Santoshi Mata Vrat: शुक्रवार को इस विधि से करें माता संतोषी की पूजा, दूर होगी दरिद्रता, जानें क्या है व्रत से जुड़े नियम
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Santoshi Mata Vrat: हिंदू धर्म में सप्ताह का हर दिन किसी न किसी देवी या देवता की पूजा अर्चना की जाती है। वैसे ही शुक्रवार को मां संतोषी की पूजा का दिन माना जाता है, जो भी व्यक्ति शुक्रवार का व्रत करता है उसे जरूर मां संतोषी की व्रत कथा पढ़नी और सुननी चाहिए। ऐसा करने से मां संतोषी प्रसन्न होती है और अपने भक्तों की सभी कष्टों से रक्षा करती हैं।
शास्त्रों के अनुसार संतोषी माता को खट्टी चीजें पसंद नहीं हैं, इसलिए इस व्रत में खट्टी चीजें खानी वर्जित हैं। इसी कारण से शुक्रवार के दिन नींबू, संतरा, मौसंबी, बेर, अंगूर, आलूबुखारा, साइट्रिक एसिड, टाटरी या नींबू का फूल तथा अनेक खट्टे फलों में सिट्रिक अम्ल और इसके लवण होने के कारण ही इनका सेवन नहीं करना चाहिए।
न करें खट्टी चीजों का उपयोग
मान्यता है कि, मनचाहा वरदान पाने के लिए लड़कियां और महिलाएं व्रत रखती हैं और हफ्ते में एक दिन फ्राइडे होता है जहां महिलाएं शुक्रवार को ही खट्टा नहीं खाती हैं। शुक्रवार का दिन मां संतोषी को समर्पित होता है। इस दिन महिलाओं को खट्टा नहीं खाना चाहिए। महिलाएं इस दिन टमाटर भी नहीं खाती हैं। वो घर की सब्जियों में ऐसा कुछ नहीं मिलाती हैं उसमें खट्टापन हो। इस व्रत में तामसिक चीजों जैसे, प्याज, लहसुन, शराब, मांस आदि को भी हाथ नहीं लगाना चाहिए।
व्रत का महत्व
संतोषी मां की पूजा करने से जीवन सुख-समृद्धि से भर जाता है। पैसे की कोई कमी नहीं रहती साथ ही विवाह का योग बनता है। मान्यता के मुताबिक अगर कुंवारी लड़कियां 16 शुक्रवार तक मां का व्रत रखती हैं तो जल्द ही उनकी शादी-ब्याह का योग बनने लगता है। वहीं शादीशुदा महिलाओं को इस व्रत को रखने पर सौभाग्य मिलता है।
पूजा विधि
Santoshi Mata Vrat: सूर्योदय से पहले उठकर घर के सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान कर लें। इसके बाद किसी पवित्र जगह या फिर मंदिर पर माता संतोषी की प्रतिमा स्थापित करें। इसके साथ ही मां के पास एक कलश जल भर कर रखें। कलश के ऊपर एक कटोरा भर कर गुड़ व चना रखें। आप चाहे तो कलश के ऊपर कलावा लपेटकर नारियल रख सकते हैं। अब मां के समक्ष घी का दीपक जलाएं। माता को अक्षत, फूल, सुगन्धित गंध, नारियल, लाल वस्त्र या चुनरी अर्पित करें। इसके साथ ही भोग के रूप में गुड़ व चने खिलाएं। इसके बाद थोड़ा सा जल अर्पण करें। इसके साथ ही कथा का आरंभ करें। कथा सुनने और सुनाने वाले हाथ में गुड़ और चना लें। कथा समाप्ति के बाद मां के जयकारे लगाते हुए आरती करें।