जो जीवन को दिशा देती है– “श्रीमद्भगवद् गीता”

जो जीवन को दिशा देती है– “श्रीमद्भगवद् गीता”
“जीवित अवस्था में गीता का अनुशीलन ही जीवन सफलता का आधार” मानव जीवन अनंत रहस्यों से परिपूर्ण है। उन रहस्यों में सबसे विशद और दिव्य रहस्य है आत्मा का परमात्मा से मिलन। यही वह ज्ञान है, जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के कुरुक्षेत्र में अर्जुन के माध्यम से सम्पूर्ण मानव समाज को प्रदान किया। श्रीमद्भगवद्गीता वस्तुतः केवल एक ग्रंथ नहीं, अपितु मानव जीवन का दिव्य मार्गदर्शक है, जो जन्म से मृत्यु तक, प्रत्येक क्षण में कर्म, ज्ञान और भक्ति का संतुलन सिखाती है।परंतु अनेक जन यह भ्रांति पाल लेते हैं कि भगवद्गीता केवल मृत्युशय्या पर पड़े व्यक्ति को सुनाने योग्य ग्रंथ है। इस प्रकार की धारणा न केवल गीता के आदर्श का अवमूल्यन है, अपितु मानव बुद्धि की संकीर्णता का भी परिचायक है। विचार कीजिए—जो व्यक्ति मरणासन्न स्थिति में है, जिसकी चेतना क्षीण हो रही है, जो अपने कर्मबल से रहित है—वह गीता जैसे गूढ़ शास्त्र का अर्थ कैसे आत्मसात कर सकेगा?निस्संदेह, भगवान ने गीता में कहा है कि यदि मृत्यु के क्षण में भी मानव का स्मरण भगवन्नाम में रमा हो, तो उसे मुक्ति निश्चित है। परंतु यह तभी संभव है जब वह जीवनभर सजग चित्त से ईश्वर का स्मरण, साधना और विवेक का अभ्यास करता रहा हो। क्योंकि जो मनुष्य जन्म-जन्मांतर तक माया, मोह, राग-द्वेष, अहंकार और छल-कपट में डूबा रहा हो, उसके लिए अंत समय में ईश्वरस्मरण स्वप्न समान दुर्लभ है। जैसे कोई विद्यार्थी वर्षभर मौज-मस्ती में लिप्त रहे और परीक्षा से कुछ पल पूर्व ही सम्पूर्ण पाठ्यक्रम आत्मसात करने का अभिलाषी हो—वह कभी सफल नहीं हो सकता।अतः गीता का अध्ययन मृत्यु के क्षणों का नहीं, बल्कि जीवन के प्रत्येक प्रातः का विषय है। वह हमें जीवन की कला सिखाती है—कैसे कर्म करते हुए भी निर्लिप्त रहा जाए, कैसे दुःख में स्थिर और सुख में नम्र रहा जाए, कैसे अपने अस्तित्व को दिव्यता की ओर उन्मुख किया जाए। गीता का अनुशीलन जीवित अवस्था में ही अर्थपूर्ण है; तभी उसका सन्देश चेतना में स्थिर होता है और जीवन को समृद्ध, शांतिमय तथा सुखमय बनाता है।इसलिए, जब तक इस जीवन की श्वासें मुक्त हैं, तब तक श्रीमद्भगवद्गीता के परम दिव्य उपदेशों को सुनिए, पढ़िए, मनन कीजिए और आचरण में लाईए। यही आत्मोन्नति का श्रेष्ठतम साधन है, यही जीवन को सार्थकता प्रदान करने का मंत्र है। जब गीता का प्रत्येक श्लोक हमारे व्यवहार में उतर आएगा, तभी हमारे अस्तित्व का प्रत्येक क्षण ईश्वरमय हो उठेगा। ऋचा चंद्राकर "तत्वाकांक्षी"


