आज मैं जो कुछ भी हूं, जनता के स्नेह के कारण हूं-गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू
जनता को ऐसा कुछ दिया जाए, जो यादगार बने
भिलाई। प्रदेश के गृह, संस्कृति मंत्री ताम्रध्वज साहू सरल, सौम्य और शांतचित्त राजनेता हैं, लेकिन साथ ही यह भी इतनी ही बड़ी सच्चाई है कि वे विरोधियों को उसी मुखरता और सुलझे मनो-मस्तिष्क से जवाब देने में भी महारथी हैं। फिलहाल छत्तीसगढ़ की बिगड़ी कानून व्यवस्था को पटरी पर लाने में जुटे ताम्रध्वज साहू महत्वाकांक्षाएं पालने पर विश्वास नहीं रखते। सदैव कुछ बेहतर करने की सोच उन्हें अग्रणी राजनेताओं में शुमार करती है। अनुशासन उनके जीवन का अहम् पहलू है और इसकी झलक मंत्री के रूप में उनकी कार्यप्रणाली में भी मिलती है। वे जहां एक ओर अफसरों को खुद की गाड़ी का चालान करने से भी नहीं चूकने की नसीहत देते हैं तो वहीं कार्यक्रमों-आयोजनों में फूल-मालाओं से भी परहेज करते हैं। दुर्ग में भाजपा के गढ़ को ध्वस्त कर संसदीय चुनाव में जीत दर्ज करने वाले ताम्रध्वज साहू को पार्टी हाईकमान का करीबी माना जाता है। कांग्रेस पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने के कुछ ही वक्त बाद उन्हें अंतिम समय में विधानसभा चुनाव लडऩे का आदेश हुआ और बड़ी जीत के साथ उन्होंने हाईकमान के भरोसे को कायम रखा। उनका नाम मुख्यमंत्री के रूप में भी अग्रणी रहा, लेकिन यहां भी श्री साहू ने अपनी चिर-परिचित सरलता और सहजता का परिचय दिया। वर्तमान में श्री साहू गृह के साथ ही लोक निर्माण, जेल, पर्यटन, धर्मस्व और संस्कृति जैसे महत्वपूर्ण विभाग संभाल रहे हैं।
गृहमंत्री श्री साहू सामान्य जीवन जीते हैं। वे महत्वाकांक्षाएं नहीं पालते। उनका मानना है कि कर्म करते रहने से फल की प्राप्ति स्वमेव ही होती है। यह सच भी है। कहां तो वे दुर्ग लोकसभा की तैयारियां कर रहे थे और कहां पार्टी ने उन्हें विधानसभा का टिकट दे दिया। श्री साहू ने इस विकट परिस्थिति का भी डटकर सामना किया। वे कहते हैं,- मेरी प्रवृत्ति कभी काटने की नहीं रही। हमेशा जुडऩे के बारे में सोचा। मैं सोचता हूँ कि अपने परिवार (कांग्रेस) को बड़ा किया जाए। व्यक्ति को कब, कहां, किसकी जरूरत पड़ जाए, कहा नहीं जा सकता। बड़े से बड़े करोड़पति को भी गरीब की जरूरत होती है। इसलिए अपने कार्य से, व्यवहार से अपने परिवार को बड़ा करने की कोशिश करता रहा हूँ। वे कहते हैं,- लेकिन मैं भी एक आदमी हूँ। गलतियां मुझसे भी हो सकती है। लोग नाराज हो सकते हैं। कोशिश रहती है कि ऐसा कुछ न हो कि किसी को मेरी वजह से तकलीफ हो, नुकसान हो या अपमान हो। भले ही मेरा अपमान हो जाए। श्री साहू कहते हैं,- राजनीति में मैंने कभी बहुत ज्यादा महत्वाकांक्षाएं नहीं पाली। विधानसभा की टिकट एक बार मिली तो फिर मिलती चली गई। कभी टिकट के लिए किसी के पास नहीं गया। पहली बार 98 में धमधा से विधानसभा का टिकट मिला। दो बार वहां से चुनाव लड़ा, लेकिन कभी किसी को बायोडाटा नहीं दिया, किसी बड़े नेता से मुलाकात नहीं की। परिसीमन के चलते धमधा विधानसभा क्षेत्र खत्म हो गया तो बेमेतरा भेज दिया गया। श्री साहू ने कहा, मैं तो दुर्ग का रहने वाला हूँ। जब धमधा भेजा गया तब भी वहां के लिए अपरिचित था और जब बेमेतरा से टिकट दी गई तो वह भी नया क्षेत्र था। यह वहां की जनता की महानता है कि उन्होंने पहले धमधा और फिर बेमेतरा से जितवाया। यह भी जनता की ही महानता है कि उन्होंने तमाम विषम हालातों के बावजूद लोकसभा चुनाव में जितवाया। और यह भी कि जब पार्टी ने दुर्ग ग्रामीण सीट से चुनाव लडऩे का आदेश दिया तो वहां की जनता का भी भरपूर स्नेह और दुलार मिला। आज मैं जो भी हूं, क्षेत्र की जनता की वजह से ही हूँ। इसलिए कोशिश है कि जनता को ऐसा कुछ दिया जाए, जो यादगार बने। भूपेश बघेल की अगुवाई में कांग्रेस की सरकार यही कर रही है।
सांसद रहते हुए ताम्रध्वज साहू को इस बात की कोफ्त होती थी कि वे क्षेत्र की आवाज लोकसभा में तो उठा सकते हैं, किन्तु स्थानीय लोगों के लिए बहुत ज्यादा कुछ नहीं कर पा रहे। लोग उनसे विधायक और मंत्री की तरह अपेक्षा करते थे। अब हालात बदले हैं और आधा दर्जन विभागों के मुखिया होने के नाते वे जनता को यह भरोसा दिला रहे हैं कि हालात बदल गए हैं। वे कहते हैं,- कांग्रेस की सरकार जनता को सौगातें देने ही आई है। इसका सिलसिला प्रारम्भ हो चुका है। जो वायदे हमने किए थे, वे पूरे किए जा रहे हैं। किसानों की कर्जमाफी की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। सरकार का हर अंग बेहतर से बेहतर करने में जुटा हुआ है। वे भरोसा दिलाते हैं,- आने वाले दिनों में इसका भरपूर लाभ छत्तीसगढ़ और यहां की जनता को मिलेगा। चाहे वह बिजली बिल आधा करने की बात हो या फिर कर्मचारियों के नियमितीकरण की।
..जब सरोज को दिया था जवाब
मतदान पहले जब स्टार प्रचारकों के आने का दौर चल रहा था, उसी दौरान पुराना बस स्टैण्ड दुर्ग में एक सभा आयोजित की गई थी। इस सभा में पूर्व सांसद सुश्री सरोज पाण्डेय ने ताम्रध्वज साहू को लेकर कड़ी टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था कि यदि ताम्रध्वज साहू पैंट-शर्ट पहनकर निकल जाएं तो उन्हें कोई पहचानेगा नहीं। इस पर तत्काल तो श्री साहू ने कोई जवाब नहीं दिया था, किन्तु रिसाली स्थित दशहरा मैदान से ताम्रध्वज साहू ने जो जवाब सरोज पाण्डेय को दिया, उसने भाजपाइयों को कसमसाने के लिए विवश कर दिया। श्री साहू का जवाब था कि सरोज पाण्डेय यदि ब्यूटीपार्लर न जाए, दो चोटी कर ले और सलवार सूट पहनकर निकले तो उन्हें कौन पहचानेगा? संस्कृतिमंत्री के रूप में जब श्री साहू ने राजिम कुम्भ को पुन्नी मेला का नाम दिया तो इसकी भी छत्तीसगढ़ में सकारात्मक प्रतिक्रिया सामने आई। दरअसल, पुन्नी मेला छत्तीसगढ़ की संस्कृति से जुड़ा पर्व है, पूर्ववर्ती सरकार ने राजिम स्थित त्रिवेणी संगम को कुम्भ का नाम दिया था, इसी आयोजन को छत्तीसगढ़ की संस्कृति से जोडक़र ताम्रध्वज साहू ने यह साबित कर दिया कि वे छत्तीसगढ़ महतारी के सच्चे सपूत हैं।
जब स्वागत कराने से कर दिये इंकार
श्री साहू जब चुनाव जीते तो उनके स्वागत-अभिनंदन करने वालों की संख्या अचानक बढ़ गई। सामान्य जीवन जीने के आदी श्री साहू को विभिन्न कार्यक्रमों में आमंत्रित किया गया। ऐसे ही एक आयोजन में उन्होंने इस शर्त पर आना स्वीकार किया कि उनका स्वागत फूल-मालाओं से नहीं किया जाएगा। गृहमंत्री की सादगी का एक नमूना उस वक्त भी देखने को मिला जब दुर्ग में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से पहले अपना स्वागत करना नामंजूर कर दिया। स्व. चंदूलाल चंद्राकर की जयंती पर आयोजित इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल व गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू को शिरकत करनी थी। व्यस्तता के चलते मुख्यमंत्री श्री बघेल को कार्यक्रम में पहुंचने में कुछ विलम्ब हो गया, जबकि श्री साहू पहले पहुंच गए। आयोजकों ने उनका स्वागत करना चाहा, किन्तु उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया। इतना ही नहीं, वे पूरे समय मुख्यमंत्री के आने का इंतजार करते रहे। विगत 15 वर्षों से वीआईपी कल्चर देख रहे छत्तीसगढ़वासियों को गृहमंत्री साहू की यह सादगी बेहद भायी।
जितने सरल है उतने ही सख्त भी है ताम्रध्वज साहू
आमतौर पर मंत्री श्री साहू को शांत और सौम्य व्यक्ति माना जाता है, किन्तु हकीकत यह है कि वे नियम-कायदों का सख्ती से पालन करने और करवाने के लिए भी जाने जाते हैं। गृहमंत्री बनने के बाद जब उन्होंने पहली बार पुलिस आला अफसरों की बैठक ली तो उनका पहला सख्त निर्देश यही था कि नियम तोडऩे वालों पर सख्त कार्यवाही की जाए। यदि वे स्वयं नियम तोड़ते दिखें तो उनकी गाड़ी का भी चालान किया जाए। विधानसभा का सत्र प्रारम्भ हुआ तो कांग्रेस के कार्यकर्ता विधानसभा के बाहर प्रदर्शन करते नजर आए। बिना इस बात की परवाह किए कि प्रदर्शनकारी कांग्रेस के नेता व कार्यकर्ता हैं, गृहमंत्री श्री साहू ने पुलिस अफसरों की क्लास लगा दी। उन्होंने स्पष्ट कहा कि जब विधानसभा परिसर के आसपास धारा 144 लागू है तो कोई प्रदर्शन कैसे कर सकता है? श्री साहू की यह सख्ती कई लोगों को नागवार गुजरे, किन्तु हकीकत यह है कि नियम-कानून सबके लिए हैं और सबको इसका पालन करना चाहिए।
सरकारी कार्यक्रमों में अब नही लगेंगे बॉलीवुड कलाकारों के ठुमके
पूर्ववर्ती सरकार बॉलीवुड से हीरो-हीरोइनों को बुलवाकर करोड़ों रूपए सिर्फ चंद मिनटों के ठुमकों पर दिया करती थी। राज्योत्सव के दौरान होने वाले इस आयोजन से छत्तीसगढ़ या छत्तीसगढिय़ों का कहीं कोई भला नहीं होता था, सिर्फ भीड़ कबाडऩे और अपनी पीठ थपथपाने के लिए ही ऐसा किया जाता था। इस दौरान छत्तीसगढ़ के कलाकारों की घोर उपेक्षा होती थी। एक ओर जहां हीरोइन के ठुमकों पर करोड़ों रूपए वार दिए जाते थे, तो दूसरी ओर घंटों कार्यक्रम देने वाले छत्तीसगढिय़ा कलाकारों को चंद हजार रूपयों के लिए गिड़गिड़ाना पड़ता था। इस दर्द को संस्कृतिमंत्री के रूप में श्री साहू ने बखूबी समझा। इसीलिए मंत्री बनने के बाद उन्होंने अपने इस विभाग में सबसे अहम् फैसला फिल्मी ठुमकों पर रोक लगाकर दिया। श्री साहू के इस कदम से लोक कलाकारों को संबल जरूर मिलेगा।