क्या भूतड़ी अमावस्या पर पा सकते हैं पितृ, प्रेत और कालसर्प दोष से मुक्ति? सूर्य ग्रहण के साथ बना है संयोग, जान लें पूरी विधि
इस साल 8 अप्रैल को अद्भुद संयोग बन रहा है. इस दिन 52 सालों बाद इस साल का पहला पूर्ण सूर्य ग्रहण पड़ने वाला है. वहीं इसी दिन हिंदू वर्ष के अनुसार आखिरी अमावस्या भी होने वाली है. ये अमावस्या सोमवार को पड़ रही है, इसलिए इसे सोमवती अमावस्या कहा जा रहा है. भगवान शिव के वार सोमवार के दिन पड़ने वाली इसी अमावस्या को भूतड़ी अमावस्या भी कहते हैं. ज्योतिष और तंत्र विद्या के अनुसार चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या हिंदू वर्ष की आखरी अमावस्या पर काली शक्तियां, पितृ आदि उग्र होते हैं. ज्योतिष व वास्तु विशेषज्ञ और दस महाविद्या के गुरू, मृगेंद्र चौधरी कहते हैं कि इसी दिन अगर आप चाहें तो अपनी कुंडली के पितृ दोष, प्रेत दोष और कालसर्प दोष से भी मुक्ति पा सकते हैं. आइए जानते हैं इसके लिए क्या उपाय करने चाहिए.कालसर्प दोष की बात करें तो अगर सभी ग्रह राहु और केतु के बीच में आ जाएं, तब व्यक्ति की जन्म पत्री में कालसर्प दोष का निर्माण हो जाता है. कालसर्प दोष की शांति के लिए सबसे राहु का सवा लाख जप कराया जाता है. उसके बाद भगवान शंकर का रुद्राभिषेक किया जाता है और उनको सवा किलो काले तिल अर्पित किए जाते हैं. साथ में नाग-नागिन का जोड़ा भी चढ़ाया जाता है. इसके बाद केतु ग्रह का सवा लाख जप, दशांश हवन कराया जाता है. इसके बाद भगवान शंकर का रुद्राभिषेक किया जाता है और उनके ऊपर सवा किलो अश्वगंधा अर्पित की जाती है. उन्हें सांपों का जोड़ा चढ़ाया जाता है. इस प्रकार से कालसर्प दोष की पूर्णता शांति हो जाती है. एस्ट्रोगुरू मृगेंद्र चौधरी बताते हैं कि इस विधि के द्वारा किए गए कालसर्प दोष शांति अनुष्ठान पूरी तरह फलदाई होता है. अगर इनमें से कोई भी अंग हम छोड़ देते हैं तो उसकी शांति नहीं होती है. राहु और केतु दोनों की शांति का आखिरी अध्याय रुद्राभिषेक है. अगर इस पूजा को भूतड़ी अमावस्या के दिन किया जाए तो कालसर्प दोष पूर्णत: समाप्त हो जाता है और जातक के जीवन में खुशियां आनी शुरू हो जाती हैं.जब जातक की जन्म पत्री में शनि या तो राहु के साथ या शनि केतु के साथ बैठा हो, तब प्रेत दोष का निर्माण होता है. ऐसा व्यक्ति अमूमन प्रेत बाधा से पीड़ित रहता है. उसको कोई न कोई बुरी आत्मा परेशान करती रहती है. ऐसे में प्रेत दोष की शांति के लिए शनि का सवा लाख जप कराया जाता है. दशांश हवन और उसके बाद भगवान शंकर का सरसों के तेल के साथ रुद्राभिषेक किया जाता है. इसके बाद यदि कुंडली में राहु शनि के साथ बैठा है, तो राहु का और यदि केतु शनि के साथ बैठा है तो केतु का सवा लाख जब कराया जाता है. इसके बाद दशांश हवन और फिर भगवान शिव का रुद्राभिषेक किया जाता है. अगर राहु का जब किया है तो रुद्राभिषेक दूध से होगा और सवा किलो तिल अर्पित किए जाते हैं. वहीं अगर केतु है तो दूध के साथ रुद्राभिषेक करने के बाद सवा किलो अश्वगंधा अर्पित की जाती है. इसके बाद सांप का जोड़ा चढ़ाया जाता है. इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. अगर गरुण पुराण का अनुष्ठान करा दिया जाए तो निश्चित तौर पर प्रेत दोष की शांति हो जाती हैएस्ट्रोगुरू मृगेंद्र चौधरी बताते हैं कि आप की जन्मपत्री में राहु के साथ चंद्रमा बैठा हुआ है. शनि के साथ चंद्रमा बैठा हुआ है और लग्न में राहु के साथ शनि बैठा हुआ है तो पितृ दोष बनता है. कई स्थिति में कालसर्प दोष के साथ भी पितृ दोष बन जाता है. जन्मपत्री में अगर राहु और केतु के बीच में सभी ग्रह आ जाएं तो वहां पर पितृदोष भी बन जाता है. उस स्थिति में अगर कोई आपका पूर्वज आपको संकेत दे रह, आपको परेशान कर रहा है तो इस स्थिति में आपको नारायण बलि जरूर देनी चाहिए. भगवान विष्णु की पूजा करने, गरुण पुराण का अनुष्ठान कराने से निश्चित तौर पर पितृदोष की शांति हो जाती है.इसके साथ-साथ भगवती भूतड़ी अमावस्या की बात रें तो इस दिन अगर आप इन तीनों दोषों से मुक्त हैं, तब भी आपको गंगा स्नान या किसी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए. क्योंकि इससे उग्रता कम होती है. इसके अलावा विष्णु भगवान का हवन, भगवान शंकर का हवन, महामृत्युंजय अनुष्ठान, ब्राह्मण भोजन, गरीबों को दान, कपड़े, जूते, भोजन का दान इत्यादि अवश्य करना चाहिए. पितरों के तर्पण के लिए गाय, कुत्ता, कौवा को रोटी जैसा कुछ नैवेद्य जरूर देना चाहिए.