छत्तीसगढ़

कोरबा/SECL के सामने महिलाओं का अर्धनग्न प्रदर्शन : चूड़ी, साड़ी पहन लो’ का लगा नारा। इस घटना से आदिवासी समुदायों के जमीन और अधिकारों के मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में ला दिया है।

कोरबा/SECL के सामने महिलाओं का अर्धनग्न प्रदर्शन : चूड़ी, साड़ी पहन लो’ का लगा नारा। इस घटना से आदिवासी समुदायों के जमीन और अधिकारों के मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में ला दिया है।

कोरबा, छत्तीसगढ़। कोरबा जिले में दक्षिण पूर्वी कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) के दफ्तर के बाहर गुरुवार को एक चौंकाने वाली घटना हुई। अपनी जमीनें गंवा चुकी लगभग 20-25 भूविस्थापित आदिवासी महिलाओं ने उचित मुआवजे और नौकरी की मांग को लेकर अर्धनग्न होकर प्रदर्शन किया। यह पहली बार है जब महिलाओं ने इस तरह का उग्र प्रदर्शन किसी सरकारी दफ्तर के भीतर किया है। महिलाओं ने अपनी चूड़ियां और साड़ियां लहराते हुए “एसईसीएल चूड़ी साड़ी पहन लो!” के नारे लगाए, जिसके बाद पूरे इलाके में हड़कंप मच गया और प्रशासन सकते में आ गया। इस घटना के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद छत्तीसगढ़ सरकार की भी कड़ी आलोचना हो रही है।

जानें क्या मामला क्यों भड़का गुस्सा?

कोरबा, जो कोयला खनन के लिए जाना जाता है, यहां एसईसीएल की कुसमुंडा खदानें देश की सबसे बड़ी परियोजनाओं में से एक हैं। इन खदानों के लिए बड़े पैमाने पर आदिवासियों की पुश्तैनी जमीनें ली गईं। वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत उन्हें जमीन और वन संसाधनों पर अधिकार दिए गए थे, लेकिन बार-बार इन नियमों का उल्लंघन हुआ। एसईसीएल ने जमीन के बदले प्रभावित परिवारों को मुआवजा, नौकरी और पुनर्वास का वादा किया था, लेकिन कई साल गुजर जाने के बाद भी ये वादे पूरे नहीं हुए।

फर्जी नियुक्तियों से बढ़ा आक्रोश..

प्रदर्शनकारी महिलाओं ने बताया कि भूविस्थापितों के रोजगार का मामला कई सालों से अटका हुआ है। जमीनें छीने जाने के बाद भी न तो उन्हें सही मुआवजा मिला, न ही नौकरी और न ही पुनर्वास की कोई सुविधा। उन्होंने आरोप लगाया कि एसईसीएल ने कुछ मामलों में फर्जी नियुक्तियां कर दीं, जिसमें उनके नाम पर दूसरे लोगों को नौकरी दी गई। इससे उनकी आजीविका पूरी तरह से खत्म हो गई और वे आर्थिक तंगी का सामना कर रही हैं।

बड़े उद्योगपतियों को मिला फायदा..

भूविस्थापित रोजगार एकता महिला किसान कुसमुंडा की अध्यक्ष ने बताया कि असली भूविस्थापितों की जगह फर्जी लोगों को नौकरी दी गई है। उन्होंने कई बार प्रशासन को आवेदन देकर असली हकदारों को नौकरी देने की मांग की, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। महिलाओं ने कहा कि उनकी जमीनें औद्योगिक विकास के नाम पर छीनी गईं, जिसका फायदा बड़े उद्योगपतियों को मिला, जबकि स्थानीय आदिवासी समुदाय को पूरी तरह नजर अंदाज कर दिया गया। बार-बार शिकायत के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं होने पर ही उन्हें यह कदम उठाना पड़ा।

इस घटना ने एक बार फिर आदिवासी समुदायों के जमीन और अधिकारों के मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में ला दिया है।

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