रक्तदान से ज्यादा माता-पिता को वक्त दान की आवश्यकता है-लाटा महाराज
रक्तदान से ज्यादा माता-पिता को वक्त दान की आवश्यकता है-लाटा महाराज
रायपुर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के पुरानी बस्ती स्थित श्री राजराजेश्वरी महामाया माता मंदिर में राम जानकी विवाह के उपलक्ष्य में आयोजित श्री राम कथा के छठवें दिन प्रवचनकर्ता वाणी भूषण पं शंभू शरण लाटा ने वर्तमान में विसंगतियों की विस्तार से चर्चा करते हुए कहा की भाईयों बहनों रक्तदान करने से ज्यादा माता-पिता को वक्त देने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा जो करना है आज ही कर लो “जरूरत पड़ें तो छुड़ा लेते हैं हाथ दुख में कोई नहीं देता साथ”. जो कैकई प्राणों की रक्षा करने वाली थी वह प्राण लेने वाली बन गई है, जैसे प्रतापी अर्जुन को भी कोल भील डरा रहे थे. आज जब प्रभु राम का राज्याभिषेक है तब सूर्योदय हो गया, लेकिन राजा दशरथ उठे नहीं है. कैकई ने बताया राजा को रात भर नींद नहीं आई वे केवल राम राम बोल रहे थे. रानी ने राम को बताया की प्रभु चिंतित हैं. प्रभु राम मंत्री सुमंत को साथ लेकर महल में गये, उन्होंने समाधान निकाला किंतु मुख्य बात को गुप्त रखा. मंत्री ऐसा होना चाहिए जो गुप्त बातों को गुप्त रखें. प्रभु राम ने भी मंत्री को अपने पिता के समान व्यवहार किया.
लाटा महाराज ने कहा बुजुर्गों का बहुत अपमान हो रहा है. अब राम राज्य लाना पड़ेगा. राम ने माता से पूछा की पिताश्री को काहे की चिंता है, उन्होंने बताया की पिता को केवल आपकी बड़ी चिंता है. प्रभु राम ने कैकई को तीन बार जननी से संबोधित किया. जननी का अर्थ जन्म देने वाली. माता-पिता को सुख संतोष देने वाला पुत्र कलयुग में दुर्लभ है. गुरु संतो ब्राह्मणों के विपरीत विचारधारा रखने वालों को महाराज श्री ने सावधान किया कि भजन करने वाले हराम का नहीं खाते वे राम का खाते हैं. संत मिलने से सुख मिले या ना मिले हित जरूर होगा. लेकिन आजकल बाय-बाय, हाय-हाय चल रहा है. अब राम-राम कहने के दिन आ गए हैं. बिना अंदर की सेवा का कोई अर्थ नहीं है. किसी को कुछ देते हैं तो उसमें भाव क्या है यह महत्वपूर्ण है.
प्रभु राम ने सीता से कहा आप वन मत जाइए आप सास ससुर की सेवा करें। सीता दुखी होकर बोली जैसे शरीर में प्राण, नदी में पानी, व पति से पत्नी पृथक हो जाए तो जीवन समाप्त हो जाता है, यदि मैं आपसे पृथक हो गई तो मेरे पत्नी का क्या अर्थ है इसलिए मैं भी बन जाऊंगी, महाराज शरीर अयोध्या में रहेगा और मेरा प्राण आपके साथ रहेगा तो मैं सास ससुर की सेवा कैसे करूंगी.
महाराज श्री ने बताया कि सेवा के बराबर कोई धर्म नहीं है. नौकर कभी सेवक नहीं बन सकता और सेवक कभी नौकर नहीं हो सकता इसिलिए राग नहीं अनुराग होना चाहिए, रोष नहीं सेवा भाव होना चाहिए. पुत्र वह है जो पितरों को तार दे, पितरों को तारने धर्म करना होगा. गाय भैंस बकरी के बच्चे को कभी बेटा नहीं कहा जाता, केवल मानव जीवन में संतान को बेटा पुत्र कहा जाता है. महाराज श्री ने कल गीता जयंती का स्मरण करते हुए बताया की सभी ग्रंथों की जयंती नहीं होती, किंतु केवल गीता की जयंती होती है. प्रभु राम वनवास जाने के लिये तैयार हुये तो सभी अयोध्यावासी नर-नारी उनके साथ जाने के लिए आतुर हो गये. प्रभु राम ने रात्रि विश्राम किया और मंत्री को निर्देश दिया कि प्रातः होते ही रथ तैयार रखें आगे जाएंगे, प्रभु भोर के समय रवाना हो गये. महराज श्री ने कहा कि “यदि हम सोते नहीं तो राम से दूर होते नहीं”, इसलिए अपने जीवन में जागृत अवस्था में रहे.
जब श्री राम गंगा के समीप पहुंचे तो रथ से उतरकर दंडवत प्रणाम किया. महाराज श्री ने कहा दंडवत का अर्थ दण्ड यानी लाठी और लाठी के गिरे जैसे प्रणाम करें. उन्होंने सचेत किया महिलाओं को दो काम नहीं करना चाहिए, प्रथम महिलाओं को दंडवत प्रणाम नहीं करना चाहिए तथा द्वितीय कंधे से ऊपर हाथ उठाकर हर-हर महादेव नहीं बोलना चाहिए. महाराज श्री ने दुखी मन से कहा कि धर्म को धंधा बना दिया गया है, चलो धंधा तो धंधा है किंतु कलयुग में गंदा बना दिया गया है.
रविवार 8 दिसंबर को श्रवण कुमार की कथा व भरत चरित्र का वर्णन होगा. मंदिर व्यवस्थापक पं विजय कुमार झा एवं श्रीराम कथा के प्रभारी विजयशंकर अग्रवाल सहित आयोजन मिडिया सहयोगी डा.भावेश शुक्ला ” पराशर ” ने अधिक से अधिक संख्या में श्रद्धालुओं को पधारने की अपील की है.