धर्म

छत्तीसगढ़ी शादी में क्यों किया जाता है मंगरोहन टोटका, यहां जानें इसका महत्व

रायपुरः छत्तीसगढ़ प्रदेश हमेशा से अपनी लोक कला एवं संस्कृति के साथ ही साथ अद्भुत रीति रिवाजों के लिए विख्यात है. छत्तीसगढ़ में इन दिनों विवाह का सीजन चल रहा है. यहां विवाह संस्कार के समय कई रस्मों का पालन किया जाता है. छत्तीसगढ़ में ज्यादातर विवाह का कार्यक्रम तीन से पांच दिनों का होते है जिसमे विभिन्न प्रकार के रस्म होते है. इन रस्मों से एक रस्म है मंगरोहन का. मंगरोहन की रस्म विवाह के समय कोई अपशकुन न हो इसलिए टोटका के रूप में की जाती है.

राजधानी रायपुर के पंडित मनोज शुक्ला ने मंगरोहन रस्म को लेकर बताया कि मंडप में बांस गाड़े जाते हैं. इसके साथ गूलर वृक्ष के डाल से बनी हुई पुतली जैसी आकार की लकड़ी को मंगरोहन कहा जाता है. मंगरोहन के संबंध में महाभारत काल की कथा भी है. गांधारी ने अपने आंख में जो पट्टी बांधी थी उसी के संबंध में कथा है. तब से विवाह में प्रथा है कि विवाह के मंडप में मंगरोहन यानी गूलर की लकड़ी लगाई जाती है. हल्दी चढ़ाते समय दूल्हा या दुल्हन से पहले मंगरोहन में चढ़ाई जाती है.

छत्तीसगढ़ की प्रथा
पंडित जी ने आगे बताया कि छत्तीसगढ़ की प्रथा परंपरा है कि हर सामग्री को अलग अलग घरों से लाई जाती है. ठीक उसी प्रकार मंगरोहन बनाने का काम गांव के बढ़ई कारीगर करते हैं. जिनके घर शादी होता है वहां से गाजे बाजे के साथ बढ़ई घर जाते हैं और सम्मान पूर्वक बढई को कुछ रकम, वस्त्र , पकवान भेंट करते हैं और गूलर की लकड़ी से बनाई हुई मंगरोहन को लेकर शादी वाले घर आते हैं फिर मंडप में सुवासा लगाते है.

Related Articles

Back to top button