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#SarkarOnIBC24: ‘जाति’ देखकर काम करेंगे सांसद? आखिर क्यों नाराज है JDU सांसद देवेश चंद्र ठाकुर? देखिए पूरी रिपोर्ट

नई दिल्ली: हाल ही में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हमारे देश में हुए सफल चुनाव, नतीजों से मिले जनादेश पर हर एंगल से विश्लेषण जारी है। जीत का आंकलन, हार की समीक्षा की जार ही हैं। इसी बीच, एक चुने हुए माननीय सांसद जी के विचारों पर देशव्यापी बहस छिड़ गई है। अगर कोई चुना हुआ जनप्रतिनिधि ये कह दे कि जिस जाति से वोट नहीं उनका काम नहीं करूंगा। क्योंकि जनादेश मिल जाने के बाद तो सारे फर्क मिट जाते हैं, लेकिन लोकतंत्र की इस रीत को अगर कोई खुलेआम बदलने का एलान करे, और तो और इस एलान का अन्य जनप्रतिनिधि समर्थन करें, इसे दिलेरी का नाम दों तो सवाल उठाना लाजिमी है?

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काम नहीं तो वोट नहीं ये तो कई बार सुना है। लेकिन वोट नहीं तो काम नहीं ये नया ऐलान है नेताजी का अपनी जीत के बाद, आभार सभा में खुले मंच से बिहार के सीतामढ़ी से JDU सांसद देवेश चंद्र ठाकुर ने दो टूक कह दिया कि वो अब अपने क्षेत्र में यादव और मुसलमान वोटर्स का काम नहीं करेंगे। क्योंकि बीते 22 सालों से सियासत में उन्होंने सबसे ज्यादा काम यादव-मुसलमानों के लिए किया लेकिन लोगों ने उन्हें ना चुनकर मोदी को बीजेपी को वोट दिया। सांसद महोदय ने यहां तक कहा कि आगे से काम के लिए उनके पास यादव-मुसलमान आएं, तो चाय पिलाऊंगा, मिठाई खिलाऊंगा लेकिन काम नहीं करूंगा। वैसे सांसद महोदय की नाराजगी यादव-मुस्लिमों के अलावा कुश्वाहा समाज से भी दिखी।

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नवनिर्वाचित सांसद के बयान से सियासी गलियारे में तीखी बहस छिड़ गई। RJD नेताओं ने नीतीश बाबू की पार्टी के सांसद के बयान पर संविधान की मूल भावना के विपरीत बताते हुए घोर आपत्ति जताई, तो केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने देवेश चंद्र ठाकुर की पीठ थपथपाते हुए कहा कि, दिल की बात है, सच है, वो खुद 2014 से मुस्लिमों का ये रवैया झेल रहे हैं।

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बयान भले ही बिहार में दिया गया हो लेकिन इस पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ के बीच देशव्यापी बहस छिड़ गई है। पक्ष-विपक्ष के नेता अपने-अपने हिसाब से इसे देख रहे हैं। लाख नकारें लेकिन ये कड़वा सच है कि संविधान की मूल भावना के उलट कई क्षेत्रों में पूरा चुनावी गणित, जाति,क्षेत्र,धर्म के हिसाब से चलता है।

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पार्टियां भी वर्ग-धर्म-जाति के हिसाब से टिकट देती हैं। उसी हिसाब से प्रचार के मुद्दे, फेस और रणनीति भी बनाती हैं, लेकिन एक जनप्रतिनिधी चुने जाने के बाद, जनसेवा की शपथ लेने के बाद क्या कोई माननीय ‘वोट नहीं तो काम नहीं करूंगा’ जैसी बात पर कर सकता है? क्या उनके बयान को दिलेरी, साफगोई कहा जाएगा ? क्या ये संविधान की मूल भावना के खिलाफ नहीं है? क्या नेता अब देश की जनता में जाति-धर्म-वर्ग के आधार पर विभाजन पर खुलेआम मुहर लगा रहे हैं?

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