Korba News: कोरबा अस्पताल में नर्सों की लापरवाही ने खोली प्रबंधन की पोल, मरीजों के लिए बना जान का खतरा, प्रबंधन मूकदर्शक!

कोरबा। Korba News स्व. बिसाहू दास महंत स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय अस्पताल में इलाज कराने आने वाले मरीजों की जान कभी भी आफत में पड़ सकती है। वजह साफ है — यहां स्टाफ नर्सों का बेलगाम और गैरजिम्मेदाराना रवैया। मनमर्जी का आलम यह है कि नर्सें रोजाना देरी से अस्पताल पहुंचती हैं, चार्ज नहीं देतीं और ड्यूटी के वक्त मनमाने तरीके से आती-जाती हैं। ताज़ा मामला सामने आया फीमेल वार्ड से, जिसने पूरे प्रबंधन की पोल खोल कर रख दी है।
Korba News मामला उस वक्त उजागर हुआ जब अस्पताल के एमडी मेडिसिन डॉ. विशाल राजपूत मरीजों का हालचाल लेने फीमेल वार्ड पहुंचे। देखा तो वहां कोई नर्स मौजूद ही नहीं थी। ड्यूटी पर तैनात नर्स बिना ओवर हैंड किए जा चुकी थी, और दूसरी नर्स आधे घंटे बाद तक भी ड्यूटी पर नहीं पहुंची थी। यही नहीं, वार्ड में बीटी वाले एक मरीज को ब्लड रिएक्शन हो गया था। समय रहते डॉक्टर वहां पहुंचे, वरना बड़ा हादसा हो सकता था।
डॉ. राजपूत ने तत्काल इस गंभीर लापरवाही की जानकारी अस्पताल के ऑफिशियल व्हाट्सएप ग्रुप में साझा की, जिसमें मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. के.के. सहारे, मेडिकल सुपरिंटेंडेंट डॉ. गोपाल कंवर, असिस्टेंट एमएस डॉ. रविकांत जाटवर समेत तमाम जिम्मेदार अफसर और नर्सिंग स्टाफ जुड़े हैं। डॉक्टर ने लिखा —
“फीमेल वार्ड में कोई सिस्टर नहीं है। बिना ओवर दिए, दोपहर वाली सिस्टर चली गई है। बीटी वाले मरीज को ब्लड रिएक्शन हो गया है। अगर मरीज को कुछ हुआ, तो सिस्टर खुद जिम्मेदार होगी।”
पुराना है मामला, बायोमेट्रिक रिकॉर्ड ने खोली पोल
शिकायत के बाद जब प्रबंधन ने बायोमेट्रिक हाज़िरी रिकॉर्ड खंगाला तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। जिस संविदा स्टाफ नर्स की ड्यूटी थी, उसका ये रवैया नया नहीं था। बीते कई महीनों से वो लगभग 20 दिन देरी से ड्यूटी आ रही थी। छुट्टी लेने में भी नियम-कायदों की धज्जियां उड़ाई जा रही थीं। हद तो तब हो गई जब रिकॉर्ड में पाया गया कि कभी 12 मिनट, कभी 17 मिनट और कभी 1 घंटे में ही अस्पताल छोड़ देती थी। और ऐसा दर्जनों बार हुआ है।
नोटिस देने के बाद भी नर्स का रवैया नहीं बदला। उल्टे पहले दो दिन बगैर अनुमति के छुट्टी ली, फिर ड्यूटी ज्वाइन कर सिर्फ 17 मिनट में लौट गई। उसके बाद भी कभी आधा घंटा, कभी एक घंटा लेट पहुंचना जारी रहा। तय समय से एक-एक घंटे पहले ड्यूटी छोड़कर निकल जाना, बिना चार्ज दिए लौट जाना रोज़ का मामूल बन गया।
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जिम्मेदार अफसर भी बने तमाशबीन
इतना सब कुछ जानने के बाद भी मेडिकल कॉलेज प्रशासन की उदासीनता थमने का नाम नहीं ले रही। डीन डॉ. के.के. सहारे ने सिर्फ यह कहकर मामला रफा-दफा करने की कोशिश की कि “अनुशासन समिति बनाई गई है, जो स्टाफ की मॉनिटरिंग कर रही है। देरी करने वालों को अंतिम चेतावनी दी गई है। घटना की पुनरावृत्ति हुई तो नौकरी से निकाला जाएगा।”
लेकिन साहब, पुनरावृत्ति तो अब भी जारी है। सिर्फ चेतावनी देने से काम नहीं चलेगा। क्या फिर किसी मरीज की हालत बिगड़ने का इंतजार किया जाएगा? अस्पताल के सीसीटीवी कैमरे और बायोमेट्रिक मशीन की रिपोर्टें चीख-चीख कर बता रही हैं कि कैसे जिम्मेदार अफसरों की लापरवाही से मरीजों की जान आफत में है। और हद तो ये कि ड्यूटी से गायब रहने वालों को अब भी पूरी सैलरी दी जा रही है।
प्रशासनिक ढिलाई या मिलीभगत?
सवाल ये है कि क्या इस तरह की लापरवाही में अस्पताल प्रबंधन की भी मिलीभगत है? वरना इतने बड़े सरकारी अस्पताल में लगातार गैरहाजिरी और मनमानी ड्यूटी पर रोक क्यों नहीं लग पा रही? क्या केवल नोटिस जारी कर देने भर से मरीजों की जान बच जाएगी?
डॉक्टर की सजगता से एक मरीज की जान तो बच गई, लेकिन जब तक ऐसे लापरवाह स्टाफ पर सख्त कार्रवाई नहीं होगी, अस्पताल में हर मरीज खतरे में रहेगा। और अगर अफसर अब भी जागे नहीं, तो अगली बड़ी अनहोनी की जिम्मेदारी भी उन्हीं की होगी।