छत्तीसगढ़दुर्ग भिलाई

नहाय खाय के साथ शुरु हुआ सूर्योपासना का महापर्व छठ

चार दिनों तक श्रद्धा से होगी छठी मैया की अराधना

सुख समृद्धि व मनोवांछित फल प्राप्ति की करेंगे कामना

भिलाई। नहाय-खाय के विधान से आज सुर्योपासना का महापर्व छठ पूजा शुरू हो गया। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व के दौरान छठी मैया की आराधना पूरे आस्था और श्रद्धा के साथ होगी। इस पर्व का समापन रविवार को उगते सूर्यदेव को तालाबों में पूजा अर्चना के साथ अध्र्य देकर होगा। व्रती परिवार इस पर्व के दौरान छठी मैया और सूर्यदेव से सुख समृद्धि व मनोवांछित फल प्राप्ति की कामना करेंगे।

बिहार, झारखण्ड और पश्चिमी उत्तरप्रदेश के मूल निवासियों द्वारा मनाये जाने वाले छठ महापर्व की शुरुवात आज से हो गई। सबसे पहले घट की साफ सफाई करने के बाद एक अलग से चू्ल्हा बनाया गया। फिर नहा धोकर इस चूल्हे में पूरी पवत्रता के साथ लौकी की सब्जी और चावल पकाया गया। भोजन में लहसून, प्याज और साधारण नमक का इस्तेमाल नहीं किया गया। स्वाद के लिए सब्जी में सेंधा नमक उपयोग मेंलाया गया। इस भोजन को ग्रहण करने के साथ ही चार दिनी छठ महापर्व की शुरुवात  व्रती परिवारों में हो गई। इसी विधान को नहाय खाय कहा जाता है।

सूर्योपासना और छठी मैया की आराधना का यह चार दिनी महापर्व परिवार में सुख समृद्धि और मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए मनाया जाता है। इस पर्व के प्रति बिहार, झारखण्ड और पश्चिमी उत्तरप्रदेश मूल के स्थानीय निवासियों में जबरदस्त आस्था देखी जाती है। भिलाई-दुर्ग सहित समीप के जामुल, भिलाई-3, चरोदा और कुम्हारी में छठ पर्व पारम्परिक उल्लास के साथ हर साल मनाया जाता है।

छठ महापर्व के दूसरे दिन खरना का विधान संपन्न होगा। इसके लिए 1 वंबर शुक्रवार को व्रतीधारी महिला और पुरुष दिन भर निर्जला उपवास रखने के बाद शाम को विशेष रूप से पवित्रता के साथ तैयार भोजन प्रसाद के रूप में ग्रहण करेंगे। इसी भोजन को खरना कहा जाता है। इसमें गुड़ से बनी खीर व घी लगी रोटी चना दाल व चावल का भोजन तैयार किया जाता है। इस भोजन को ग्रहण करने के बाद व्रती 36 घंटे का कठोर निर्जला व्रत शुरू करते हैं।

तीसरे दिन शनिवार को व्रती परिवार पूजा के लिए प्रसाद तैयार करेंगे। इसमें आम की लकड़ी का चू्ल्हा जलाकर पारम्परिक पकवान ठेकुआ बनाया जाएगा। ठेकुआ गेहूं के अटे से घी में छानकर बनाया जाता है. इसक लिए गेंहू की सफाई के बाद उसे सुखाने के दौरान इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि उसे कोई परिंदा चोंच मारकर जूठा न कर दे। इसके बाद गेहूंकी पिसाई में भी पवित्रता का पूरा ख्याल रखा जाता है।

इसके अलावा बाजार से भी पूजन सामग्री इसी दिन खरीदी जाती है। इसमें बांस से बनी नई टोकरी, सूपा सहित नई फल और सब्जियां प्रमुख है। इस सामानों की खरीदी निपटाने के बाद व्रती परिवार शाम को तालाबों में जाकर डुबते हुए सूर्यदेव को प्रथम अध्र्य अर्पित करेंगे। लोटा से सूर्यदेव को दूध गंगाजल और साफ जल से फल प्रसाद के ऊपर चढ़ाते हुए अध्र्य दिया जाएगा। रविवार को अलसुबह व्रती सपरिवार तालाबों में पहुंचेंगे। इस दौरान उगते हुए सूर्यदेव को द्वितीय अध्र्य देकर पर्व का समापन किया जाएगा।

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