तैयार होती हैं. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड वायलियरी साइंस (ILBS) के डायरेक्टर डॉ. एसके सरीन ने बताया कि दिल्ली सरकार इस तकनीक से मरीजों के इलाज का ट्रायल करने की अनुमति हासिल कर चुकी है.
पहले भी दूसरे वायरस संक्रमण के खिलाफ हुआ है तकनीक का इस्तेमाल
दिल्ली के अलावा महाराष्ट्र, केरल और गुजरात में भी COVID-19 के मरीजों का प्लाज्मा थेरैपी के जरिये इलाज शुरू किया जा रहा है. स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक इस वायरस की वैक्सीन नहीं बन जाती तब तक वैकल्पिक समाधानों को अपनाकर मरीजों का इलाज करना ही होगा. बता दें कि इस तकनीक का 1918 में फैले फ्लू और 1930 में खसरा संक्रमण के इलाज में भी इस्तेमाल किया जा चुका है. हालिया वर्षों में इबोला, सार्स और H1N1 इंफ्लूएंजा के मरीजों के इलाज में भी इस तकनीक का सफल प्रयोग किया गया था.
हाल में चीन के डॉक्टरों ने कोरोना वायरस के मरीजों पर इस तकनीक का इस्तेमाल किया. उन्होंने पाया कि इससे इलाज करने पर मरीजों की हालत में तेजी से सुधार हो रहा है. हालांकि, अमेरिका के एमडीए ने कहा है कि इससे मरीजों की हालत में निश्चित तौर पर सुधार हो रहा है, लेकिन इसे बहुत ज्यादा सुरक्षित और प्रभावी तकनीक नहीं माना जा सकता है.
संक्रमण से उबर चुके व्यक्ति की एंटीबॉडीज से कोरोना वायरस के दूसरे मरीजों के शरीर में मौजूद संक्रमण को खत्म किया जा सकता है.
प्लाज्मा थेरैपी से मरीज की हालत में 48-72 घंटे में हो सकता है सुधार
विशेषज्ञों का कहना है कि प्लाज्मा थैरेपी में कोरोना संक्रमण से उबर चुके मरीजों के रक्त से प्लाज्मा निकालकर गंभीर मरीजों के शरीर में डाला जाता है. इससे गंभीर मरीज के संक्रमण से लड़ने की रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) बढ़ जाती है. अगर कोई व्यक्ति कोरोना वायरस के संक्रमण से ठीक हो जाए, तो उसके शरीर में इस वायरस को बेअसर करने वाले एंटीबॉडीज बन जाते हैं. इन एंटीबॉडीज की मदद से इस वायरस से संक्रमित दूसरे मरीजों के शरीर में मौजूद कोरोना वायरस को खत्म किया जा सकता है.
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक, किसी मरीज के ठीक होने के 14 दिन बाद उसके शरीर से एंटीबॉडीज लिए जा सकते हैं. रक्त में मौजूद एंटीबॉडीज केवल प्लाज्मा में मौजूद होते हैं. इसीलिए रक्त से प्लाज्मा निकालकर बाकी खून फिर से दान करने वाले मरीज के शरीर में चढा दिया जाता. इस थरैपी को शुरू करने के 48 से 72 घंटे के भीतर मरीज की हालत में सुधार आ सकता है.
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