बेटा पढ़ाओ – संस्कार सिखाओ अभियान : लखोटिया
बेटा पढ़ाओ – संस्कार सिखाओ अभियान पर बोले भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य श्री कुमार लखोटिया
छोटी से छोटी घटनाओं का पूरी दुनिया पर असर पड़ता है
संस्कारों से व्यक्ति महान बन जाता है। जिसने भी इनको अपनाया जीवन के हर मोड़ पर वह सारे जहां का प्यारा सा इंसान बन जाता है।
लक्ष्मणगढ़ शेखावाटी के कवि हरीश शर्मा द्वारा आयोजित बेटा पढ़ाओ-संस्कार सिखाओ अभियान को लेकर भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य श्रीकुमार लखोटिया ने कहा कि संस्कारों से व्यक्ति महान बन जाता है। जिसने भी इनको अपनाया जीवन के हर मोड़ पर वह सारे जहां का प्यारा सा इंसान बन जाता है।
कहा जाता है शिक्षा जीवन का अनमोल उपहार है और संस्कार जीवन के सार हैं। इन दोनों के बिना धन-दौलत, जमीन-जायदाद, पद-प्रतिष्ठा और मान-मर्यादा सब बेकार हैं। शिक्षा व्यक्ति के जीवन को न केवल दिशा देती है वरना दशा भी बदल देती है। जब से शिक्षा का प्रचलन हुआ, अनादि काल से अर्थात् उस समय सीखे हुए ज्ञान को सहेज कर रखने के साधन भी नहीं थे तो भी ऋषि, मुनि, आचार्य, गुरु और संत-महात्माओं ने मानव जीवन के सार को पेड़ों की छालों पर लिखा, शिलाओं पर लिखा और पत्तों पर लिखा।
और वही ज्ञान समयान्तर विस्तृत होता गया, प्रसारित-प्रचारित होता गया और धीरे-धीरे आविष्कार होते गए और शिक्षा के स्वरूप में, शिक्षा के उद्देश्य में, तरीकों में और शिक्षा के मापदण्डों में निरन्तर परिवर्तन आता गया। और आज ऐसा समय आ गया है कि जब तक दुनिया का, देश का, समाज का और घर-परिवार का प्रत्येक बच्चा शिक्षित नहीं किया जाएगा तो फिर हम उन्नत दुनिया उन्नत देश की कल्पना तक भी नहीं कर पाएंगे। इसलिए आज समय बहुत तेजी से बदलता जा रहा है, नई-नई टेक्नोलॉजी विकसित हो रही है, शिक्षा के नए-नए साधन-आयाम विकसित और आविष्कृत हो रहे हैं, दुनिया सिकुड़ रही है, छोटी से छोटी घटना का पूरी दुनिया पर प्रभाव पड़ता है और इन प्रभावों को समझने के लिए, टेक्नोलॉजी को समझने के लिए, समय के साथ चलने के लिए अपनी संतान को अच्छी शिक्षा, सार्थक शिक्षा और व्यावहारिक शिक्षा से परिपूर्ण करना बहुत जरूरी है।
जिस प्रकार से बिना हथियारों के कोई युद्ध नहीं जीता जा सकता है उसी प्रकार बिना शिक्षा के जीवन को सार्थक और सच्चा नहीं बनाया जा सकता है। हमारी सबसे पहली जिम्मेदारी बनती है कि हर हाल में अपनी संतान को शिक्षित बनाएं ताकि वह परिवार-समाज और देश के विकास में अहम भागीदारी निभा सकें और राष्ट्र के अच्छे और जिम्मेदार नागरिक बन, अपना दायित्व बखूबी निभा सकें और जीवन को समझ और जी सकें गर्व से।
शिक्षा में ही संस्कार समाए हुए हैं क्योंकि भारतीय संस्कृति, भारतीय परम्पराएं, भारतीय जीवन मूल्य शिक्षा के आधार है। सनातन धर्म यही सिखाता आया है कि मानव-मानव में प्रेम हो, भाईचारा हो, एकता हो, सहयोग हो और एक दूसरे के सुख-दु:ख में काम आएं। भारतीय संस्कृति की ही खास बात है कि उसमें सभी संस्कृतियां समा गई और उसने अपना वजूद बनाए रखा। संस्कार किसी पेड़ पर नहीं पनपते हैं, दीवारों से नहीं टपकते हैं, संस्कार तो घर-परिवार, समाज, शिक्षालयों और आसपास के परिवेश से सृजित होते हैं। संस्कारों की सबसे अधिक जिम्मेदारी माता-पिता, परिजनों और शिक्षकों की होती है। यह भी सच है कि संस्कार मात्र कहने से, बोलने से नहीं आते हैं बल्कि ये तो व्यवहार से आते हैं, आचरण से आते हैं, सद्कर्म से आते हैं और चारित्रिक उज्ज्वलता से आते हैं। माता-पिता जैसा व्यवहार करेंगे, वैसा ही लगभग उनके बच्चे करते हैं। हमेशा याद रखें, आपकी हर हरकतों, कार्यो और व्यवहार का बारीक निरीक्षण आपके बच्चे कर रहे हैं, ध्यान रहे, वे कभी यह नहीं कह दे कि ये आपके क्या संस्कार हैं? शिक्षा और संस्कार जहां,सद्भाव और प्यार जहां,हाथ मिलेंगे दिल मिलेंगे
खुशियों का संसार वहां । इसलिए कवि शर्मा द्वारा आयोजित पहल सार्थक पहल हैं, इसमें हम सब को बढ़चढ कर हिस्सा लेते हुए आगे आना चाहिए ।