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OPINION: इलेक्शन मोड में MP, सिंधिया कसौटी पर

एमपी विधानसभा के उपचुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया ही कसौटी पर कसे जाएंगे. (फाइल)

मध्य प्रदेश में आगामी दिनों में होने वाले विधानसभा उपचुनाव (MP (Assembly bypoll) ) शिवराज या नरोत्तम नहीं, बल्कि सिंधिया को ही कसौटी पर कसने वाले होंगे. ये चुनाव तय कर देंगे कि एमपी में शिवराज सरकार का भविष्य क्या है.

मध्य प्रदेश में सियासत अब कोरोना (COVID-19) के खिलाफ़ जंग से शिफ्ट होकर सूबे के इतिहास के सबसे बड़े उपचुनाव पर शिफ्ट हो रही है. 24 सीटों पर एमपी में उपचुनाव (Assembly bypoll) होने हैं जो दो विधायकों के निधन और 22 विधायकों की बगावत के बाद खाली हुई हैं. सत्तारूढ़ भाजपा (BJP) और विपक्षी कांग्रेस (Congress) की तरफ से नियमित प्रेस ब्रीफिंग की शुरुआत हो चुकी है. भाजपा की तरफ से कमान संभाले हुए हैं गृह और स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा, जिनके निशाने पर हैं कमलनाथ और उनकी सरकार के कामकाज. दूसरी तरफ, विपक्षी कांग्रेस जानती है कि यदि उपचुनाव में कुछ बड़ा करना है एकमात्र ज्योतिरादित्य सिंधिया को निशाने पर रखना होगा. कारण यही कि 24 में से 16 सीटें ग्वालियर-चंबल संभाग से आती हैं और बाकी की सीटें भी सिंधिया को कमजोर करके प्रभावित की जा सकती हैं. वैसे भी ये चुनाव शिवराज या नरोत्तम नहीं, बल्कि सिंधिया को ही कसौटी पर कसने वाले होंगे. ये चुनाव तय कर देंगे कि एमपी में शिवराज सरकार का भविष्य क्या है. कांग्रेस ने कोरोना के कारण अनायास मिले मजदूरों के मुद्दे और किसान कर्ज माफी को ही अपने चुनाव का आधार बनाया है.

बीते कुछ दिनों से दोनों ही दलों में आरोप-प्रत्यारोप तेजी से बढ़े हैं. कई बार सरकार भी इसमें शामिल हो जाती है. मसलन गृह और स्वास्थ्य मंत्री का वो बयान कि मंत्रियों का समूह पिछली सरकारों के घोटालों की जांच करेगा. साथ ही ये भी कि किसान कर्ज माफी के नाम पर कमलनाथ के दस्तख़त वाले सिर्फ खाली प्रमाणपत्र भेजे गए. राशि किसे मिली, इसका कोई जिक्र नहीं मिल पा रहा है सरकार को. इस आरोप के बाद कांग्रेस फौरन सक्रिय हुई और कमलनाथ खुद आगे आए और बोले कि पूरी लिस्ट पते और फोन नंबर के साथ सार्वजनिक करेगी कांग्रेस, जो चाहे किसानों से पता कर ले. कांग्रेस अपनी सरकार के दौरान किए गए दो लाख रुपए तक के कर्ज माफी मुद्दे को गरमाए रखना चाहती है. कांग्रेस लगातार पूछ रही है कि जब हमने शिवराज सरकार की संबल योजना को नया सवेरा नाम बदल कर कंटीन्यू किया था, तो हमारी किसानों को लेकर शुरू की गई कर्ज माफी योजना भाजपा क्यों बंद कर रही है.

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एमपी में कांग्रेस और बीजेपी उपचुनाव की तैयारियों में जुट गए हैं.

एक तरफ तो मुद्दे हैं, दूसरी तरफ उन इलाकों में जहां चुनाव होने हैं, वहां जमावट शुरू हो गई है. भाजपा इन इलाकों से ज्यादातर मंत्री लाकर संतुलन बैठाना चाहती है, जबकि कांग्रेस ने आज 11 जिलाध्यक्ष बदल कर कसावट तेज की. मंत्रिमंडल गठन में भाजपा के पास थोड़ा मुश्किल है. भाजपा को अपने लोगों को भी साधना है और परिवार में नए समाहित हुए सिंधिया समर्थकों को भी जगह देनी है. ऐसे में संभव है कि जिसे जगह नहीं मिलेगी, उसका असंतोष सतह पर आ सकता है. लॉकडाउन ने सिंधिया को दिल्ली में रोक रखा है, लिहाजा वे सिर्फ फोन पर ही गुणा-भाग कर पा रहे हैं. दिलचस्प ये है कि ग्वालियर-चंबल इलाका भाजपा का पावर हाउस है. नरेंद्र सिंह तोमर, प्रभात झा, नरोत्तम मिश्रा, यशोधरा राजे सिंधिया, जयभान सिंह पवैया जैसे बड़े नेता यहीं से आते हैं. कांग्रेस के पास यहां एकमात्र नेता थे ज्योतिरादित्य सिंधिया, क्यूंकि उन्होंने कभी भी यहां सेकेंड लाइन ऑफ लीडरशिप पनपने ही नहीं दी. अब सिंधिया भाजपा में आ गए तो समीकरण दोनों के लिए ही मुश्किल वाले हो गए.भाजपा के सभी नेताओं की राजनीति यहां तब के कांग्रेस के एकमात्र नेता ज्योतिरादित्य के विरोध पर टिकी थी. अब भाजपा के नेताओं को सिंधिया और उनके समर्थकों को पचा पाना बड़ा मुश्किल लग रहा है. कांग्रेस का संकट दूसरी तरह का है. उसके पास गोविंद सिंह के अलावा कोई बड़ा नेता यहां है ही नहीं. ऐसे में कांग्रेस चाहेगी कि भाजपा की आंतरिक गुटबाजी का फायदा उसे मिले. कांग्रेस, भाजपा में गए पुराने सहयोगियों को लाना चाहती है, लेकिन उसके अंदर भी आम राय नहीं बन रही. कल अर्जुन सिंह के बेटे और विन्ध्य में कांग्रेस का चेहरा कहलाने वाले अजय सिंह ने चौधरी राकेश सिंह का तगड़ा विरोध किया और इस्तीफे तक की धमकी दे डाली. मालवा में इसी तरह प्रेमचंद गुड्डू की वापसी को लेकर भी कांग्रेस के अंदर संशय के हालात हैं. प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ और दिग्विजय सिंह चाहते हैं कि सांवेर में सिंधिया समर्थक तुलसी सिलावट को रोकने में गुड्डू सहायक होंगे, लेकिन कांग्रेस के बाकी नेताओं की रुचि इसमें नहीं है.

कुल मिलाकर ये उपचुनाव ज्यादा बड़ी चुनौती सिंधिया के लिए ही होंगे, क्यूंकि उन्होंने भाजपा सरकार तो बनवा दी, लेकिन उसकी स्थिरता तभी तय होगी जब उनके अधिकतम विधायक जीत कर आएं. कांग्रेस फिलहाल, क्रिकेट की उस रणनीति पर फोकस कर रही है, जिसमें क्लोज फील्डिंग लगाकर और विकेट-टू-विकेट बॉलिंग करवाकर बल्लेबाज की गलती का फायदा उठाया जाता है. अभी हालांकि चुनाव घोषित नहीं हुए हैं, लेकिन सियासी पारा सूबे में लगातार गर्म हो रहा है.

डिस्क्लेमरः ये लेखक के निजी विचार हैं.

 

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First published: May 20, 2020, 11:16 PM IST



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