
सबका संदेस न्यूज़ छत्तीसगढ़ रतनपुर- पंडित राजेंद्र दुबे ” जी ने कहा – काल का प्रत्येक क्षण महनीय, दिव्य और अतुल्य-ऊर्जा से परिपूर्ण है। यदि साधक एकाग्रचित्त, समर्पित होकर ईश प्रदत्त अवसरों का सही और सकारात्मक विनिवेश करे तो वह जीवन की अजेयता-अनन्तता को सहज ही उपलब्ध हो सकता है ..! जीवन का हर क्षण एक उज्ज्वल भविष्य की सम्भावना लेकर आता है। हर घड़ी एक महान मोड़ का समय हो सकती है। मनुष्य यह निश्चयपूर्वक नहीं कह सकता कि जिस वक्त, जिस क्षण और जिस पल को यों ही व्यर्थ में खो रहा है वह ही क्षण, वह ही पल क्या उसके भाग्योदय का क्षण नहीं है? क्या पता जिस क्षण को हम व्यर्थ समझकर नष्ट कर रहे हैं वह ही हमारे लिये अपनी झोली में सुन्दर सौभाग्य की सफलता लाया हो। हर मनुष्य को वक्त का, छोटे से छोटे क्षण का मूल्य एवं महत्व समझना चाहिये। जीवन का वक्त सीमित है और कार्य बहुत है। प्रकृति का प्रत्येक कार्य एक निश्चित समय पर होता है। समय पर ग्रीष्म तपता है, समय पर पानी बरसता है, समय पर ही शीत आता है। वक्त पर ही शिशिर होता और वक्त पर ही बसन्त आकर वनस्पतियों को फूलों से सजा देता है। प्रकृति के इस ऋतु क्रम में जरा सा भी व्यवधान पड़ जाने से न जाने कितने प्रकार के रोगों एवं इति-भीति का प्रकोप हो जाता है। चांद-सूरज, ग्रह-नक्षत्र सब समय पर ही उदय-अस्त होते हैं, समय के अनुसार ही अपनी परिधि एवं कक्ष में परिभ्रमण किया करते हैं। इनकी सामयिकता में जरा-सा व्यवधान पड़ने से सृष्टि में अनेक उपद्रव खड़े हो जाते हैं और प्रलय के दृश्य दिखने लगते हैं। इसलिए समय पालन ईश्वरीय नियमों में सबसे महत्त्वपूर्ण एवं प्रमुख नियम है …।
? पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – स्मरण रखिये ! समय बहुत मूल्यवान है। इससे आप जितना लाभ उठा सकते हैं, उठायें। समय का पालन मानव-जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण संयम है। समय पर कार्य करने वालों के शरीर चुस्त, मन निरोग तथा इन्द्रियां तेजस्वी बनी रहती हैं। निर्धारण के विपरीत काम करने से मन, बुद्धि तथा शरीर काम तो करते हैं, किन्तु अनुत्साहपूर्वक। इससे कार्य में दक्षता तो आती ही नहीं, साथ ही शक्तियों का भी क्षय होता है। किसी काम को करने के ठीक समय पर शरीर उसी काम के योग्य यन्त्र जैसा बन जाता है। ऐसे समय में यदि उससे दूसरा काम लिया जाता है, तो वह काम लकड़ी काटने वाली मशीन से कपड़े काटने जैसा ही होगा। क्रम एवं समय से न काम करने वालों का शरीर अस्त-व्यस्त प्रयोग के कारण शीघ्र ही निर्बल हो जाता है और कुछ ही समय में वह किसी कार्य के योग्य नहीं रहता। समय-संयम सफलता की निश्चित कुन्जी है। इसे प्राप्त करना प्रत्येक बुद्धिमान का मानवीय कर्त्तव्य है। ईश्वरचन्द्र विद्यासागर समय के बड़े पाबन्द थे। जब वे कॉलेज जाते तो रास्ते के दुकानदार अपनी घड़ियां उन्हें देखकर ठीक करते थे। वे जानते थे कि विद्यासागर कभी एक मिनट भी आगे पीछे नहीं चलते। एक विद्वान ने अपने दरवाजे पर लिख रखा था। ‘‘कृपया बेकार मत बैठिये। यहां पधारने की कृपा की है तो मेरे काम में कुछ मदद भी कीजिये।’’ साधारण मनुष्य जिस समय को बेकार की बातों में खर्च करते रहते हैं, उसे विवेकशील लोग किसी उपयोगी कार्य में लगाते हैं। यही आदत हैं जो सामान्य श्रेणी के व्यक्तियों को भी सफलता के उच्च शिखर पर पहुंचा देती हैं। माजार्ट ने हर पल को उपयोगी कार्य में लगे रहना अपने जीवन का आदर्श बना लिया था। वह मृत्यु शैय्या पर पड़े-पड़े भी कुछ न कुछ करते रहे। ‘रेक्यूम’ नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ उन्होंने मौत से लड़ते-लड़ते पूरा किया। पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – संसार का काल-चक्र भी कभी अनियमित नहीं होता। लोक और दिक्पाल, पृथ्वी और सूर्य, चन्द्र और अन्य ग्रह काल की गति से गतिमान हैं। समय की अनियमितता होने से सृष्टि का कोई काम चलता नहीं। धरती में भी यही नियम लागू है। लोग समय का अनुशासन न रखें तो रेल, डाक, कल-कारखाने, कृषि, रोजगार-धंधे आदि सभी ठप्प पड़ जायेंगे और उत्पादन व्यवस्था में गतिरोध के साथ सामान्य जीवन पर भी उसका कुप्रभाव पड़ेगा। इस तरह से सारी सामाजिक व्यवस्था उथल-पुथल हो जायेगी और मनुष्य को एक मिनट भी सुविधापूर्वक जीना कठिन हो जायेगा। जिस तरह अभी लोग भली प्रकार सारे क्रियाकलाप कर रहे हैं, वैसे कदापि नहीं हो सकते। अतः हमको भी अपनी दिनचर्या को अपने जीवन कार्यों की आवश्यकतानुसार विभक्त करके उसी के अनुरूप कार्य करना चाहिए …।
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