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बतंगड़ः केजरीवाल को मिली मीडिया अटेंशन से किसकी बढ़ेगी टेंशन

-सौरभ तिवारी

Batangad : चुनावी घमासान के बीच अपने सर्वोच्च नेता की कमी को महसूस कर रहे आम आदमी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट से अच्छी खबर सामने आई। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल को एक जून तक के लिए अंतरिम जमानत दे दी है। यानी अब तक अरविंद केजरीवाल की ‘आत्मा’ के जरिए चुनाव प्रचार कर रही आम आदमी पार्टी अब बाकी बचे चार चरणों में उनके ‘शरीर’ के साथ प्रचार कर सकेगी।

माना जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल को प्रचार करने के लिए मिली अंतरिम जमानत आम आदमी पार्टी के लिए संजीवनी साबित हुआ है। दरअसल, अरविंद केजरीवाल ऐसे समय पर जेल से बाहर आए हैं, जब दिल्ली, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में अभी बाकी बचे चरणों में मतदान होना बाकी है। ये वे राज्य हैं जहां आम आदमी का अच्छा-खास प्रभाव है। इन तीनों राज्यों की 18 सीटों पर आम आदमी पार्टी लोकसभा चुनाव लड़ रही है। गुजरात और असम की चार सीटों पर भी आप चुनाव लड़ रही थी, जहां वोटिंग हो चुकी है। यानी अब अरविंद केजरीवाल का पूरा फोकस बाकी बची 18 सीटों पर रहेगा। जाहिर तौर पर अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत मिलने के बाद अब आम आदमी पार्टी अपनी चुनावी बिसात नये सिरे से बिछाएगी।

Batangad :  सवाल उठता है कि अरविंद केजरीवाल की जेल से रिहाई के बाद जैसा माहौल बनाया जा रहा है क्या उसी अनुरूप इसका हकीकत में भी असर पड़ेगा, या फिर ये हवा-हवाई साबित होगा। वस्तुतः मीडिया में बने माहौल से परे होकर इस पूरे घटनाक्रम की सूक्ष्म विवेचना की जाए तो लगता नहीं है कि केजरीवाल के जेल से बाहर आने से सियासी स्थिति में कोई व्यापक क्रांतिकारी बदलाव आ जाएगा। ये नहीं भूलना चाहिए कि न्यूटन का तीसरा नियम भौतिकी के अलावा सियासत में भी उसी प्रभावशीलता के साथ लागू होता है। केजरीवाल की रिहाई के बाद आम आदमी पार्टी की ओर से जिस दिखावे के साथ अपनी खुशी का प्रदर्शन किया जा रहा है उसकी उतनी ही विपरीत और तीव्रकारी प्रतिक्रिया भाजपाई खेमे में भी हुई है। केजरीवाल को मिली अंतरिम जमानत के बाद आप विरोधी खेमे की ओर से जैसी तीखी प्रतिक्रिया सामने आई है उसकी बानगी सोशल मीडिया प्लेटफार्म में आसानी से देखी जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ‘एक्स’ पर ट्रेंड कर रही प्रतिक्रयाओं से जनमानस का मिजाज समझा जा सकता है।

ये याद रखना चाहिए कि सियासत में ध्रुवीकरण केवल धार्मिक या जातीय मुद्दों पर ही नहीं होता। बल्कि कुछ ऐसे भी मुद्दे होते हैं जिन्हें लेकर मतदाता स्पष्ट रूप से दो ध्रुवों में विभक्त हो जाता है। केजरीवाल को मिली जमानत को लेकर भी कुछ ऐसा ही हुआ है। दिल्ली में भाजपा का जो मतदाता अब तक इस नीरस चुनाव में निष्क्रिय रूप से बैठा था, वो भी अचानक मुखर हो चला है। शराब नीति मामले में सवालों में घिरे अरविंद केजरीवाल को मिली अंतरिम जमानत के बाद जैसा प्रतिक्रियात्मक माहौल सोशल मीडिया में बना है अगर वो वोटों के रूप में परिवर्तित हो गया तो केजरीवाल की रिहाई आम आदमी पार्टी के लिए बैक फायर भी साबित हो सकती है। ऐसा इसलिए, क्योंकि केजरीवाल के जेल में रहने के कारण आप के पक्ष में जो थोड़ी बहुत सहानुभूति लहर चलने की अपेक्षा की जा रही थी वो अब उनकी रिहाई के बाद बेअसर हो चुकी है। कैद में होने के कारण बना मोमेंटम उनकी रिहाई के साथ ही खत्म हो गया है। हो सकता है कि जेल के ‘अंदर’ से केजरीवाल भाजपा का जितना नुकसान कर सकते थे, वो उतना ‘बाहर’ निकलने के बाद ना कर सकें।

Batangad :  जाहिर तौर पर केजरीवाल के जेल से बाहर निकलने के बाद आप के कैम्पेन को मिलने वाली धार को भांपते हुए भाजपा ने भी अपनी चुनावी बिसात को नये सिरे से बिछाएगी। भाजपा की रणनीति की झलक उनके नेताओं की प्रतिक्रिया में नजर भी आ रही है। भाजपा का पूरा जोर अब केजरीवाल को शराब घोटाले का किंगपिन साबित करने पर रहेगा। ईडी की ओर से तैयार की गई सप्लीमेंट्री चार्जशीट के जरिेए भाजपा केजरीवाल को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ेगी। भाजपा नेता कोर्ट के फैसले पर भले सीधे सवाल नहीं उठा रहे हों लेकिन वो याद दिलाना नहीं भूल रहे हैं कि ये केवल 1 जून तक की चांदनी है फिर अंधेरी रात है। यानी आने वाले दिनों में रोचक संघर्ष देखने को मिलेगा। केजरीवाल की रिहाई ने नीरस चल रहे चुनावी माहौल में दिलचस्पी का नया रंग तो भर ही दिया है।

इधर सियासत के जानकारों का एक वर्ग अरविंद केजरीवाल को मिली अंतरिम जमानत को ना केवल आप के लिए बल्कि इंडिया गठबंधन के लिए भी बूस्टर डोज बता रहा है। दलील दी जा रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तानाशाह और लोकतंत्र विरोधी साबित करने के लिए इंडिया गठबंधन को अरविंद केजरीवाल के रूप में माहौल बनाने के लिए एक प्रभावकारी वक्ता मिल गया है। केजरीवाल को जमानत मिलने के बाद सामने आई इंडिया गठबंधन के नेताओं की प्रतिक्रिया बताती है कि कोर्ट के इस फैसले से उनके हौसलों में जबरदस्त इजाफा हुआ है। लेकिन रणनीतिक रूप से देखें तो केजरीवाल की रिहाई के बाद कांग्रेस का खुशी से नाचना हैरान करने वाला वाकया है। बेगानी शादी में अब्दुला बनी कांग्रेस की खुशी वाकई समझ से परे है। दोनों दल मिलकर दिल्ली की सात सीटों में ही लड़ रहे हैं। उसमें भी आप के हिस्से में चार जबकि कांग्रेस के हिस्से में तीन सीटें ही हैं। जबकि पंजाब की सभी 13 सीटों पर आम आदमी पार्टी चुनाव लड़ रही है, जहां उसका मुख्य मुकाबला कांग्रेस से ही है। यानी अपनी अंतरिम रिहाई के बाद केजरीवाल अब पंजाब में खुलकर कांग्रेस के खिलाफ प्रचार करके कांग्रेस की रही सही कब्र भी खोदने का पूरा इंतजाम कर देंगे। अपने ‘विनाशक’ की रिहाई पर खुशी से झूमने का हौसला वाकई कांग्रेस ही दिखा सकती है।

Batangad :  जेल से निकलने के बाद से अरविंद केजरीवाल को जैसा मीडिया अटेंशन मिला है, वो भी अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस और खासकर राहुल गांधी के लिए नुकसानदायक साबित हुआ है। उनकी रिहाई के पहले तक ये चुनाव पूरी तरह से मोदी वर्सेस राहुल में कन्वर्ट हो चुका था। लेकिन केजरीवाल ने जेल से बाहर आने के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते जिन तेवरों और मुद्दों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरा है, उससे जाहिर है कि अब उनकी कोशिश आगे के चुनाव को मोदी वर्सेस केजरीवाल करने की होगी। केजरीवाल आम आदमी पार्टी को भाजपा का विकल्प बता रहे हैं, जो कांग्रेस की संभावनाओं पर कुठाराघात से कम नहीं है।

वस्तुतः रणनीतिक रूप से देखा जाए तो शराब नीति घोटाले में मुश्किल में घिरी आम आदमी पार्टी की मजबूरियों का अच्छा खासा राजनैतिक फायदा कांग्रेस पार्टी उठा सकती थी। शराब घोटाले को कांग्रेस ने ही उजागर भी किया था। लेकिन मोदी विरोधी गठबंधन बनाने की धुन में कांग्रेस ने अपने हितों की कुर्बानी दे दी। आम आदमी पार्टी का अधिकांश वोट बैंक कांग्रेस से ही हथियाया गया है। कांग्रेस के पास आम आदमी पार्टी पर आई आपदा को अवसर में बदलने का बढ़िया मौका हाथ आया था। लेकिन कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी की ओर से हथियाये गए अपने वोट बैंक को वापस अपने पाले में लाने का सियासी मौका खो दिया है। अब देखना है कि अरविंद केजरीवाल की अंतरिम रिहाई से किसे कितना फायदा होता है और किसे कितना नुकसान।

लेखक IBC24 में डिप्टी एडिटर हैं।

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