आरक्षण के कारण महापौर अध्यक्ष पद के चुनावी प्रक्रिया में फस सकता है पेंच : सिद्दीकी
दुर्ग – निगम आरक्षण और परिसीमन की लड़ाई लड़ने वाले कांग्रेसी नेता अली हुसैन सिद्दीकी ने बताया कि नगरीय निकाय चुनाव में दलीय प्रणाली से पार्षदों के चुनाव आरक्षण नियम के तहत सम्पन्न हो गए हैं, लेकिन अब पार्षद चुनाव परिणाम के बाद महापौर और अध्यक्षों का चुनाव पार्षदों के द्वारा किया जाना है इन्हें भी आरक्षण नियम के तहत आरक्षित वर्ग के लिए किया जाना है ,लेकिन अगर किसी नगरीय निकाय में बहुमत दल के पास आरक्षित वर्ग का पार्षद जीता ना हो तो क्या विपक्षी दल या निर्दलीय पार्षद को अपना महापौर या अध्यक्ष चुनेंगे ?
और अगर बहुमत दल के पास एक ही आरक्षित वर्ग का पार्षद चुनाव जीता हो तो फिर अन्य पार्षदों को महापौर या अध्यक्ष चुनने का अधिकार ही नही रह जायेगा वह पार्षद स्वतः ही एक मात्र विकल्प होगा और पार्टी तथा पार्षदों का महत्व ही नही रह जायेगा ! निगम के जानकार अली हुसैन सिद्दीकी ने बताया कि जिस प्रकार देश मे प्रधानमंत्री का चुनाव, प्रदेश में मुख्यमंत्री का चुनाव बहुमत दल के सांसदों व विधायको के द्वारा बिना कोई आरक्षण के किया जाता है, और यहां तक कि नगरीय निकायों में भी सभापति और जोन अध्यक्षों का चुनाव पार्षदों के द्वारा बिना आरक्षण के किया जाता है ! लेकिन इस नगरीय निकाय चुनाव के नये अध्यादेश जारी होने से पहले ही महापौर व अध्यक्षो कि आरक्षण प्रक्रिया की जा चुकी थी जिस कारण यह चुनाव आरक्षण के तहत किया जा रहा है जिस कारण पेंच फसता दिख रहा है, जहाँ पर नगरीय निकाय का आरक्षण अनारक्षित (मुक्त) है वहां पर यह स्थिति नही बनेगी लेकिन जहां पर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग या फिर महिलाओ के लिए आरक्षित सीटों पर दुविधा की स्थिति बन सकती है और पेंच फस सकता है !
पंचायती राज व्यवस्ता में दलीय प्रणाली नही होती है, इस कारण वहां आरक्षण प्रक्रिया के कारण ऐसी स्थिति नही बनती थी !