OPINION: तो अब ज्यादा जोर होगा कोरोना वायरस के हॉट-स्पॉट कम करने पर | OPINION: So now the emphasis will be on reducing hot spots | blog – News in Hindi
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हालात पर नज़र रखने वालों का तर्क है कि जब देश में कोरोना के पर्याप्त टेस्ट ही नहीं किए जा रहे हैं तो पता कैसे चलेगा कि आज हमारी वास्तविक स्थिति क्या है.
ऐसे कई छोटे छोटे इलाके तो अभी भी हैं जहां कोरोना वायरस का खतरनाक असर नहीं है. ऐसी जगहों पर भी एक हफ्ते लॉकडाउन जारी रखने का फैसला बताता है कि सरकार अभी भी मान कर चल रही है कि देश में कोरोना को लेकर कोई भी जगह सुरक्षित स्थिति में नहीं है.
क्या और भी था कोई विकल्प
मौजूदा हालत ये हैं कि कोरोना का असर दिन पर दिन बढ़त पर है. यानी लॉकडाउन खत्म करने या उसमें कोई छूट देने का कोई आधार उपलब्ध नहीं था. लेकिन अबतक के लॉकडाउन ने जनजीवन पर जो असर डाला है वह जरूर चिंताजनक है. इसी चिंता को इस तरह देखा गया कि 20 अप्रैल के बाद उन इलाकों को छांटा जाएगा जो कोरोना से प्रभावित रेड जोन या ऑरेंज जोन में नहीं होंगे. गौरतलब है कि ऐसे कई छोटे छोटे इलाके तो अभी भी हैं जहां कोरोना का खतरनाक असर नहीं है. ऐसी जगहों पर भी एक हफ्ते लॉकडाउन जारी रखने का फैसला बताता है कि सरकार अभी भी मान कर चल रही है कि देश में कोरोना को लेकर कोई भी जगह सुरक्षित स्थिति में नहीं है.
अब तक फर्क क्या आयाइसका आकलन बहुत ही मुश्किल काम है. पिछले तीन हफ्ते से कोरोना संक्रमण के मामले अपने पिछले दिन के आंकड़े से बढ़कर ही सामने आ रहे हैं. हालांकि ज्यादा चिंता न जताने का एक ही आधार बताया गया है कि कई बड़े देशों की स्थिति बहुत ही खराब है. सो उनकी तुलना में अभी हमारे यहां प्रति दस लाख आबादी पर कोरोना के उतने ज्यादा मामले दर्ज नहीं हुए हैं. केंद्र सरकार का अमला इसे अपने काम का नतीजा बता रहा है. उधर सरकारी काम काज से नाखुश लोग इसे आंकड़ों का छुपाव बता रहे हैं. हालात पर नज़र रखने वालों का तर्क है कि जब देश में कोरोना के पर्याप्त टेस्ट ही नहीं किए जा रहे हैं तो पता कैसे चलेगा कि आज हमारी वास्तविक स्थिति क्या है.
क्या स्थिति है दुनिया में परीक्षण व्यवस्था की
बड़ी अच्छी बात है कि अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं परीक्षण व्यवस्था के आंकड़े को रोज ब रोज बताती चल रही हैं. इसके मुताबिक अमेरिका में प्रति दस लाख आबादी पर परीक्षण कराए जाने का आंकड़ा 8894 है. इसीसे पता चल पाया कि वहां पांच लाख 87 हजार लोग संक्रमित हैं. भारत में प्रति दस लाख सिर्फ 149 लोगों के टेस्ट हुए हैं. चिंता जताने वाले लोग इसीलिए सवाल उठा रहे हैं कि परीक्षण की पर्याप्त व्यवस्था न होने के कारण हमारे यहां संक्रमितों का आंकड़ा आज दिन तक सिर्फ दस हजार है.
वैसे कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित बड़े देशों में परीक्षण की संख्या पर नज़र डालें तो इटली प्रति दस लाख आबादी में 17 हजार 315 लोगों का परीक्षण करवा रहा है. जर्मनी में यह दर 15730 है. स्पेन में प्रति दस लाख आबादी पर 12 हजार 833 परीक्षण हो चुके हैं. जिस देश में एक लाख से ज्यादा संक्रमितों का पता चल चुका है वहां भी परीक्षण की दर पांच हजार से ज्यादा है. यानी हमें भी ध्यान देना चाहिए कि कहीं परीक्षण व्यवस्था नहीं बढ़ाए जाने के कारण हम मुगालते में तो नहीं कि हमने संक्रमण को काबू में कर रखा है. वैसे सांख्यिकी के सरकारी विशेषज्ञ यह तर्क दे सकते हैं कि भले ही हम प्रति दस लाख सिर्फ 149 लोगों का परीक्षण करवा रहे हैं लेकिन भारत में अब तक दो लाख छह हजार लोगों का परीक्षण करवाया जा चुका है. वे तर्क दे सकते हैं कि एक नमूने के तौर में यह संख्या कम नहीं है. लेकिन जब मामला सांख्यिकीय अनुमान का हो तो इस तर्क पर बहस की गुंजाइश नहीं बचती.
आखिर कोरोना से उबरना तो पड़ेगा ही
इसी मकसद से देश में चौतरफा कवायद चल रही है. कोरोना ज्यादा न फैले इसी के लिए लॉकडाउन चल रहा है. लेकिन क्या सिर्फ यही उपाय कोरोना से पिंड छुड़ाने की गारंटी दे सकता है. अलबत्ता ये जरूर हो सकता है कि बिना इलाज का इंतजाम हुए ही यह संक्रमण नागरिकों में प्रतिरोधी क्षमता विकसित कर रहा हो और एक दिन हमें पता चले कि देश के ज्यादातर नागरिक कोरोना प्रतिरोधी हो चुके हैं. अगर वाकई ऐसा हुआ तो इससे अच्छी और क्या बात होगी? लेकिन तब तक हमारी माली हालत पतली हो चुकी होगी. तब हम ध्वस्त अर्थव्यवस्था से उबरने के लिए एक अलग कवायद कर रहे होंगे. बस इसी अंदेशे के चलते 14 अप्रैल को प्रधानमंत्री का भाषण चित्त लगाकर सुना गया. और इसी भाषण में पता चला कि सरकार भी इस बारे में चिंतित है और एक हफ्ते के बाद जायज़ा लेकर देश के उन इलाकों की पहचान करेगी जहां लॉकडाउन की शर्तों से कुछ छूट दी जा सकती है.
जाहिर है कि राज्य सरकारें जो लॉकडाउन के कारण अपने नागरिकों की आजीविका के संकट से सबसे ज्यादा परेशान हैं, वे अब इसी काम पर लगेंगी कि अपने यहां हॉट स्पॉट की संख्या न बढ़ने दें ताकि वहां लॉकडाउन खुले और जनजीवन बहाल हो.
अपने संसाधन झोंक देना चाहिए राज्य सरकारों को
एक तो राज्य सरकारें अपनी माली हालत को लेकर पहले से ही बदहाल थीं. अब अगर कोरोना के कारण सारे कामकाज कुछ हफ्ते और ठप रहे तो उनकी कमर टूट जाएगी. ऐसे में उनके पास एक ही चारा बचता है कि वे अपने अपने राज्यों में कोरोना से बचने के लिए सारे संसाधन झोंक दें. अभी ज्यादा खर्च करके अगर अपने कामधंधों को वे पटरी पर ले आती हैं तो खर्च की भरपाई बाद में भी होती रहेगी. लगता है प्रधानमंत्री ने बुधवार को जो भाषण दिया है वह सबसे ज्यादा राज्य सरकारों की तरफ देखते हुए ही दिया है.
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First published: April 14, 2020, 6:23 PM IST