The Big Picture With RKM : आखिरी ‘इम्तिहान’.. ‘ध्यान’ पर खींचतान! पीएम मोदी ने आखिर क्यों चुना विवेकानंद रॉक मेमोरियल? गांधी को लेकर उनका बयान कितना सही?

रायपुरः PM Modi choose Vivekananda Rock Memorial लोकसभा चुनाव के लिए अब प्रचार का दौर खत्म हो चुका है। प्रधानमंत्री मोदी अपने प्रचार अभियान को खत्म करके अब कन्याकुमारी पहुंच चुके हैं। विवेकानंद रॉक मेमोरियल में वे अगले 48 घंटे तक ध्यान में लीन रहेंगे। पीएम मोदी इस परंपरा की शुरूआत की साल 2014 से की थी। इस बार भी अंदाजा लगाया जा रहा था कि पीएम मोदी ध्यान में जरूर जाएंगे और हुआ भी ऐसा। पीएम मोदी ने इस बार स्वामी विवेकानंद को श्रद्धांजलि देने के लिए बनाए गए विवेकानंद रॉक मेमोरियल में ध्यान कर रहे हैं। अब सवाल उठ रहे हैं कि पीएम मोदी ने आखिर विवेकानंद रॉक मेमोरियल को अपने ध्यान के लिए क्यों चुना? चलिए समझते हैं:-
PM Modi choose Vivekananda Rock Memorial पीएम मोदी कोई भी काम, उनका नया कदम या उनका आचरण बिना किसी मैसेज के नहीं होता है। लोकसभा चुनाव के प्रचार अभियान को खत्म करके कन्याकुमारी जाना और वहां के विवेकानंद रॉक मेमोरियल में 48 घंटे ध्यान करने के पीछे पीएम मोदी का कोई न कोई मैसेज जरूर होगा। उनके मैसेज पर चर्चा करने से पहले मैं यह बताना चाहता हूं कि यह पीएम मोदी जी का एक पैटर्न रहा है। अगर हम 2014 में देखें तो पहली बार वे राष्ट्रीय स्तर के चुनाव लड़ रहे थे। चुनाव प्रचार को खत्म करके वे महाराष्ट्र के प्रतापगढ़ में स्थित शिवाजी महाराज मेमोरियल गए। उन्होंने वहां पर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किए थे। क्योंकि मोदी पहली बार चुनाव लड़ रहे थे और प्रतापगढ़ वही जगह है जहां पर शिवाजी महाराज ने अफजल खान को मौत के घाट उतार कर पहली बार मराठा साम्राज्य की गद्दी संभाली थी और उन्होंने अपने साम्राज्य को हिंदवी स्वराज का नाम दिया था। मोदी जी का भी उस समय पहला चुनाव था। उनका नाम प्रधानमंत्री के तौर पर चल रहा था। उस समय यह कनेक्शन था।
2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो उस समय पीएम मोदी ने केदारनाथ धाम में एक गुफा में जाकर 15 घंटे का एकांतवास किया था। इसके पीछे वजह रही कि केदारनाथ हर हिंदू से जुड़ा हुआ है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु वहां पहुंचते हैं। भगवान शिव सबसे जुड़े हुए हैं। उन्होंने वहां जाकर एकांतवास किया और अपने हिंदू वोटरों को साधा। जिस समय मोदी एकांतवास गए थे, वह आखिरी चरण मतदान से पहले था। उस दौरान विपक्ष ने बड़ा हो-हल्ला किया था और अब इस बार उन्होंने कन्याकुमारी के विवेकानंद रॉक मेमोरियल को चुना है। जिस जगह पर पीएम मोदी आज गए हैं, वहां पर खुद स्वामी विवेकानंद ने 1892 में ध्यान लगाया था। कहा जाता है कि इस ध्यान के बाद विवेकानंद को भारत माता और विकसित भारत के लिए विजन मिला था। इसके बाद विवेकानंद ने कई मंचों से विकसित भारत के संदर्भ में व्याख्या की। खास बात यह भी है कि विवेकानंद रॉक मेमोरियल के पास कन्या अम्मा का एक मंदिर है, जिन्हें माता पार्वती का रूप माना जाता है। कहा जाता है कि यहां उन्होंने एक पैर खड़े होकर भगवान शिव के लिए तपस्या की थी। अब पीएम मोदी वहां पहुंचे हैं।
विवेकानंद के विचारों को मानते हैं मोदी
पीएम मोदी के विवेकानंद रॉक मेमोरियल जाने के पीछे हिदुंत्व और विवेकानंद के विचारों का भाव हो सकता है। दरअसल, पीएम मोदी स्वामी विवेकानंद को अपना रोल मॉडल मानते हैं। अगर आप उनके कई पुराने भाषण, इंटरव्यू या अन्य बातचीत सुनेंगे तो वे लगातार विवेकानंद जी के बारे में बात करते हैं। वे कहते हैं कि विवेकानंद के विचारों से वे प्रभावित हैं और उनका लगातार अनुसरण भी करते हैं। दूसरा पीएम मोदी ने कई बार ये कहा है कि उनकी योजनाओं में विवेकानंद जी की विकसित भारत के प्रति सोच लक्षित होता है। मैं विवेकानंद जी के विचार के अनुसार भारत को विकसित बनाना चाहता हूं। मैंने मेरी सरकार की योजनाओं में विवेकानंद के विचारों को समाहित किया है। तीसरा सबसे महत्वपूर्ण बात है कि पश्चिम बंगाल जो कि इसबार बीजेपी के लिए और मोदी के लिए एक बहुत महत्त्वपूर्ण राज्य होने वाला है, वहां पर विवेकानंद को को मानने वाले काफी लोग हैं। स्वामी विवेकानंद की ओर से शुरू किए विश्व विख्यात रामकृष्ण मिशन संस्थान का मुख्यालय भी इसी राज्य में है। पिछले दिनों देखा भी कि जब उन्होंने रोड शो किया तो कैसे उन्होंने विवेकानंद जी की मूर्ति के ऊपर श्रद्धा-सुमन अर्पित किए। यह पश्चिम बंगाल के वोटरों को साधने की एक कोशिश हो सकती है। क्योंकि मोदी बंगाल की रैलियों में यह कह चुके हैं कि आप लोग मेरे लिए काफी बदलाव ला सकते हो। यही वजह है कि पीएम मोदी के विवेकानंद रॉक पर जाने से वहां के सीएम ममता बनर्जी को सबसे ज्यादा चिंता हो रही है। ममता कह रही है कि मोदी के ध्यान को टेलीविजन पर नहीं दिखाया जाना चाहिए। चौथा महत्वपूर्ण बात यह है कि स्वामी विवेकानंद हिंदू संत थे। अभी आखिरी राउंड में लगभग 57 सीट्स पर चुनाव बाकी है, जो उत्तरप्रदेश, बिहार की हिंदू बाहुल्य सीटे हैं। वहां के वोटरों को मोदी यह बताना चाहते हैं कि मैं केवल एक विकास पुरुष ही नहीं हूं। मैं धर्म में विश्वास रखता हूं। मैं सनातनी हूं। मैं हिंदू-धर्म को भी आगे ले जाने वाला व्यक्ति हूं। मैं विवेकानंद के विचारों को मानने वाला व्यक्ति हूं। उनके विचारों को आगे ले जाने वाला व्यक्ति हूं। विवेकानंद के सपनों का विकसित भारत और हिंदूत्व की बातों से वे वोटरों को प्रभावित करना चाहते हैं।
काशी और तमिलनाडु के पुराने संबंधों को दिया मंच
पांचवी बहुत महत्वपूर्ण बात है कि अंतिम चरण में बनारस में चुनाव है और पिछले लगभग 2022 से मोदी लगातार वहां पर काशी तमिल संगम को बहुत प्रमोट कर रहे हैं। इस बार उनका चुनाव प्रचार भी तमिलनाडु से भी शुरू हुआ था। इस बार उनके प्रचार का बहुत बड़ा भाग दक्षिण के लिए था। अब काशी-तमिल संगम एक पूरी संस्था बन गई है। इसके जरिए काशी और तमिलनाडु के जो पुराने संबंध थे उनको एक नया मंच प्रदान किया जा रहा है। ये भी एक संदेश है कि काशी को साधने के लिए पीएम मोदी ऐसा कर रहे हैं। पीएम मोदी ध्यान कर रहे हैं और इसके लिए विवेकानंद रॉक मेमोरियल को चुना है तो विपक्षी पार्टियों को मिर्ची लगना स्वभाविक ही है। कांग्रेस इलेक्शन कमीशन गई और ज्ञापन देके आई कि मोदी जी से कहा जाए कि वे 1 जून के बाद अपना ध्यान ज्ञान करें या उनके ध्यान को टेलीविजनों पर प्रसारित करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। ममता बनर्जी की टीएमसी, सपा सहित सभी दलों के नेता यही बोल रहे हैं कि यह गलत है। उनके इस ध्यान को टीवी पर नहीं दिखाया जाना चाहिए। इसलिए मैं कहता हूं कि मोदी का हर कदम के पीछे कोई ना कोई राजनीतिक संदेश छुपा होता है।
महात्मा गांधी को लेकर मोदी के बयान पर घमासान क्यों?
मोदी के ध्यान को लेकर एक तरफ सियासी गलियारों में संग्राम छिड़ा ही है। वहीं दूसरी ओर महात्मा गांधी को लेकर दिए गए उनके बयान पर बहस चल रही है। दरअसल पीएम मोदी ने कहा है कि महात्मा गांधी के बारे में दुनिया पहले कुछ नहीं जानती थी। रिचर्ड एटनबरो की 1982 की फिल्म गांधी बनने के बाद महात्मा गांधी को पहचान मिली। महात्मा गांधी को लेकर पीएम मोदी का बयान सेल्फ गोल है। क्योंकि गांधी जी एक विचार है। वे किसी फिल्म के मोहताज नहीं है। गांधी जी फिल्म 1982 में आई थी। उससे पहले भी महात्मा गांधी पूरे दुनिया के लिए एक विचारक थे। उनके विचारों को सब मानते थे। मोदी ने जो अपने कथन में मार्टिन लूथर किंग जूनियर और नेल्सन मंडेला जैसे महापुरुषों का नाम लिया है। ये तो खुद गांधी जी के विचारों से प्रभावित थे। इन महापुरुषों के कई कथन ऐसे हैं, जिसमें गांधी जी के विचार दिखते हैं। यह कह देना कि गांधी फिल्म आने के बाद गांधी को लोगों ने ज्यादा जाना है। यह गलत है। हां यह हो सकता है कि आप गांधी जी के लिए और कुछ कर सकते थे और फिल्म आने के बाद एक नया वर्ग जरूर तैयार हुआ हो, जो जरूर गांधी को समझा हो, लेकिन गांधी का विचार उस फिल्म के आने से पहले भी था अभी भी है और आगे भी रहेगा। क्योंकि गांधी पहले एक व्यक्ति थे अब वो एक विचार हो गए हैं। जो हमको सत्य अहिंसा यह सब दिलाता है। गांधी फिल्म के आने से पहले कई देशों में महात्मा गांधी के विचार पहुंच चुके थे। विदेशों में उनके स्टैचू लगे हैं। कई मार्गों का नाम महात्मा गांधी के ऊपर है। हमारे देश में हर शहर में महात्मा गांधी मार्ग होता है। मोदी की बयान एकदम लूज बॉल थी, जिसको विपक्ष ने एकदम पकड़ लिया और सीधा बाउंड्री से बाहर कर दिया और मोदी को विरोध का सामना करना पड़ा। मोदी का जो कथन था, वह गलत था।