कवर्धा

नाम है कबीरधाम : जहां शराब-शबाब और कबाब मिलते हैं खुलेआम

कवर्धा /जिला कबीरधाम कहने को धर्मनगरी संस्कारधानी सांस्कृति पर्यटन स्थल के नाम से चर्चित है। जहां एक ओर भोरमदेव, बूढ़ादेव, काली और महामाया देवी मंदिरों के घड़ियाल की आवाज और अजान की गूंज से सवेरा होता है। ऐसे धर्मनगरी और संस्कारधानी की पहचान अब शराब शबाब और कबाब से होने लगी है। हिन्दू मुस्लिम की बनती बिगड़ती कहानी के बीच अबैध धंधेबाजों की पौ बारह हो जाती है। बहकते पांव, दहकते गांव, पिटती महिलाएं, बिगड़ता बचपन, गर्म गोश्त की मंडी के रूप में।

आज कबीरधाम जिले के गांव-गांव की कहानी बनते जा रहा है। शहरों व बड़े लोगों की बुराई समझे जाने वाला मयखाना आज गांव-गांव गली-गली तक अपनी पहुंच बना चुका है। जिले का नाम भले ही संत कबीरदास को सम्मान देने कबीरधाम दे दिया गया, परन्तु यहां वैध से ज्यादा अवैध मदिरालय खुल गये हैं। सरकार का कमाई पूत आबकारी विभाग लाखों रूपये तनख्वाह के रूप में खर्च होने के बाद भी अवैध शराब की बहती नदियों पर रोक लगाने कोई प्रभावी कदम नहीं उठा पाया है। सूत्र तो बताते है कि आबकारी एक्ट में कार्यवाही करने में आबकारी विभाग से ज्यादा एक्टिव पुलिस विभाग है। अधिक दर पर शराब बिक्री की शिकायतों मीडिया में खबरों के बावजूद विभाग का सरकारी दुकानों और इसके गद्दीदारो पर लगाम नही कस पाना विभाग की नाकामी है। ऐसे हालात तब है जब विभाग के अधिकारी दौरों के नाम पर कार्यालय से गायब रहते है।बहरहाल आबकारी विभाग में अधिक दर पर शराब बिक्री , कोचियों को शराब बिक्री के साथ साथ कार्टून घोटाला भी चर्चा का विषय बना हुआ है । राजधानी में एसी कमरों में बैठ कर कागजी घोड़े दौड़ाने वाले आला अफसर क्या कार्यवाही कर पाएंगे आ हमेशा की तरह आबकारी विभाग की फाइलें रंगीन कागजो के ढेर में दफन हो जाएंगी।

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