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The Big Picture With RKM: मंदिर और मुसलमान.. सियासी घमासान! चुनाव के बीच फिर क्यों उपजा आरक्षण का मुद्दा? राम मंदिर पर राजनीति के क्या हैं मायने?

रायपुरः तीसरे चरण की वोटिंग खत्म होने के साथ ही चौथे चरण की तैयारी शुरू हो गई है। इसके साथ ही आरक्षण का मुद्दा एक बार फिर नए सिरे से चर्चा में आ गया है। दरअसल, तीसरे चरण के चुनाव से एक दिन पहले एक साक्षात्कार में पीएम मोदी ने मुसलमानों से आत्ममंथन करने की अपील की। इसके बाद बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राजद प्रमुख लालू यादव ने एक बार फिर मुसलमानों को पूरा रिजर्वेशन देने की बात कह दी। लालू के बयान के बाद पीएम मोदी ने फिर मोर्चा संभाला और मुसलमान और आरक्षण को लेकर इंडिया गठबंधन पर ताबड़तोड़ हमले किए। अब मुसलमान और आरक्षण को लेकर नया विवाद छिड़ गया है। क्या चुनाव के बीच इस विवाद को फिर से जानबूझकर जन्म दिया गया है? चलिए समझते हैं…

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चुनाव है, मजबूरी है, इसलिए मुसलमान जरुरी है। मंगलवार को ये मुद्दा फिर से वापस आया। मंगलवार को जिन सीटों पर वोटिंग थी, उसमें से कई सीटें मुस्लिम बाहुल्य थी। बूथों पर सुबह से ही मतदान करने के लिए मुसलमानों की लंबी-लंबी लाइन लगी रही है। राइट विंग के कई नेता मुसलमानों को मतदान करने की अपील भी कर रहे थे, लेकिन इस पर दो बातें हुई। पहली बात तो साक्षात्कार में पीएम मोदी ने मुस्लिमों के बारे में अपनी सोच को खुलकर बताया, जोकि गलत नहीं है। उन्होंने कहा कि वे चाहते हैं कि मुसलमानों को वोट बैंक और बंधुआ मजदूर जैसी बातों से बाहर निकलना चाहिए। उनको ये नहीं सोचना चाहिए कि वे किसी को सत्ता में बिठा सकते हैं या गिरा सकते हैं। अब समय बदल चुका है। दुनिया के कट्टर मुस्लिम देशों में भी बदलाव की बयार चल रही है। वहां के लोग नई सोच रख रहे हैं। योग को पसंद कर रहे हैं। हमारे देशों के मुसलमानों को भी समय के साथ बदलना चाहिए। मुख्यधारा में जुड़ना चाहिए। अपने बच्चों के भविष्य के बारे में सोचना चाहिए। किसी का वोट बैंक बनकर नहीं रहना चाहिए।

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मंगलवार को जब प्रधानमंत्री मोदी चुनाव प्रचार में कूदे तो उन्होंने वहीं डर दिखाना शुरू कर दिया कि अगर कांग्रेस और इंडी गठबंधन की सरकार आती है तो एसटी, एससी और ओबीसी का सारा आरक्षण मुसलमानों को दे देगी। पीएम मोदी के विपक्ष को घेरने की रणनीति में चिंगारी लालू यादव का बयान बना, जिसमें उन्होंने कहा था कि मुसलमानों को पूरा रिजर्वेशन दे देना चाहिए। पीएम मोदी ने लालू के इसी बयान को पकड़ लिया और आरक्षण को लेकर डर दिखाना शुरू कर दिया। इसके पीछे हिंदू वोटों को साधने की रणनीति भी थी। मेरा ये मानना है कि इस बार का चुनाव इतना मुद्दाविहीन है कि आरक्षण जैसा मुद्दा बार-बार सामने आ रहा है। मैंने पहली भी कहा था कि आरक्षण को कोई नहीं हटा सकता है। आरक्षण को हटाने की राजनीति दलों में हिम्मत नहीं है। आरक्षण पर जो होना था वो हो गया है। आरक्षण के नियमों में बदलाव करने के लिए बहूत कुछ करना पड़ेगा। एक बात ये भी सत्य है कि अंनतकाल तक आरक्षण कोई सॉल्यूशन नहीं है। इस पर सकारात्मक चर्चा होना चाहिए।

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राम मंदिर को लेकर सियासत कितना सही?

मुस्लिम और आरक्षण के साथ-साथ देश में राम मंदिर को लेकर भी बहस छिड़ी हुई है। तमाम नेताओं के बयान इस पर सामने आ रहे हैं। मुझे लगा था कि ये मुद्दा बड़ा बनेगा, लेकिन चुनाव के चलते मुस्लिम वाला मुद्दा बड़ा बन गया। आने वाले चरणों में ये एक बड़े मुद्दें को रूप में उभरेगा। आचार्य प्रमोद कृष्णम इकलौते कांग्रेसी थे, जो राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में शामिल हुए थे। इसके बाद उन्हें कांग्रेस से निकाल दिया गया था। मेरा ये मानना है कि राम मंदिर को लेकर कांग्रेस हमेशा से गलती करती चली आ रही है। प्रमोद कृष्णम ने दावा किया है कि उनसे राहुल गांधी ने कहा था कि अगर हमारी सरकार बनती है तो हम एक सुपरपावर कमीशन बनाकर राम मंदिर के फैसले को पलट देंगे। अगर आचार्य प्रमोद कृष्णम का बयान सही है तो कांग्रेस की ये सोच सही नहीं है। इसके बाद राम गोपाल यादव का ये कह देना कि राम मंदिर वास्तु के हिसाब से नहीं बना है, बेकार बना है। ये गलत बात है। मैं हमेशा से ये कहता हूं कि राम मंदिर की पिच बीजेपी के लिए बहुत मजबूत पिच है। इस पर आकर किसी और को नहीं खेलना चाहिए। अगर इस पर कोई दूसरा खेलेगा तो मुंह की खानी पकड़ेगी, क्योंकि हिंदू अब राम मंदिर को मान चुका है। समझ चुका है। अब अगर कांग्रेस और इंडी गठबंधन की सरकार भी आ जाए तो राम मंदिर के फैसले को नहीं पलट सकता। क्योंकि ये सत्य और सनातन है। राम मंदिर के मुद्दे पर विरोधियों को बिल्कुल भी नहीं खेलना चाहिए। विपक्ष के पास कई और मुद्दें हैं, उन्हें उसी पर बात करनी चाहिए। ये मुद्दें अब क्यों करना जिनका अब कोई लेना-देना नहीं है। आरक्षण और राम मंदिर के मुद्दे पर अब फालतू की राजनीति हो रही है।

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