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जानिए, कुछ लोग क्यों नहीं धोते हाथ why some people do not wash their hands with soap | knowledge – News in Hindi

दुनिया भर में कोरोना संक्रमण (corona infection) के मामले 25 लाख 58 हजार के पार पहुंच गए हैं, जबकि 1 लाख 77 हजार से अधिक जानें जा चुकी हैं. इस बीच World Health Organisation (WHO) लगातार चेता रहा है कि इस वायरस से बचने की फिलहाल कोई दवा या टीका नहीं, इसलिए सोशल डिस्टेंसिंग (social distancing) और हाथ धोते रहना ही संक्रमण से सुरक्षित रख सकता है. हालांकि दुनिया में लाखों-करोड़ों लोग ऐसे हैं, जिन्हें हाथ धोना कतई पसंद नहीं. ये लोग गांव-कस्बे तक सीमित नहीं, बल्कि बड़े शहरों में रहने वाले बेहद मॉर्डन लोग भी इसमें शामिल हैं.

10 सालों से नहीं धोए हाथ
अमेरिका में लोकप्रिय टीवी शो फॉक्स एंड फ्रेंड्स के होस्ट Pete Hegseth ऐसे ही लोगों में शामिल हैं. ये वही शो है जो अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) को बेहद पसंद है. इस शो के होस्ट पीट ने ऑन एयर स्वीकार किया कि उन्हें हाथ धोने पर बिल्कुल यकीन नहीं और इसलिए उन्होंने बीते 10 सालों में एक बार भी हाथ नहीं धोए. प्रिंसटन यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट पीट का मानना है कि चूंकि वायरस दिखाई नहीं देते इसलिए वे हैं भी नहीं.

Centers for Disease Control and Prevention सलाह देता है कि वे कीटाणुओं से बचने के लिए नियमित तौर पर हाथ धोएं

एंकर ने उड़ाया मजाक
एंकर ने ये बात उस देश में की जहां खुद Centers for Disease Control and Prevention लोगों को सलाह देता है कि वे कीटाणुओं से बचने के लिए नियमित तौर पर हाथ धोएं. इसके अनुसार सही तरह से हाथ धोने पर डायरिया जैसी बीमारी से लगभग 40 प्रतिशत तक बचाव संभव है. पीट की इस टिप्पणी पर काफी हो-हल्ला मचा. बाद में यूएसए टुडे को दिए एक इंटरव्यू में पीट ने जर्म्स के नाम पर डरने वालों पर नाराजगी जताते हुए कहा कि हम ऐसे समाज में रह रहे हैं, जहां लोग जेबों में सेनेटाइजर लिए घूमते हैं और दिन में 19,000 बार हाथों को सेनेटाइज करते हैं जैसे इससे उनकी जिंदगी बच जाएगी.

बहुत से लोगों की यही सोच है
पीट अकेले नहीं. अमेरिकन एक्ट्रेस Jennifer Lawrence ने भी कहा था कि वे बाथरूम से लौटते हुए कभी हाथ नहीं धोतीं. राजनेता भी इसमें पीछे नहीं. उत्तरी कैरोलिना के रिपब्लिकन सीनेटेर ने रेस्त्रां में हाथ धोने की प्रैक्टिस का मजाक उड़ाते हुए कहा था कि ये स्टाफ पर जरूरत से ज्यादा कायदे लादना है.

हाथ धोने की आदत handwashing with soap (HWWS) साल 2015 में हुई एक स्टडी में निकलकर आया कि दुनियाभर में 26.2% लोग ऐसे हैं जो टॉयलेट जाने के बाद हाथ धोए बगैर बाहर आ जाते हैं. हाथ धोने की आदत डलवाना सुनने में आसान लगता है लेकिन ये है मुश्किल. London School of Hygiene and Tropical Medicine में पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट Robert Aunger के मुताबिक वे 25 सालों से इसकी कोशिश कर रहे हैं लेकिन अब भी हैंड वॉशिंग को लेकर जागरुकता बहुत कम है.

पानी और साबुन जैसी सुविधाओं का न होना हैंड हाइजीन प्रैक्टिस न होने की बड़ी वजह है.

सुविधाओं की कमी एक वजह
पानी और साबुन जैसी सुविधाओं का न होना हैंड हाइजीन प्रैक्टिस न होने की बड़ी वज है. World Health Organization के अनुसार दुनिया की केवल 27 प्रतिशत आबादी के पास ये सुविधा है. वहीं 3 अरब से ज्यादा की आबादी के पास पीने तक को साफ पानी नहीं. लेकिन विकसित देशों में भी सिर्फ 50 प्रतिशत लोग टॉयलेट के इस्तेमाल के बाद हाथ धोते हैं.

क्या कहता है मनोविज्ञान
कोरोना से हो रही इतनी मौतों के बाद भी लोगों में ये आदत नहीं पड़ रही है तो इसकी एक वजह मनोवैज्ञानिक है. हाथों के जरिए संक्रमण पहुंचने के बाद बीमार होने में कई दिन लग जाते हैं और इस बीच हम भूल चुके होते हैं कि हमने टॉयलेट के बाद हाथ नहीं धोए थे. डॉक्टर के पास जाने पर हम बाकी तमाम कारण गिना पाते हैं, सिवाय इसके.  एक और वजह है हमारी खुद के लिए सकारात्मक सोच. हम मानकर चलते हैं कि हमारे साथ कुछ बुरा हो ही नहीं सकता. इसे optimism bias कहते हैं. साल 2009 स्वाइन फ्लू के दौरान न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में हुई स्टडी में देखा गया कि लोगों में खुद को लेकर ये सकारात्मकता इतनी ज्यादा है कि वो मास्क लगाने या हाथ धोने जैसी बातों को बेकार समझते हैं.

महिलाएं ज्यादा सफाई पसंद
हाथ धोने की आदत पर सबसे बड़ी स्टडी फ्रांस में हुई. इसमें 63 देशों के 64,002 लोगों को शामिल किया गया. स्टडी में शामिल ज्यादातर विकसित देशों के लोगों ने कहा कि वे हाथ धोना जरूरी नहीं समझते. वहीं सऊदी अरब के लोग इसमें सबसे आगे रहे, जहां 97% लोग साबुन से हाथ धोते हैं. Covid-19 के दौरान यूके में हुए एक पोल में सामने आया कि औरतें साबुन से हाथ धोने के मामले में पुरुषों से बेहतर हैं. 65% महिलाओं ने बताया कि वे लगातार हाथ धोती हैं, जबकि 52% पुरुष टॉयलेट से निकलते हुए या खाना खाने से पहले हाथ धोते हैं.

पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट रॉबर्ट के मुताबिक हाथ धोने या न धोने में सामाजिक दबाव का भी हाथ है

सामाजिक दबाव भी काम करता है
पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट रॉबर्ट के मुताबिक हाथ धोने या न धोने में सामाजिक दबाव का भी हाथ है. अगर हमें लगता है कि दिन में कई बार साबुन से हाथ धोना जरूरी नहीं है तो वो इसलिए क्योंकि हमें अपने आसपास भी ऐसा होता हुआ नहीं दिखता है. यहां तक कि आम लोगों के अलावा अस्पताल स्टाफ भी हाथ धोने पर भरोसा नहीं करता. ऑस्ट्रेलिया में 2007 में हुई स्टडी में चौंकाने वाली बात निकली. इसके अनुसार वहां के अस्पतालों में डॉक्टरों के हाथ धोने का औसत महज 10% रहा.

हाथ धोने की आदत डलवाने के लिए क्या कर सकते हैं?
रॉबर्ट के मुताबिक ‘घिन’ इसमें मदद करती है. अगर हम लोगों को दिखा सकें कि कैसे टॉयलेट से बिना हाथ धोए लौटने पर हाथ पैथोजन्स से भरे होते हैं तो उनमें खुद ही हाथ धोने की आदत डल जाएगी. इसपर ऑस्ट्रेलिया की Macquarie University के मनोवैज्ञानिक Dick Stevenson ने एक रिसर्च की. इस रिसर्च के मुताबिक अरुचि जगाने वाले वीडियो या विज्ञापन देखने पर लोगों में साबुन से हाथ धोने की आदत आ सकती है.

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