छत्तीसगढ़

अपनों से अलग वृद्ध आश्रम में बिता रहे जिंदगी, कविताओं में खूब माहिर, जानें उनकी आखिरी इच्छा

कोरबाः ‘ऐ जिन्दगी तुझसे शिकायत बहुत है, धीरे- धीरे से चल मुझे काम बहुत है’ कुछ ऐसी ही कहानी हो गई है, उत्तर प्रदेश के एक पूर्व शिक्षक की, जिनकी बाकी जिंदगी पावर सिटी कोरबा के प्रशांति वृद्धाश्रम में गुजर रही है. संतान होने के बावजूद पूर्व शिक्षक इस तरह अलग थलग रह रहे हैं. उनका दर्द कविताओं में उभर रहा है. वे चाहते हैं कि स्थायी याद के रूप में प्रशासन चित्रों के साथ उनकी कविताओं का प्रकाशन कराएं.आप इसे शौक कह सकते हैं या किसी की पीड़ा. लंबे समय से मिले दर्द, टीस और कसक का पूरा मिश्रण है, बालकृष्ण कसेरा की कविताओं में. वे पिछले कई वर्षों तक उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में आईटीआई में शिक्षक रहे और कुछ कारणोंसे बीच में नौकरी छोड़ दी. बच्चों के व्यवहार ने उन्हें परेशान किया, इससे मन आहत हुआ.उनका सक्ति और फिर कोरबा आना हुआ. कबीर आश्रम में कुछ समय बिताने के बाद उनकी जिंदगी अबवृद्धाश्रम में बीत रही है. शिक्षक होने के नाते बालकृष्ण का पढ़ना लिखना स्वाभाविक था. कालांतर में मिली चोट ने कविता लिखने को प्रेरित किया ताकि मन हल्का हो. अब तक वे 150 से ज्यादा रचना कर चुके है. इनके प्रकाशन के लिए बालकृष्ण कलेक्टर से लेकर कई अफसरों के चक्कर लगा चुके है।.वे चाहते हैजिस संदर्भ में कविता लिखी गई है, उन्हें चित्रों के साथ प्रकाशित किया जाए.

प्रशासन से मांगजीवन के 70 वसंत देख चुके बालकृष्ण कसेरा दार्शनिक अंदाज में रहते हैं, कि जीवन नश्वर है इसलिए उन्होंने देहदान के साथ-साथ अंगदान करने की घोषणा की है ताकि किसी का कल्याण हो सके. प्रशांति वृद्ध आश्रम में बालकृष्ण जैसे अनेक लोग काफी समय से रह रहे हैं, लेकिन रचनात्मक प्रतिभा चुनिंदा लोगों में होती है. आशा की जानी चाहिए कि अपने द्वारा रचित कविताओं को भविष्य के लिए प्रकाशित करने की जो इच्छा बालकृष्ण के द्वारा की गई है उसकी पूर्ति प्रशासन जरूर कराएगा.

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