देश दुनिया

वो महिला जिसके लिए अंबेडकर ने लिखा-उन्होंने मेरी उम्र 10 साल बढ़ा दी।today in 1948 dr bhimrao ambedkar married second time in delhi with dr. savita | knowledge – News in Hindi

बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने अपनी किताब “द बुद्धा एंड हिज धम्मा” की भूमिका में एक महिला की तारीफ करते हुए लिखा, “उन्होंने मेरी उम्र कम से कम 10 साल और बढ़ा दी”. इस महिला पर बाद अंबेडकरवादियों ने आरोप लगाया कि उनके नेता का निधन हत्या थी, जिसके लिए ये महिला जिम्मेवार है. केंद्र सरकार ने जांच कराई और इस महिला को क्लीन चिट दे दी गई. दरअसल ये महिला 72 साल पहले आज ही के दिन अंबेडकर के जीवन का सबसे अहम हिस्त् हिस्सा बनी थीं. बाद में कांग्रेस ने उन्हें कई बार राज्यसभा सदस्यता का भी न्योता दिया लेकिन उन्होंने विनम्रता से अस्वीकार कर दिया.

ये महिला थीं डॉक्टर सविता भीमराव अंबेडकर. जिनका जन्म महाराष्ट्र के एक कुलीन ब्राह्मण परिवार में हुआ था. वो डॉक्टर थीं. बाबा साहेब की दूसरी पत्नी बनीं. जिस समय अंबेडकर ने उनसे शादी की, उनके परिवारजन ही नहीं बल्कि बहुत से अनुयायी भी खासे नाराज हुए. अंबेडकरवादियों को समझ में नहीं आया कि जिन सवर्ण जातियों के खिलाफ बाबा साहेब ने लगातार संघर्ष का बिगुल बजाया, उसी वर्ग की महिला से क्यों शादी कर ली.

सविता उस दिन अंबेडकर के साथ दिल्ली में थीं, जब उनका निधन हुआ. दरअसल दिन में सबकुछ ठीक था. बाबा साहेब शाम को कुछ मुलाकातियों से मिले. फिर उन्हें सिरदर्द की शिकायत हुई. उन्होंने सहायक से सिर दबवाया. खाया खाया. सोने से पहले पसंदीदा गीत गुनगुनाया. सोते समय किताब पढ़ी. सुबह बिस्तर पर मृत मिले. रात में ही हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया था. उनके इस निधन को अंबेडकर को मानने वाले एक वर्ग ने संदेह की नजरों से देखा. उन्होंने आरोप लगाया कि ये निधन स्वाभाविक नहीं बल्कि साजिश का नतीजा है. निशाने पर थीं सविता अंबेडकर

सविता माई ने जब बाबा साहेब से शादी की तो वो उनके साथ उस आंदोलन में जोर-शोर से कूद पड़ी थीं, जिसे वो लंबे समय से चला रहे थे. वो सामाजिक कार्यकर्ता थीं. होनहार डॉक्टर थीं. बाबा साहब के साथ बौद्ध धर्म भी स्वीकार किया था. अंबेडकर के अनुयायी और बौद्धिस्ट उन्हें माई या मेम साहब कहते थे.वैसे डॉ. अंबेडकर ने तमाम किताबें लिखीं लेकिन जब वो “द बुद्धा एंड हिज धम्मा” लिख रहे थे तो भूमिका में उन्होंने खासतौर पर सविता माई का जिक्र किया. उन्होंने बताया कि किस तरह से केवल उनके कारण उनकी जिंदगी के 08-10 साल बढ़े हैं.

सविता कबीर मुंबई के एक अस्पताल में डॉक्टर थीं. मुंबई में उनकी मुलाकात डॉ. अंबेडकर से एक परिचित के घर पर हुई थी. सविता महाराष्ट्र के सारस्वत ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखती थीं

तब महिलाएं ना के बराबर डॉक्टरी पढ़ती थीं 
सविता मुंबई में मराठी ब्राह्मण परिवार में 27 जनवरी 1909 को पैदा हुईं थी. तब बहुत कम महिलाएं पढाई करती थीं. ऐसे में उनका ना केवल पढाई करना बल्कि डॉक्टरी की पढाई करना असाधारण ही कहा जाएगा. आजादी से पहले के दशकों में एमबीबीएस करना बहुत बड़ी बात थी. सविता मेघावी स्टूडेंट थीं. उन्होंने मुंबई के ग्रांट मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस किया. उनका परिवार महाराष्ट्र के रत्नागिरी के एक गांव से ताल्लुक रखता था.

आठ में छह भाई-बहनों ने किया था अंतर जातीय विवाह
उनका परिवार शायद आधुनिक विचारों का था. आठ भाई-बहनों में छह ने अंतरजातीय विवाह किया था. सविता ने खुद “डॉ. अम्बेडकरच्या सहवासत” शीर्षक से आत्मकथा में  लिखा, ” हम भाई-बहनों के अंतरजातीय विवाह करने पर हमारे परिवार ने कोई विरोध नहीं किया. इसका कारण था कि पूरा परिवार सुशिक्षित और प्रगतिशील था.”

डॉ. सविता की अंबेडकर से पहली मुलाकात मुंबई में एक परिचित के घर हुई लेकिन बाद में जब अंबेडकर की तबीयत डायबिटीज के कारण बहुत बिगड़ गई तो उन्होंने उनका इलाज भी किया

मेरे बारे में भ्रामक बातें फैलाई गईं
फारवर्ड प्रेस में प्रकाशित एक लेख सविता के हवाले से कहा गया. “मेरा डॉ. अंबेडकर के जीवन में कैसे, कहाँ, कब और क्यों प्रवेश हुआ, इसके बारे में लोगों के मन में खासा कौतूहल रहा है. इस बारे में तमाम लोगों ने भ्रामक बातें भी फैलाईं गईं.” उनकी पहली मुलाकात डॉ. अंबेडकर से मुंबई में अपने परिचित डॉ. एस. एम. राव के घर पर हुई. डॉ. राव ने भी अपनी पढ़ाई लंदन में की थी. अंबेडकर अक्सर दिल्ली से मुंबई आने पर डॉ. राव के घर जाते थे. तब बाबा साहेब वायसराय की कार्यकारिणी में श्रम मंत्री थे. पहली मुलाकात के बाद कई ऐसे अवसर आए जबकि अंबेडकर की सविता से मुलाकात हुई. फिर बढ़ती मुलाकातों ने निकटता भी बढ़ाई.

डॉ. अंबेडकर का इलाज किया
1947 आते-आते डॉ. अंबेडकर तबियत खराब रहने लगे थे. सविता ही उनका इलाज कर रही थीं. उन्होंने अंबेडकर का स्वास्थ्य बेहतर करने में काफी काम किया. लोकवाङ्गमय गृह प्रकाशन, मुम्बई से प्रकाशित पुस्तक “डॉ. बाबा साहेब” में कहा गया कि 16 मार्च, 1948 को दादा साहब गायकवाड़ को लिखे पत्र में अंबेडकर ने कहा, सेवा-टहल के लिए किसी नर्स या घर संभालने के लिए किसी महिला को रखने पर लोगों के मन मे शंकाएं पैदा होंगी. इसलिए शादी कर लेना ही सबसे उचित रास्ता रहेगा. मैने पहली पत्नी के निधन के बाद शादी नहीं करने का निश्चय किया था लेकिन अब जो स्थितियां हैं, उसमें मुझको अपना निश्चय छोड़ना होगा.”

15 अप्रैल को दिल्ली में सविता से अंबेडकर का दूसरा विवाह
15 अप्रैल 1948 को डॉ अंबेडकर का विवाह उनके दिल्ली स्थित घर पर डॉ. सविता कबीर हुआ. तब बाबा साहेब हार्डिंग एवेन्यू (अब तिलक ब्रिज) में रहते थे. शादी के लिए रजिस्ट्रार के तौर पर रामेश्वर दयाल डिप्टी कमिश्नर दिल्ली बुलाए गए. यह विवाह सिविल मैरिज एक्ट के अधीन सिविल मैरिज के तौर पर सम्पन्न हुआ. इस मौके पर सविता के परिजनों समेत कई लोग मौजूद थे सिवाय अंबेडकर के अपने करीबी परिजनों के.

शादी के बाद सविता पर क्या आरोप लगते थे
शादी के बाद बहुत से लोगों की शिकायत ये रहने लगी कि अब डॉ. अंबेडकर से मुलाकात करना मुश्किल हो गया है. डॉक्टर सविता खुद तय करती हैं कि कौन उनसे मिलेगा और कौन नहीं. उनकी ब्राह्णण जाति भी अंबेडकर के अनुयायियों को नाराज करती थी. डॉ. सविता अंबेडकर पर बाद में कई किताबें लिखी गईं, जिनमें कहा गया कि उन्होंने ना केवल पत्नी बल्कि अंबेडकर के डॉक्टर की जिम्मेदारी भी बखूबी निभाई.

डॉक्टर सविता कबीर के साथ डॉ. अंबेडकर की दूसरी शादी दिल्ली में 15 अप्रैल 1948 के दिन हुई

अंबेडकर के निधन के बाद 
निधन के बाद सविता दिल्ली में ही एक फॉर्म हाउस में रहने लगीं. अंबेडकर के परिजनों से उनके रिश्ते हमेशा से ही तनाव भरे थे. ऊपर से उसी पक्ष की ओर से उन पर अंबेडकर के निधन को लेकर लापरवाही का आरोप लगाया गया था. तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने अंबेडकर अनुयायियों के भारी दबाव के बीच जांच बिठाई लेकिन जांच में निष्कर्ष निकला कि ये एक नेचुरल डेथ थी.

राज्यसभा में आने का भी ऑफर मिला
बाद में जवाहर लाल नेहरू और फिर इंदिरा गांधी दोनों ने उन्हें राज्यसभा में आने का न्योता दिया लेकिन उन्होंने इसे विनम्रता से मना कर दिया. हालांकि जब भारत सरकार ने अंबेडकर को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ”भारत रत्न” से विभूषित किया तो 14 अप्रैल,1990 के दिन यह सम्मान डॉ. आंबेडकर की पत्नी की हैसियत से उन्होंने ग्रहण किया. दिल्ली में अंबेडकर को लेकर होने वाली कई गतिविधियों में वह सक्रिय रहती थीं. हालांकि उन्होंने खुद को सियासी गतिविधियों से काट रखा था लेकिन बाद में मुंबई जाकर उन्होंने सियासी तौर पर सक्रिय होने की कोशिश की.

नेहरू ने बड़ी नौकरी देने का भी प्रस्ताव दिया था 
सविता अंबेडकर ने “डॉ. अम्बेडकरच्या सहवासत शीर्षक” से आत्मकथा लिखी. ये मराठी में प्रकाशित हुई. फिर इसका हिन्दी और अंग्रेजी में अनुवाद भी हुआ. उसमें उन्होंने लिखा, “डॉ. अंबेडकर के परीनिर्वाण के बाद मुझे प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सरकारी अस्पताल में मेडिकल ऑफिसर की नौकरी देने तथा राज्यसभा में लेने की बात कही थी, लेकिन मैंने स्वेच्छा से मना कर दिया. कारण था कि बाबा साहेब ने मुझे किसी तरह की नौकरी से अलग रहने के लिए कहा था. फिर राज्यसभा की सदस्यता को स्वीकार करना कांग्रेस की मर्जी से चलने के लिए अपने आप को तैयार करना था, जो मैं नहीं चाहती थी. ये सब स्वीकार करना बाबा साहेब के विचारों के विरुद्ध जाना था.”

जी रही हूं तो अंबेडकर के नाम के साथ, मरूंगी तो इसी नाम के साथ
उन्होंने आगे लिखा, “मुझे साहेब ने स्वीकार किया. मैं अंबेडकर मयी हो गई. मैंने उनका हमेशा साथ दिया. बीते 36 सालों से विधवा का जीवन जी रही हूँ, वह भी अंबेडकर के नाम के साथ. मैं अंबेडकर के नाम के साथ जी रही हूं और मरूंगी भी तो इसी नाम के साथ.” 19 अप्रैल, 2003 को को मुबई के जे.जे. हॉस्पिटल में खराब स्वास्थ्य के कारण उन्हें भर्ती कराया गया. 29 मई, 2003 को उनका निधन हो गया.

ये भी पढ़ें
क्यों अंबेडकर पर रीझ गई थी लंदन की एक अंग्रेज युवती, दोनों ने लिखे थे 92 खत
‘पैदा तो हिंदू हुआ पर मरूंगा हिंदू नहीं’ कहने वाले अंबेडकर ने आखिर क्यों अपनाया था बौद्ध धर्म



Source link

Related Articles

Back to top button