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सऊदी को में हुआ 2.05 लाख करोड़ रुपये का नुकसान, लगा 9 साल का सबसे बड़ा झटका! -Saudi Arabia latest news hindi Saudi Arabias reserves plunge the most in at least two decades | business – News in Hindi

नई दिल्ली. 3 करोड़ से ज्यादा आबादी वाले देश सऊदी में भी इन दिनों कोरोना वायरस के कहर का बड़ा असर दिख रहा है. जहां एक और पूरे देश में कर्फ्यू लगा है. वहीं, दूसरी ओर कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट से देश की अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान हुआ है. न्यूज एजेंसी ब्लूमबर्ग के मुताबिक, मार्च के महीने में सऊदी अरब का विदेशी मुद्रा भंडार 2011 के बाद सबसे निचले स्तर पर आ गया है. सिर्फ एक महीने में 100 रियाल (2700 करोड़ डॉलर) यानी 2.05 लाख करोड़ रुपये का कम हो गया है. वहीं, न्यूज एजेंसी का कहना है कि इस साल के पहली तिमाही में देश का बजट घाटा बढ़कर 900 करोड़ डॉलर (68,400 करोड़ रुपये) के स्तर पर पहुंच गया, जिसका दबाव विदेशी मुद्रा भंडार पर देखने को मिला. पिछले साल इसी महीने में 56,200 करोड़ रुपये बजट सरप्लस था.

कोरोना संकट और तेल संकट की वजह से सऊदी अरब सरकार ने सरकारी घाटे के जीडीपी के 9 फीसदी तक पहुंचने का अनुमान लगाया है. हालांकि कुछ रिपोर्ट के मुताबिक घाटा जीडीपी के 22 फीसदी तक रह सकता है.

सऊदी का मुद्रा भंडार 9 साल के निचले पर

सऊदी अरब सरकार के मुताबिक मार्च के महीने में देश का विदेशी मुद्रा भंडार पिछले महीने के मुकाबले 5.7% गिरकर 46,400 करोड़ डॉलर (35.26 लाख करोड़ रुपये‬) के स्तर पर आ गया है. ये अप्रैल 2011 के बाद रिजर्व का सबसे निचला स्तर है.अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इससे संकेत मिले हैं कि सऊदी अरब अब अपनी जमा रकम का इस्तेमाल कोरोना संकट और कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट से अर्थव्यवस्था में आए नुकसान की भरपाई में कर रहा है.

देश के वित्त मंत्री महमूद अल जदान ने पहले ही ऐलान किया था कि वो इस साल अपने मुद्रा भंडार में से 32 अरब डॉलर से ज्यादा नहीं निकालेंगे और उधारी करीब 60 अरब डॉलर तक बढ़ा कर बजट घाटे को पूरा करने की कोशिश करेंगे.

क्रूड कीमतों में पिछले हफ्ते से तेजी आने लगी

कच्चा तेल एक्सपोर्ट करने वाले देशों का कहना है कि मई और जून में वे प्रतिदिन एक करोड़ बैरल कम तेल निकालेंगे. जुलाई से दिसंबर तक कटौती में थोड़ी राहत दी जाएगी और इसे 80 लाख बैरल कट में बदल दिया जाएगा.

तेल उत्पादन में यह कटौती अप्रैल 2022 तक जारी रह सकती है. तेल विक्रेता देशों को उम्मीद है कि उत्पादन कम करके तेल के गिरते दामों में लगाम लग सकेगी. लेकिन कटौती में अमल काफी हद तक मेक्सिको के फैसले पर भी निर्भर करता है. अगर मेक्सिको ने कटौती नहीं की या उत्पादन बढ़ाया तो ओपेक देशों का दांव नाकाम पड़ सकता है.

मेक्सिको के ऊर्जा मंत्री रोसियो नाहले गार्सिया ने ट्ववीट कर कहा कि उनका देश एक लाख बैरल प्रतिदिन कटौती करने को तैयार है. लेकिन बाकी देश उम्मीद कर रहे थे कि मेक्सिको चार लाख बैरल प्रतिदिन की कटौती करे.  वेनेजुएला ने भी रूस और सऊदी अरब के एक करोड़ बैरल प्रतिदिन के कटौती प्रस्ताव का समर्थन किया है.

वीडियो कॉन्फ्रेसिंग के जरिए हुई मैराथन मीटिंग में रूस के ऊर्जा मंत्री और ओपेक के सहयोगी देश भी मौजूद थे. कोरोना वायरस और रूस-सऊदी अरब के झगड़े के चलते मार्च में तेल के दाम 18 साल बाद सबसे निचले स्तर पर आ चुके थे. लेकिन पिछले हफ्ते अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के बयान के बाद क्रूड ऑयल की कीमत 20 फीसदी उछली. ट्रंप ने सऊदी अरब और रूस के विवाद के खत्म होने की उम्मीद जताई थी.

सऊदी अरब दुनिया में लंबे समय तक तेल का सबसे बड़ा उत्पादक था. लेकिन हाल के वर्षों में अमेरिका में फ्रैकिंग तकनीक से तेल निकालने का तरीका बेहद कारगर साबित हुआ है. अब अमेरिका दुनिया में नंबर वन तेल उत्पादक बन चुका है.

14 सितंबर 1960 को अस्तित्व में आए संगठन, ऑगर्नाइजेशन ऑफ द पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज (ओपेक) में अल्जीरिया, अंगोला, कांगो, इक्वाडोर, गिनी, गाबोन, ईरान, कुवैत, लीबिया, नाइजीरिया, कतर, सऊदी अरब, यूएई और वेनेजुएला शामिल हैं. चाड, कनाडा, अर्जेंटीना, कोलंबिया, त्रिनिदाद और टोबैगो, इंडोनेशिया, मिस्र और नॉर्वे संगठन के सहयोगी हैं.



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