छत्तीसगढ़

हलषष्ठी व्रत 24 अगस्त शनिवार, जानें पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और व्रत के लाभ

हलषष्ठी व्रत 24 अगस्त शनिवार, जानें पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और व्रत के लाभ*”पण्डित देव दत्त दुबे”*
*”श्री शंकराचार्य शिष्य”*
सहसपुर लोहारा-कवर्धा*हलषष्ठी (कमरछट)*हलषष्ठी व्रत कथा अर्थ सहीत *पण्डित देव दत्त दुबे के दादा जी राजपुरोहित प्रकांड ज्योतिषाचार्य स्व. श्रीयुत पण्डित नन्दकुमार दुबे जी* ने लिखी थी जिसे *खेमराज कृष्णदास व्यंकटेश स्टीम प्रेस मुम्बई* ने सम्वत् 1991 शके 1856 में पुस्तकाकार रूप मेंप्रकाशित किया था एवँ मुद्राणनालय के अध्यक्ष ने राजपुरोहित जी को धन्यवाद ज्ञापित करते हुये आभार प्रकट किया था। *हलषष्ठी व्रत कथा की दुर्लभ कृति* आज भी पण्डित देव दत्त दुबे जी के पास सुरक्षित है।भाद्रपद मास की षष्ठी तिथि को हलषष्ठी का व्रत किया जाता है, इस वर्ष यह पर्व 24 अगस्त शनिवार को किया जाएगा। अन्य मतानुसार कुछ स्थानों पर 25 अगस्त रविवार को भी मनाया जायेगा। पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान कृष्ण के बड़े भाई श्री बलराम जी का जन्म हुआ था। भगवान बलराम का प्रधान शस्त्र हल तथा मूसल है इसी वजह से बलराम जी को हलधर कहा जाता है। उन्हीं के नाम पर इस त्योहार का नाम हलषष्ठी पड़ा। भारत के कुछ राज्यों में इस पर्व को हरछ्ठ, कमरछ्ठ, ललईछठ, के नाम से भी जाना जाता है। बलरामजी को हल बहुत प्रिय है इसलिए इस दिन हल की भी पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, महिलाएं यह व्रत संतान प्राप्ति और संतान की लंबी उम्र के लिए करती हैं। आइए हलषष्ठी का व्रत कब रहें जानते हैं “श्री शंकराचार्य शिष्य पण्डित देव दत्त दुबे जी से” मदनरत्न का यह वचन है कि
*उदयस्था तिथिर्याहि न भवेद्दिन मध्यभाक्।*
*सा खण्डा न व्रतानां स्यादारम्भश्च समापनम्।।*
अन्य मतानुसार कुछ जगहों में यह पर्व रविवार 25 अगस्त को मनाया जायेगा। यदि उदयकाल की तिथि मध्याह्न में व्याप्त न हो तो वह तिथि खण्डित जानें,अस्तु पँचमी खंडित है- षष्ठी नहीं) रही बात सप्तमी युक्ता की तो षष्ठी रविवार को सूर्योदय के पूर्व ही समाप्त हो जाएगी, तो रविवार को सप्तमी सूर्योदय व्यापिनी होने से सम्पूर्ण तिथि सप्तमी ही है,अत: 24 अगस्त को हलषष्ठी व्रत शास्त्र सम्मत मानी जायेगी।”एक विचार यहाँ यह है कि-“*षष्ठी च सप्तमी चैव वारश्चेदंशुमालिन:।*
*योगोयं पद्मकोनाम सूर्यकोटि ग्रहै: सम।।*
अर्थात- षष्ठी युक्त सप्तमी (सूर्योदय में षष्ठी बाद सप्तमी) हो और रविवार का योग हो तो ऐसे में पद्मक नाम का महायोग बनता है, जो करोड़ों ग्रहणकालिक फल को देने वाला है, अस्तु षष्ठी-युक्ता सप्तमी आवश्यक है, किंतु सूर्योदय काल में षष्ठी न होने से यह योग वर्तमान तिथि में मान्य नहीं होगा, चूंकि रविवार की सुबह 4:30 बजे षष्ठी सूर्योदय पूर्व समाप्त हो रही है,
अत: शनिवार 24 अगस्त को हलषष्ठी मानें कोई दोष नहीं है। *प्रार्थना मंत्र*
*गंगाद्वारे कुशावर्ते विल्वके नीलेपर्वते।*
*स्नात्वा कनखले देवि हरं लब्धवती पतिम्‌॥*
*ललिते सुभगे देवि-सुखसौभाग्य दायिनि।*
*अनन्तं देहि सौभाग्यं मह्यं, आरोग्यं मम्ं संतति तुभ्यं नमो नमः॥*
अर्थात “हे देवी! आपने गंगाद्वार, कुशावर्त, विल्वक, नील पर्वत और कनखल तीर्थ में स्नान करके भगवान शंकर को पति के रूप में प्राप्त किया है। सुख और सौभाग्य देने वाली ललिता देवी आपको बारम्बार नमस्कार है, आप मुझे अचल सुहाग तथा मेरे संतानों को दिर्घयुत्व दीजिए।*”कौन है छठी मैय्या किसकी बेटी हैं*छठी मैया को भगवान सूर्य की बहन और परमपिता ब्रह्मा की मानस पुत्री माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, छठी मैया को संतान प्राप्ति की देवी कहा जाता है। यही वजह है कि बच्चों के जन्म के छठे दिन इनकी पूजा की जाती है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, सृष्टि की रचना के समय ब्रह्मा जी ने अपने शरीर को दो हिस्सों में बांट दिया था, उनके दाएं हिस्से से पुरुष और बाएं हिस्से से प्रकृति का जन्म हुआ। इसके बाद प्रकृति ने अपने आप को छह हिस्सों में बांट दिया। प्रकृति देवी के छठवें हिस्से को षष्ठी देवी कहा गया, षष्ठी देवी को ही छठी देवी कहा जाता है।बोलचाल में यह छठी मैया हो गया। छठ व्रत कथा के मुताबिक, छठ देवी ईश्वर की पुत्री देवसेना हैं। देवसेना अपने परिचय में कहती हैं कि वह प्रकृति की मूल प्रवृत्ति के छठवें अंश से उत्पन्न हुई हैं मेरी पूजन करने से व्रती की संताने आरोग्य एवँ दीर्घायु होंगीं। यही कारण है कि उन्हें षष्ठी कहा जाता है, छठी मैया को कौशीकि भी कहा जाता है, इनकी पूजा हलषष्ठी के दिन की जाती है।*हलषष्ठी तिथि के व्रत की पूजा विधि और लाभ*हलषष्ठी व्रत का महत्व
हलषष्ठी तिथि का व्रत 24 अगस्त शनिवार को किया जाएगा। हलषष्ठी के दिन 11 बजे से दोपहर 03 बजे तक पूजन श्रेयस्कर माना जाता है, वैसे सूर्यास्त तक भी पूजन कर सकते हैं। षष्ठी तिथि को बलराम जी का और अष्टमी तिथि को भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है। बलराम जी को शेषनाग का अवतार माना जाता है। इस तिथि का व्रत करने से संतान के जीवन में चल रहे सभी कष्ट दूर होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इस तिथि का व्रत करने से संतान दीर्घायु होती है और बलराम जी का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। हलषष्ठी के दिन महिलाओं को महुआ की दातुन और महुआ का फूल, भैंस की दुध-दही, पसहर चांवल का उपयोग करना चाहिये।
“इस व्रत के दिन गाय के दूध से बने खाद्य पदार्थों और हल चले खेत से उत्पन्न कोई चीज नहीं खाई जाती”।
सिर्फ पसहर चांवल ही खाई जाती हैं। महिलाएं अपने घर के आंगन में झरबेरी, पलाश और कांसी की टहनी लगाकर पूजन करती हैं और सात अनाजों को मिलाकर बनाया हुआ सतनजा और दही-तिन्नी के चावल चढ़ाकर षष्ठी की कथा सुनती हैं।*हलषष्ठी व्रत विधि*सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान व ध्यान से निवृत होकर भैंस का गोबर लाएं और उसे जमीन पर लीपकर उसके उपर छोटा सा तालाब बना लें। इसमें झरबेरी, गूलर, पलाश की एक-एक शाखा बांधकर बनाई हरछठ को गाड़ दें और तालाब में जल भर दें। इसके बाद तालाब में वरुण देव की पूजा अर्चना करें। साथ ही इस दिन भगवान गणेश, माता पार्वती,शिव जी स्वामी कार्तिकेय, नंदी, और शेर के साथ छठ माता की भी पूजा की जाती है। इस प्रकार विधिपूर्वक ‘हलषष्ठी’ व्रत का पूजन करने से जो संतानहीन हैं, उनको दीर्घायु और श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति होती है। इस व्रत एवं पूजन से संतान की आयु, आरोग्य एवं ऐश्वर्य में वृद्धि होती है। पूजा में सतनाजा यानी सात तरह के भुनें अनाज (चना, जौ, गेहूं, धान, अरहर, मक्का और मूंग) चढ़ाने के बाद हरी कजरिया चढ़ाएं। पूजा स्थल पर बच्चों के खिलौना रखें और जल से भरा कलश एवँ कुछ आभूषण भी रखें। हरछठ के पास ही श्रृंगार का सामान, हल्दी एवँ छुही मिट्टी से रंगा कपड़ा भी रखें और पूजन के बाद इन्ही कपड़ों से अपने संतान की दीर्घायु के लिये पुत्र के दाहिने कंधे पर एवँ कन्या के बाएँ कंधे पर सात बार पोता मारने का विधान है।
पूजन में भैंस का दूध और दही का ही उपयोग करें। इसके बाद सभी की पूजा अर्चना करें और कथा सुनें।*व्रत पूजन,कथा*भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को ‘हलषष्ठी’ पर्व मनाया जाता है। धर्मशास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान शेषनाग द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम के रूप में धरती पर अवतरित हुए थे। बलराम जी का प्रधान शस्त्र ‘हल’ व ‘मूसल’ है। इसी कारण इन्हें ‘हलधर’ भी कहा गया है। उन्हीं के नाम पर इस पर्व का नाम ‘हलषष्ठी’ पड़ा। इसे ‘हरछठ’ भी कहा जाता है। हल को कृषि प्रधान भारत का प्राण तत्व माना गया है और कृषि से ही मानव जाति का कल्याण है। इसलिए इस दिन बिना हल चले धरती का अन्न व शाक, भाजी खाने का विशेष महत्व है। हलषष्ठी व्रत पूजन के अंत में हलषष्ठी व्रत की छ: कथाओं को सुनकर आरती आदि से पूजन की प्रक्रियाओं को पूरा किया जाता है।*संतान दीर्घायु व्रत कथा*विद्वानों के अनुसार सबसे पहले द्वापर युग में माता देवकी द्वारा ‘कमरछठ’ व्रत किया गया था, क्योंकि खुद को बचाने के लिए मथुरा का राजा कंस उनके सभी संतानों का वध करता जा रहा था। उसे देखते हुए देवर्षि नारद ने ‘हलषष्ठी’ का व्रत करने की सलाह माता देवकी को दी थी। उनके द्वारा किए गए व्रत के प्रभाव से ही बलदाऊ और भगवान कृष्ण कंस पर विजय प्राप्त करने में सफल हुए थे। उसके बाद से यह व्रत हर माता अपनी संतान की खुशहाली और सुख-शांति की कामना के लिए करती है। इस व्रत को करने से संतान को सुखी व सुदीर्घ जीवन प्राप्त होता है। ‘कमरछठ’ पर रखे जाने वाले व्रत में माताएँ विशेष तौर पर भैंस की दुध, दही, मख्खन, घी एवँ पसहर चावल का उपयोग करती हैं।*हलषष्ठी तिथि पर क्या करें*संतान युक्त माताएँ हलषष्ठी का संतान व आरोग्य दायी व्रत अवश्य करें,
हलषष्ठी तिथि पर महुआ की दातुन करें,
भोजन बनाते समय चम्मच की जगह महुआ के पेड़ की लकड़ी का उपयोग करें
महुआ पेड़ के ही पत्ते का दोना और पत्तल का उपयोग करें
इस तिथि के दिन बिना हल जूते ही उगने वाले भोजन का प्रयोग करें। पसहर चावल का भात, भैंस का दुध और दही, घी सेंधा समुद्री नमक और 6 प्रकार की सब्जी का प्रयोग करें।*हलषष्ठी तिथि पर क्या ना करें*हलषष्ठी तिथि पर हल चले भूमि पर ना चलें।
हल चले जमीन का अन्न, फल, साग-सब्जी व अन्य भोज्य पदार्थों का सेवन ना करें।
तामसिक भोजन जैसे प्याज, लहसुन का प्रयोग ना करें।
गाय के दूध, दही और घी का प्रयोग ना करें।
बच्चों व बड़ों का अनादर ना करें।

Related Articles

Back to top button