धर्म

आज है पुत्रदा एकादशी, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त और कथा

 

सबका संदेस न्यूज़ -हिंदू धर्म में एकादशी व्रत को बेहद शुभ और सर्वश्रेष्ठ तिथि माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन व्रत रखने,दान, स्नान और तप करने से मनुष्य को पुण्य मिलने के साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस बार साल की पहली एकादशी (पुत्रदा एकादशी) आज यानी 06 जनवरी को पड़ रही है। पौष शुक्‍ल पक्ष की एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। आज के दिन नारायण भगवान की पूजा की जाती है। आइए जानते हैं आखिर क्या है पुत्रदा एकादशी व्रत को करने का शुभ मुहूर्त, विधि और कथा।  

पुत्रदा एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त-
एकादशी तिथि आज पूरा दिन पूरी रात पार करके अगले दिन की भोर 4 बजकर 3 मिनट तक रहेगी। पुत्रदा एकादशी व्रत आज किया जाएगा।

पुत्रदा एकादशी व्रत को रखने के नियम-
पुत्रदा एकादशी का व्रत दो तरह से रख सकते हैं। पहला- निर्जल व्रत और दूसरा-फलाहारी या जलीय व्रत।
-पुत्रदा एकादशी व्रत का दूसरा नियम यह है कि यह निर्जला व्रत पूर्ण रूप से स्वस्थ्य व्यक्ति को ही रखना चाहिए।
– पुत्रदा एकादशी व्रत रखने वाले सामान्य लोगों को फलाहारी या जलीय उपवास रखना चाहिए।
– यदि आप संतान प्राप्ति या उससे सम्बन्धी किसी इच्छा को पूरा करने के लिए यह व्रत रखना चाहते हैं तो एकादशी व्रत के दिन भगवान् कृष्ण के बाल रूप और श्री नारायण की उपासना करें। 

पुत्रदा एकादशी व्रत की कथा-

पुत्रदा एकादशी की पौराणिक कथा के बारे में महाराज युधिष्ठर के पूछने पर भगवान श्री कृष्ण नें बताया कि इस व्रत की शुरुआत सबसे पहले महीजित नामक राजा ने की थी। राजा महीजित संतानहीन होने की वजह से बेहद दुखी  था। महीजित एक प्रतापी राजा था। वह अपनी प्रजा को पुत्र के समान मानता था। जिसकी वजह से उसकी प्रजा उससे बेहद खुश रहती थी। लेकिन राजा उनके राज्य का कोई उत्तराधिकारी न होने की वजह से अक्सर दुखी रहते थे। एक बार राजा अपने पुत्रहीन होने का कारण जानने के लिए वन में महर्षि लोमश से मिलने गए।

जब राजा अपनी प्रजा के साथ वन पहुंचे तो उन्होंने महर्षि से अपनी समस्या के बारे में पूछा। राजा की चिंता जानने के बाद महर्षि थोडी देर बाद बोले कि राजन पिछले जन्म में आप बहुत निर्धन व्यक्ति थे आपना गुजारा करने के लिए आप गलत काम करते थे। एक दिन आप दो दिन तक भूखे से व्याकुल होकर एक सरोवर के किनारे पहुंचें तो वहां पर एक प्यासी गाय पानी पी रही थी। लेकिन आप उस गाय को हटाकर खुद पानी पीने लगे। जिसकी वजह से आपको यह पाप लगा है। उस दिन ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी थी। इसी कारण आपको पुत्र का वियोग सहना पड़ा।

यह सब बाते सुन कर सभी श्रृषियों नें कहा कि अब इस पाप से छुटकारा पाने के लिए कोई उपाय बताइए। तब श्रृषि नें कहा कि सावन के महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत आप सभी रखें और यह संकल्प लें कि इसका फल महाराज को दे दें और रात में जागरण करें। इसके बाद इसका पारण दूसरे दिन करें। ऐसा करने से आपके पूर्व जन्म के पापों से मुक्ति मिल जाएगी और आप सभी को अपना उत्तराधिकारी मिल सकता है। ऐसा करने से महाराज को पुत्र की प्राप्ति हुई।

 

 

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