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सऊदी अरब के साथ डील कर क्या पाकिस्तान ने मुसीबत मोल ले ली? – द लेंस

बीते दिनों जब ख़बर आई कि पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच एक अहम रक्षा सौदा हुआ है, तो कई क्षेत्रों में लोगों की भौंहें तनीं.

सबसे ज़्यादा जिस बात की चर्चा हुई वो थी समझौते की एक लाइन- अगर एक देश पर हमला हुआ तो उसे दूसरे देश पर हुए हमले के तौर पर भी देखा जाएगा.

भारत में कई विश्लेषकों ने इसे मई में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए सैन्य संघर्ष के संदर्भ में देखना शुरू किया तो पश्चिमी देशों के विश्लेषकों ने इसे बीते दिनों क़तर में हमास के कथित ठिकानों पर इसराइली हमले के संदर्भ में देखा. इस समझौते से कई सवाल भी उठे हैं.

क्या ये समझौता वास्तव में पाकिस्तान और सऊदी अरब के रिश्तों में आया कोई अहम पड़ाव है या पहले से चले आ रहे रिश्तों को और मज़बूती दी गई है?

भारत-सऊदी अरब रिश्तों के लिए इसके क्या मायने हैं? अमेरिका के पिछले दिनों के अप्रत्याशित रवैये को देखते हुए क्या सऊदी अरब नए साझेदार तलाश कर रहा है?

क्या पाकिस्तान चीन पर निर्भरता कम करने की कोशिश में है या ये मुस्लिम देशों की किसी नई साझेदारी का संकेत है?

द लेंस के आज के एपिसोड में इन सभी मुद्दों पर चर्चा की गई.

इस चर्चा में कलेक्टिव न्यूज़रूम के डायरेक्टर ऑफ़ जर्नलिज़म मुकेश शर्मा के साथ शामिल हुए दुबई से वरिष्ठ पत्रकार एहतेशाम शाहिद और दिल्ली में कौटिल्य स्कूल ऑफ़ पब्लिक पॉलिसी की असिस्टेंट प्रोफ़ेसर कनिका राखरा.

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